मुहाजिर नेता अल्ताफ हुसैन ने की
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कराची को पाकिस्तान से अलग करने की मांग
चुनाव के परिणाम मुहाजिरों के साथ न्याय नहीं कर सकते उसे स्वीकार करने से कोई फायदा नहीं है।
यदि जनता का फैसला पसंद नहीं तो कराची को देश से अलग कर दो।' मुहाजिर नेता अल्ताफ हुसैन की इस सिंह-गर्जना ने लोकतंत्र के जश्न में डूबे पाकिस्तान में अचानक हलचल मचा दी है। उन्होंने अपने बयान में कहा है, 'जिस चुनाव के परिणाम मुहाजिरों के साथ न्याय नहीं कर सकते उसे स्वीकार करने से कोई फायदा नहीं है। पाकिस्तान बनाने का खामियाजा तो सबसे अधिक इन मुहाजिरों ने ही उठाया है। जिन्होंने यह लड़ाई लड़ी और अपना सब कुछ लुटा दिया यदि इनके हाथों में सत्ता नहीं आती है तो फिर इस प्रकार के लोकतंत्र का क्या लाभ? यदि मुहाजिर पाकिस्तान बनाने के लिए अखंड भारत के प्रस्ताव को ठोकर मार सकते हैं तो समय आने पर पाकिस्तान की जनता ने मुहाजिरों के साथ जो अन्याय किया है उस पर भी प्रश्न वाचक चिन्ह लगा सकते हैं। पाकिस्तान बनाएं हम, अपना घर और अपना सब कुछ छोड़कर भारत से चले आएं हम, लेकिन इसका मीठा फल खाए कोई और तो हम बर्दाश्त किस प्रकार कर सकते हैं? पिछले 65 साल से हम न्याय मांग रहे हैं लेकिन पंजाबी, सिंधी और पठान हम मुहाजिरों के साथ मजाक कर रहे हैं। जो पाकिस्तान में आज चुनाव के नाम पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनकर इतरा रहे हैं उन्हें महसूस हो जाना चाहिए कि पाकिस्तान बनाया भी मुहाजिरों ने और यदि वह टिकेगा भी तो मुहाजिरों की इच्छा पर ही।' अल्ताफ हुसैन यही नहीं रुके। उन्होंने पाकिस्तान के अन्य राजनीतिक दलों को चेतावनी दे दी है कि वे अब उनके साथ नहीं रह सकते हैं। उन्हें सत्ता नहीं मिलती तो वे उस देश को ही तोड़ देंगे जिसे उन्होंने भारी बलिदान देकर बनाया था।
लंदन में बैठकर सात समन्दर पार से उन्होंने पाकिस्तानियों को धमकी दे डाली। कराची वर्षों से हिंसा की आग में जल रहा है। चुनाव के बीच अल्ताफ हुसैन के इस वक्तव्य ने पाकिस्तानियों को सतर्क कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन्हें सत्ता मिलती है तो वे पाकिस्तान के साथ रहेंगे नहीं तो सिंध का विभाजन करवा के कराची और हैदराबाद को अलग देश मुहाजिरिस्तान में परिणत कर देंगे। अल्ताफ हुसैन की यह गीदड़ भभकी है या फिर कोई भविष्य की योजना इसका पता तो कुछ समय बाद ही लग सकेगा।
l पाकिस्तान सरकार ने अल्ताफ हुसैन पर ऐसा शिकंजा कसा है कि वे पाकिस्तान आना ही भूल गए हैं।
l ये लन्दन के स्थाई निवासी बन गए हैं और वहीं से मुहाजिरों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।
l कभी इनकी पार्टी एम.क्यू.एम. का काफी प्रभाव था, पर अब यह हाशिए पर चली गई है।
l इन परिस्थितियों में उनकी धमकी का असर पाकिस्तान सरकार पर कितना होता है, यह समय बताएगा।
पाकिस्तान के अनेक नेता अपनी हार को पचा नहीं पाए हैं। सबसे अधिक निराश तो आसिफ जरदारी और इमरान खान हुए हैं, क्योंकि उन्हें पक्का विश्वास था कि पाकिस्तान की जनता मिला-जुला निर्णय देगी। लेकिन केन्द्र में नवाज शरीफ की सरकार को बहुमत मिलते ही अन्य नेताओं की स्थिति खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे जैसी हो गई। आसिफ जरदारी को तो केवल सिंध में ही अपनी राज्य स्तर की सरकार से संतुष्ट होना पड़ रहा है। इसी प्रकार इमरान