लोकायुक्त की फटकार से साफ हुआ
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शीला सरकार ने डाला जनता की जेब पर डाका
भाजपा की मांग–शीला इस्तीफा दें
लोकायुक्त की रपट से–
शीला दीक्षित ने सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया।
शीला कुल राशि का 50 प्रतिशत यानी 11 करोड़ सरकारी खजाने में जमा कराएं।
विजेन्द्र गुप्ता की मांग–
शीला दीक्षित पद छोड़ें
उन पर आपराधिक मुकदमा चले
कांग्रेस संवैधानिक संस्थाओं को धमकाती रहती है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को अब नैतिकता की याद क्यों नहीं आ रही है? कांग्रेस आलाकमान उन्हें पद छोड़ने को क्यों नहीं कह रहा है? क्या दिल्ली में लोकायुक्त की रपट को नकार कर कांग्रेस अपने दोगलेपन का परिचय नहीं दे रही है? क्या दिल्ली में कांग्रेस के लिए भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल गई है? इन दिनों दिल्ली के लोग एक-दूसरे से कुछ ऐसे ही सवाल पूछ रहे हैं। दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन की उस सिफारिश के बाद यह प्रश्न उठ रहे हैं, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि वे शीला दीक्षित को चेतावनी दें कि उन्होंने अपने और अपनी पार्टी कांग्रेस को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी खजाने का दुरुपयोग किया है। लोकायुक्त ने अपनी रपट में लिखा है कि शीला दीक्षित ने 2008 के विधान सभा चुनाव के समय विज्ञापन.के लिए सरकारी खजाने से 22 करोड़ 56 लाख रु. खर्च किये हैं। यह जनता के पैसे का दुरुपयोग है। लोकायुक्त ने यह भी कहा है कि शीला दीक्षित खुद या उनकी पार्टी सरकारी खजाने में 11 करोड़ रु. जमा कराये।
उल्लेखनीय है कि शीला द्वारा 2008 के चुनाव में सरकारी खजाने के दुरुपयोग की शिकायत 2009 में दिल्ली के तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने की थी। इसके बाद लोकायुक्त ने इस मामले की गहरी छानबीन की और अपनी सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी।
अभी राष्ट्रपति ने इस रपट पर कुछ कहा तो नहीं है पर शीला दीक्षित ने उस रपट को ही चुनौती दे दी है। 29 मई को शीला ने कहा कि लोकायुक्त ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह रपट तैयार की है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर चुनाव के समय कोई पार्टी या नेता किसी कानून का उल्लंघन करता है तो यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। शीला यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने आगे भी कहा कि अब कुछ दिन बाद चुनाव होने वाले हैं। लोकायुक्त की रपट अब क्यों आई है? शीला के इस सवाल पर दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने पाञ्चजन्य को बताया कि शीला दीक्षित लोगों को गुमराह कर रही हैं। 2010 में लोकायुक्त ने एक नोटिस जारी कर कहा था कि यह चुनाव आयोग का मामला नहीं है, यह लोकायुक्त का मामला है। उस समय शीला दीक्षित ने लोकायुक्त के इस नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती क्यों नहीं दी थी? श्री गुप्ता ने यह भी कहा कि एक चुनी हुई सरकार के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है कि लोकायुक्त उसे एक प्रकार से दण्ड स्वरूप सरकारी खजाने में पैसा जमा करने को कहे? उनके अनुसार, शीला दीक्षित के विरुद्ध आपराधिक मामला चलना चाहिए। इसके लिए जल्दी ही प्रथम सूचना रपट (एफ आई आर) दर्ज कराई जाएगी।
प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
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