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छत्तीसगढ़ में माओवादियों द्वारा कांग्रेस नेताओं के नरसंहार पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हास्यास्पद टिप्पणी की है। उमर अब्दुल्ला ने आज तक शायद ही किसी बम विस्फोट के बाद यह बोला हो कि आतंकवादियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी पड़ेगी। पर यही अब्दुल्ला नक्सली हमले के तुरन्त बाद बयान देते हैं कि इस बुराई से छुटकारा पाने के लिए कड़े तथा ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस विषय को आने वाले दिनों में केन्द्रीय स्तर पर होने वाली बैठक में भी उठाएंगे।
उमर अब्दुल्ला के इस बयान पर भाजपा एवं अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि मुख्यमंत्री अपने राज्य में आतंकवाद के संबंध में स्पष्ट नीति अपनाने की बजाय छत्तीसगढ़ की दु:खदाई घटनाओं की आड़ में अपनी विफलताओं को ढकना चाहते हैं।
आलोचकों का कहना है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की बजाय सुरक्षाबलों के विशेषाधिकार समाप्त करने की मांग कर रहे हैं, सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने का षड्यंत्र रच रहे हैं, वहां से सुरक्षा बलों को हटाने की मांग कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ को माओवादियों के विरुद्ध सख्ती बरतने के सुझाव दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के पहले 4 महीनों में आतंकवादी घटनाओं में कश्मीर घाटी तथा नियंत्रण रेखा के साथ 20 से अधिक सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुए हैं और कई जवान तथा अधिकारी घायल भी हुए हैं। आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि के बाद भी घाटी के अलगाववादी तथा कुछ दलों, विशेषकर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के राजनेता विचित्र सी चुप्पी साध लेते हैं। कुछ स्थानों पर जब सैनिक शहीद होते हैं और वहां भारत विरोधी नारे लगते हैं तब भी राज्य सरकार मूकदर्शक बनी रहती है। ऐसे में किसी दूसरे राज्य में माओवादी घटना से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सबक सीखें, केवल बयान जारी न करें।
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