खान, जिन्हें प्रधानमंत्री बनने की दिली इच्छा थी, भी खैबर पख्तूनवा की राज्य सरकार तक ही सीमित हो गए। नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बन तो गए हैं लेकिन उनका बहुमत इतना अल्प है कि उन्हें इमरान खान की पार्टी अथवा स्वतंत्र निर्वाचित हुए सांसदों के समर्थन की सख्त आवश्यकता पड़ेगी। यदि नवाज शरीफ और इमरान खान में युति हो जाती है तो बहुत हद तक नवाज शरीफ को राहत मिल जाएगी। लेकिन इन चुनावों में सबसे बुरी हालत कौमी मुहाजिर मूवमेंट के नेता अल्ताफ हुसैन की हो गई है। वे न तो सिंध में और न ही इस्लामाबाद की केन्द्र सरकार में अपना हिस्सा दर्ज करा सके। इसलिए चुनाव परिणाम आते ही उनका आग बबूला हो जाना एक स्वाभाविक बात थी। इसलिए वे फिर से अपने पुराने हथियार को धार देने की कोशिश में लग गए। अल्ताफ हुसैन उन नेताओं में हैं, जो लंदन में बैठकर पाकिस्तान की राजनीति करते हैं। एस समय था कि वे शेर की तरह से दहाड़ते थे। उनका एक सूत्री कार्यक्रम था पाकिस्तान से कराची को अलग कर मुहाजिरिस्तान की स्थापना करना। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने कौमी मुहाजिर मूवमेंट नामक पार्टी बनाकर भारत से पाकिस्तान आए। उन्होंने मुहाजिरों के लिए कौमी मुहाजिर मूवमेंट नाम का एक आन्दोलन प्रारम्भ किया जिसने बाद में राजनीतिक पार्टी का स्वरूप ले लिया। लेकिन अल्ताफ हुसैन और इस आन्दोलन के अन्य नेताओं के जब मतभेद उभरे तो 'मुत्तहदा कौमी मुहाजिर मूवमेंट' नामक एक अलग राजनीतिक दल का गठन हो गया।
पाकिस्तान बन जाने के बाद सबसे बुरी स्थिति उन लोगों की थी जो भारत से पाकिस्तान गए थे। कराची अत्यंत निकट था और बड़ा कारोबारी शहर था इसलिए बड़ी संख्या में भारत से गए शरणार्थी जिन्हें वहां उर्दू में मुहाजिर कहा जाता है वे कराची और सिंध हैदराबाद के आस-पास के क्षेत्रों में जाकर बस गए। भारत से गए शरणार्थियों को वहां की स्थानीय सिंधी जनता ने दिल से नहीं स्वीकारा इसलिए दोनों समूहों के बीच टकराव बढ़ने लगा। स्थिति दंगों तक पहुंच गई। जब भारत से गए मुस्लिम शरणार्थियों को बड़े कष्ट झेलने पड़े तब अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उन्हें वहां के सिंधियों और पठानों से दो-दो हाथ करने पड़े। भारत को तोड़ने की सजा उनको मिल गई। वे वहां पहुंचकर भारत के अपने घरों को याद करने लगे और विभाजन कितना बुरा है इस पाप के लिए मुस्लिम लीग को कोसने लगे। अपने परिवारों की रक्षा के लिए उन्होंने अल्ताफ हुसैन के नेतृत्व में अपना यह संगठन बना डाला। अल्ताफ हुसैन के पिता आगरा में स्टेशन मास्टर थे। स्टेशन मास्टर का बेटा सोच रहा था कि यहां पर भी हरी झंडी दिखाने पर गाड़ी चल पड़ेगी। किन्तु पाकिस्तान सरकार और उनके विरोधी गुट ने अल्ताफ पर ऐसा शिकंजा कसा कि वे पाकिस्तान में नहीं रह सके। आज तो वे स्थायी रूप से लंदन में रहते हैं। वहां से बैठकर मुहाजिरों के नाम पर राजनीति करते हैं। इस बार भी उन्होंने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे लेकिन बहुत कम सफलता मिली। इसलिए लंदन से ही उन्होंने अपने शब्दों के बाण चलाए। उन्होंने पाकिस्तान के अन्य नेताओं को यह धमकी दे दी कि वे यदि मुहाजिरों की अनदेखी करेंगे तो यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लंदन के अखबारों में उनके जो बयान प्रकाशित हुए हैं वे फिर से पाकिस्तान में चर्चा का विषय बन गए। किन्तु पाकिस्तान के पत्रों का कहना है कि जिस व्यक्ति का पाकिस्तान की राजनीति में कोई आधार नहीं उसकी बकवास से क्या हो जाने वाला है? अल्ताफ को भले ही कोई गम्भीरता से न ले लेकिन पाकिस्तान को तोड़ने की धमकी ने इस बार पाकिस्तान की सेना, आईएसआई और नई सरकार ने बड़ी गम्भीरता से लिया है। पाकिस्तान को तोड़ने के लिए अनेक ताकतें सक्रिय हैं। ब्लूचिस्तान तो पाकिस्तान से अलग होने के लिए एक पांव पर खड़ा है। