बम धमाकों के आरोपी खालिद की मौत पर अखिलेश की वोट राजनीति
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उत्तर प्रदेश में आतंकी खालिद के समर्थन में कट्टरवादियों ने इस तरह धरने दिए और वहां की सरकार पर यह दबाव बनाने का प्रयास किया कि वह खालिद की मौत के लिए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे।
क्या हिन्दू कैदियों की मौत पर भी सपा सरकार इतनी 'सक्रिय' होती है?
धमाकों के आरोपी खालिद की सामान्य मौत पर पूर्व डीजीपी समेत 42 अधिकारियों पर मुकदमा। सकते में पुलिस विभाग।
बम धमाकों के आरोपी की मौत पर मुसलमानों ने किया उत्पात। में वकील भी सड़क पर उतरे।
सात पुलिसकर्मी निलंबित
खालिद और तारिक समेत चार आतंकियों को फैजाबाद पेशी पर ले जाने वाली पूरी पुलिस टीम को लापरवाही के आरोप में निलंबित कर दिया गया। इनके खिलाफ विभागीय जांच करने के आदेश दे दिए गए हैं। लखनऊ पुलिस लाइन में तैनात दरोगा अवध राम, सिपाही चंद्रशेखर, आनन्द प्रकाश सिंह, जितेंद्र, मनोज कुमार, रामजी यादव, दीपक कुमार, जय प्रकाश और लालराम निलंबित चल रहे
15 और आतंकियों के मुकदमे वापस ½þÉåMÉä!
यूपी सरकार ने बेशर्मी का चोला पहन लिया है। उसने विभिन्न आतंकी वारदातों के आरोप में जेल में निरुद्ध 15 अन्य गुनाहगारों का मुकदमा वापस लेने का फैसला कर लिया है। ये सभी मुसलमान हैं। इनमें 31 दिसंबर 2008 में रामपुर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) शिविर पर हमला करने वाले आतंकी भी शामिल हैं। इस हमले में आठ लोगों की मौत हो गईश्थी।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम
सिंह यादव के दिशानिर्देश पर चल रही उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार, लगता है अब खुलकर मुस्लिम आतंकियों के समर्थन में उतर आई है। उसके लिए न तो राजनीतिक नैतिकता और शुचिता का कोई मतलब रह गया है और न ही जनता की भावनाओं की चिंता। जो पुलिस अधिकारी सरकार के लिए समर्पित भाव से काम करते हैं, दिन-रात पसीना बहाकर आतंकियों को पकड़ते हैं, सरकार को उनकी भी चिंता नहीं है। उसे चिंता है तो केवल मुस्लिम वोट की ताकि 2014 के लोकसभा चुनाव में वह प्रदेश से अधिक से अधिक सीटें झटक सके और मुलायम सिंह को केंद्र में भी मनमाना खेल खेलने का मौका मिल सके।
जिस खालिद मुजाहिद की मौत पर प्रदेश में हंगामा हो रहा है, वह आतंकी संगठन हूजी का सक्रिय सदस्य था। 23 नवंबर 2007 को वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद की कचहरियों में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों में उसका हाथ था। इसी आरोप में उसे उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स और आतंकवाद निरोधी दस्ते के संयुक्त अभियान में बाराबंकी रेलवे स्टेशन परिसर के पास 22 दिसंबर 2007 को गिरफ्तार किया गया था। उसके पास से बड़ी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ और गोला बारूद समेत प्रतिबंधित हथियार मिले थे। उसके साथ उसके साथी तारिक काजिमी की भी गिरफ्तारी हुई थी। इन्हीं बम धमाकों में दो अन्य आतंकी मोहम्मद अख्तर और सजादुर्रहमान को भी बंदी बनाया गया था। इन सबको लखनऊ के जिला कारागार में निरुद्ध किया गया। इनकी पेशी समय-समय पर संबंधित अदालतों में होती थी। राज्य सरकार ने मुस्लिम वोटों के चक्कर में खालिद और तारिक पर से सभी तरह के मुकदमों को वापस करने का फैसला किया था जिसे बाराबंकी की स्थानीय अदालत ने खारिज कर दिया था।
चारों आतंकियों को 18 मई को लखनऊ कारागार से फैजाबाद की अदालत में पेशी के लिए भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पेश किया गया। लौटते समय तबीयत खराब होने पर खालिद की रास्ते में मौत हो गई। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत के कारणों का पता नहीं चल सका। उसका विसरा सुरक्षित कर लिया गया है। उसके साथ गए अन्य तीन आतंकियों का कहना है कि उसकी तबीयत वाकई खराब थी। बताते हैं, लू लग गई थी। माना जा रहा है कि हृदयगति रुकने से उसकी मौत हुई। इस सामान्य मौत को भुनाने का मौका भी सरकार ने नहीं छोड़ा। मुकदमा वापस लेने की कार्रवाई तो पहले ही कर चुकी थी, अब उसकी मौत हो जाने से वह मुद्दा हाथ से जाता देख सरकार सक्रिय हो गई। उसने पहले तो उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए। उसके बाद खालिद के परिवार के आगे वैसे ही समर्पण कर दिया जैसे प्रतापगढ़ के बलीपुर में भीड़ के हमले में सीओ जियाउल हक की मौत मामले में उनकी पत्नी और परिवार वालों की मांगों के आगे झुक गई थी। सरकार