सम्पादकीय: यूपीए रिपोर्ट कार्ड यानी दाग अच्छे हैं!
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यूपीए रिपोर्ट कार्ड यानी दाग अच्छे हैं!
किसी बदसूरत तकिए पर फूलदार गिलाफ चढ़ाने की कोशिश फूहड़पन और चीकट ढक सकती है मगर इससे गंदगी कम नहीं होती।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के चार साल पर जारी रिपोर्ट कार्ड में कुछ ऐसी ही कसरत है। भारतीय लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और शासकीय नाकामी की सबसे बदसूरत अंतर्कथाओं को ढकने वाला हलफनामा। ऐसा शपथपत्र जिसकी सत्यता पर संभवत: वादपक्ष को स्वयं भी भरोसा नहीं है।
सरकार जो भी कहे, इस मौके पर उन दागों और उस गंदगी का जिक्र जरूरी है जिन्हें 'गिलाफ' तले दबा दिया गया।
यूपीए शासन के लिए सबसे बड़ा झटका यह है कि हाल के चंद वर्षों में उसने अपनी अहम पूंजी खो दी है। कांग्रेस लाख चमकाए, मगर विभिन्न सर्वेक्षण बता रहे हैं कि डा. मनमोहन सिंह की 'स्वच्छ छवि' का भ्रम तिरोहित हो चुका है। 2जी घोटाले से कोयला खदान आवंटन तक भारी अनियमितताओं में प्रधानमंत्री कार्यालय की संदिग्ध भूमिका ने सबसे चमकदार चेहरे को पानी-पानी कर दिया है। 'राजा' से वजीर तक, सत्ता के साझीदारों और खुद कांग्रेस के शीर्ष परिवार के संबंधियों पर रसूख का इस्तेमाल कर बेशुमार पैसा बनाने की हैरान करने वाली कहानियां जनता के सामने एक-एक कर खुल गई हैं। गठबंधन या ठगबंधन!! यूपीए के कामकाज को देखने के बाद जनता खुद को ठगा सा महसूस कर रही है।
सच बोलने वाला 'कैग' यूपीए को नहीं सुहाता, सीबीआई की चाबी भरने को सरकारी हाथ कुलबुलाते हैं, मानवाधिकार आयोग और सीवीसी की नियुक्तियां संदेह और आरोप के घेरे में हैं। संविधानेत्तर सत्ता को स्थापित करने, मजबूत करने और आगे भी जारी रखने का विचार जताने की धृष्टता भी इस कार्यकाल के दौरान गठबंधन की अगुआ कांग्रेस ने की है। आज आम धारणा है कि यूपीए शासन में शीर्ष सत्ता का पता पीएमओ नहीं, दस जनपथ है। ढुलमुल प्रधानमंत्री, अहम नीतिगत विषयों पर अनिर्णय की इस स्थिति का श्रेय भी इस सरकार के कर्णधारों को जाता है।
यूपीए शासन ने विदेश नीति के मोर्चे पर भी देश को कम आघात नहीं पहुंचाया। भारतीय सीमा में 19 किलोमीटर तक घुस आने वाले चीन को दमदार तरीके से चुशूल संधि और स्पष्ट सीमा रेखा की बात बताने की जरूरत थी। मगर बजाय इसके देशवासियों को भ्रमित किया गया है कि सीमा को लेकर विवाद है। पाकिस्तान जैसे अस्थिर पड़ोसी की चालबाजियां और वहां अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर चुप्पी हमारे विदेश मंत्रालय की विफलता की अलग ही कहानी है।
वित्तशास्त्री प्रधानमंत्री के होते अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपया औंधे मुंह पड़ा है। दो अंकों में कुलांचें भरती विकास दर लुढ़ककर आधी रह गई है और रोजगार सृजन के अवसर थम गए हैं। इस पर भी यदि डा. मनमोहन सिंह की पीठ थपथपाई जा रही है तो यह जनता के जख्मों पर नकम छिड़कने वाली बात ही है।
सरकार के मुताबिक रिपोर्ट कार्ड में उसे 'स्टार' मिले हैं। अंक तालिका लहराई जा रही है, मगर पूरे स्कूल, यानी देश में वे प्रतिकूल टिप्पणियां गूंज रही हैं जिन्हें बिगड़ैल बच्चे के प्रगतिपत्र में जगह नहीं दी गई।
कुल मिलाकर प्रगतिशील गठबंधन के नाम पर प्रगति का भ्रम तो जरूर रचा गया, किन्तु विकास का पहिया जहां का तहां थम कर रह गया। राष्ट्र की वास्तविक प्रगति के लिए जिस ध्येयनिष्ठ और कर्मशील संस्कार की आवश्यकता थी वह यूपीए में सिरे से गायब है।
अब, रिपोर्ट कार्ड में 'स्टार' दिखाने वालों को जनता आगामी लोकसभा चुनाव में तारे दिखा दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।
भ्रष्ट व्यवस्था में कभी भी आदमी दोषी नहीं होता, निर्जीव पदार्थ के सिर दोष मढ़कर अपना सिर बचाना ही बुद्धिमानी है, राजनीति है, सफलता की कुंजी है।
-शिव प्रसाद सिंह (चुर्दिक पृ. 101)
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