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना के जाने के बाद उससे जुड़े क्षेत्रों में भी यही बयार फैलने वाली है। आजाद कश्मीर के इर्द-गिर्द जितने भी प्रदेश हैं वे पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं। जी एम सैयद के समय से सिंधु देश का आन्दोलन तो चल ही रहा है। सैयद के पुत्र फिर से राजनीति में सक्रिय हुए हैं इसलिए सिंध आन्दोलन भविष्य में कभी भी जोर पकड़ सकता है। भारत के विभाजन के समय हिन्दू सिंध की मांग भी तत्कालीन प्रधानमंत्री अब्दुल्ला खोड़ू के समय में जोरों से उठी थी। जिसे यदि नेहरू जी का आशीर्वाद मिल जाता तो सिंधु देश उसी समय बन जाता। लेकिन तब तक तो मुस्लिम लीगी इसका घोर विरोध करने लगे थे। बाद में अब्दुल्ला खोडू को पाक सरकार ने गोलियों से भून दिया। इस प्रकार एक राष्ट्रवादी नेता का दु:खद अंत हो गया। इसलिए अल्ताफ के कराची को सिंध से अलग कर देने का आन्दोलन आज भी सुप्त अवस्था में है। यदि अल्ताफ ताकतवर बनते हैं और कराची तथा सिंध में मुहाजिरिस्तान की मांग खड़ी हो जाती है तो पाक सरकार के लिए एक चुनौती बन सकती है। पाकिस्तान में इस समय अलगाववाद तेजी से बढ़ रहा है। इस स्थिति में अल्ताफ हुसैन की कोशिशें रंग लाए तो पाकिस्तान के भीतर एक और बंगलादेश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है मुजफ्फर हुसैन
जिसने ली सत्ताइस लोगों की जान, उस पर समाजवादी सरकार मेहरबान
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को 'मुस्लिम सरकार' यूं ही नहीं कहा जाता है। उ.प्र. सरकार हर काम मुस्लिमों को केन्द्रित कर रही है। उससे इस बात का तनिक भी फिक्र नहीं है कि उसके काम से समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने आतंकवादी शमीम के खिलाफ चल रहे सारे मुकदमों को वापस लेने का निर्णय लिया है। 2006 में वाराणसी के सुप्रसिद्ध संकटमोचन मन्दिर और कैन्ट रेलवे स्टेशन पर हुए बम विस्फोटों का आरोपी है शमीम। इन विस्फोटों में 27 निर्दोष लोग मारे गए थे। उत्तर प्रदेश के विशेष सचिव आर.पी.पांडेय ने 30 मई को वाराणसी के जिलाधिकारी को एक पत्र भेजा है। इसी पत्र में शमीम के मामले पर आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। उन विस्फोटों के सिलसिले में पुलिस ने इलाहाबाद के वलीउल्लाह को पकड़ा था। उसी ने शमीम का नाम लिया था। किन्तु हूजी से जुड़ा शमीम असम के रास्ते बंगलादेश भाग गया था। अब उसके खिलाफ चल रहे मामले शायद इसलिए वापस लिए जा रहे हैं कि वह बंगलादेश से भारत आ सके।
दूसरी ओर इसी उ.प्र. सरकार ने भड़काऊ भाषण के मामले में बरी हो चुके भाजपा सांसद वरुण गांधी के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की है। वरुण के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। अखिलेश सरकार की मंशा क्या है, यह आप खुद ही तय करें। प्रतिनिधि
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