की ओर से सीओ की पत्नी और भाई को नौकरी के साथ 25-25 लाख रुपये की मदद (पिता और पत्नी को) दी गई। (इस मामले में उच्च न्यायालय सरकार को तलब कर चुका है)। ठीक उसी तर्ज पर सरकार ने वही किया जो खालिद के परिवार वालों ने कहा। यह भी नहीं सोचा गया कि इसका समाज और पुलिस विभाग पर कितना गलत संदेश जाएगा। खालिद के परिवार वालों ने सीबीआई से जांच की मांग की तो जांच उसे सौंप दी गई। घर वालों ने बाराबंकी के थाने में पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, तत्कालीन एडीजी बृजलाल (अब डीजी) समेत 42 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या की साजिश की तहरीर दी तो तत्काल इन सभी पर हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज कर लिया गया, बिना यह सोचे कि खालिद की सामान्य मौत हुई थी न कि हत्या। ये 42 पुलिसकर्मी ही पूरे मामले से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद के अब्दुल्ला बुखारी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात कर मुआवजे की मांग तक कर डाली। हालांकि न्यायालय में सरकार और उसके इशारे पर हुआ मुकदमा कतई टिक नहीं पाएगा लेकिन उससे सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की मंशा तो सामने आ ही गई।
दरअसल, जब भी समाजवादी पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश में आती है, मुस्लिम कट्टरवादी खुलकर सक्रिय हो जाते हैं। इस मामले में भी ऐसा हो रहा है। लखनऊ, बाराबंकी, जौनपुर, फैजाबाद समेत कई शहरों में मुसलमान खालिद की मौत को हत्या बताकर धरना प्रदर्शन तक कर रहे हैं। संबंधित पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी के साथ ही मुआवजे की मांग उठने लगी है। कानून-व्यवस्था को हाथ में लेने का कुप्रयास चल रहा है। फैजाबाद में तो हालात बेहद खराब हो गए हैं। वहां तो तोड़फोड़ तक हो गई। इसके विरोध में वकील समुदाय भी सड़कों पर सामने आ गया है। धमाके कचहरियों में हुए थे। उनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ था। वकीलों के लिए यह संवेदनशील मामला है।
उल्लेखनीय है कि तब भी सपा की ही सरकार थी जब डेनमार्क में बने कार्टून पर विवाद को लखनऊ में भुनाया गया था। तब कट्टरवादी मुसलमानों ने जमकर हंगामा किया था। राजधानी की टीले वाली मस्जिद से नमाज पढ़ने के बाद समूह में निकलकर सड़क पर पैदल मार्च करते हुए खूब तोड़फोड़ की। चार घंटे तक हंगामा चलता रहा, लेकिन साथ चल रही पुलिस में उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं हुई। उस दिन रपट लेने के लिए निकले पत्रकारों को भी पीटा गया था। उस समय गोमती किनारे पार्क में स्थित भगवान महावीर की तोड़ी गई प्रतिमा की मरम्मत अभी तक नहीं कराई गई है। पिछले साल फैजाबाद में दुर्गा पूजा के अवसर पर मूर्ति विसर्जन जुलूस पर हमला किया था। उसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। जमकर आगजनी की वारदातें हुई थीं।
पूर्व पुलिस उपमहानिदेशक विक्रम सिंह ने साफ कहा–
खालिद आतंकी था, आतंकवादी के रूप में पहचान बनी रहेगी
खालिद की मौत के बाद पूर्व पुलिस उप महानिदेशक विक्रम सिंह और वर्तमान पुलिस महानिदेशक बृजलाल समेत 42 पुलिस वालों पर हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस विभाग के अधिकारी हतप्रभ हैं। उनका कहना है कि इस तरह की कार्रवाई से तो आतंकियों और अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा और पुलिस के लिए काम करना मुश्किल होगा। उत्तर प्रदेश के तेज-तर्रार पुलिस उपमहानिदेशक के रूप में पहचान बनाने वाले आईपीएस अफसर (अब सेवानिवृत्त) विक्रम सिंह इस पूरे घटनाक्रम से खासे नाराज हैं। इनके ही समय में खालिद और तारिक की गिरफ्तारी हुई थी। उस समय बृजलाल एडीजी (कानून व्यवस्था) थे। जब खालिद की मौत हुई थी तब विक्रम सिंह ऋषिकेश (उत्तराखंड) में थे। निडर पुलिस अधिकारी रहे विक्रम सिंह का कहना है कि 'खालिद कल भी आतंकी था और आगे भी उसकी पहचान आतंकी के रूप में रहेगी। मुझे गर्व है कि मेरे नेतृत्व में काम कर रही पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। बिना सोचे-समझे, बिना जांच-परख के मुकदमा दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था। खालिद को अन्य खुफिया एजेंसियों के साथ सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। मुझे सीबीआई पर पूरा भरोसा है। जांच में दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा।' लखनऊ से शशि सिंह
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