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May 27, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दो प्रेरक जीवनी, दो जीवन-आदर्श

दिंनाक: 27 May 2013 12:33:36

किसी व्यक्ति को महापुरुष के रूप में तभी सम्बोधित किया जाता है, जब उसके जीवन के

हर पक्ष में हमें त्याग, कर्तव्यनिष्ठा, परहित, विलक्षण ज्ञान, सादगीपूर्ण जीवन या मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना परिलक्षित होती है। कहने का अर्थ यह है कि महापुरुष बनने के लिए बड़े-बड़े कार्य करना ही आवश्यक नहीं होता है, बल्कि जीवन के हर छोटे से छोटे कार्य को भी सरल, सहज और विशिष्ट प्रकार से करना होता है। भारतभूमि इस दृष्टि से हमेशा से ही समृद्ध रही है। पौराणिक-ऐतिहासिक काल से लेकर पिछली सदी तक ऐसी अनेक विभूतियों का इस पावन घरा पर अवतरण हुआ है जिन्होंने इसका मान पूरे विश्व में बढ़ाया और आज भी वे हमारे लिए आदर्श बने हुए हैं। ऐसी ही एक महान विभूति थे देश के दूसरे प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वालेलाल बहादुर शास्त्री। उनकी संपूर्ण जीवनी को बालो पयोगी/किशोरोपयोगी स्वरूप में लिपिबद्ध किया है। वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु ने इसमें उनके बचपन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक की जीवन यात्रा के अनेक ऐसे प्रसंगों को चार अध्यायों-सुबह, पूर्वाह्न, अपराह्न और संध्या में कथारूप में सम्मिलित किया गया है, जो हर किसी के लिए प्रेरणा के स्रोत बन सकते हैं।

पुस्तक के पहले अध्याय में बालक 'नन्हें' के जन्म से लेकर सत्रह वर्ष तक के किशोर जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है। बचपन में किस तरह विपदाओं और आर्थिक अभावों ने उनके जीवन को कष्टमय बना दिया था, बावजूद इसके उनके भीतर ईमानदारी, सादगी, विद्याध्ययन के प्रति लगन और देशभक्ति की प्रबल भावना थी, इसके कई उदाहरण इस खंड में हैं। 'पूर्वाह्न' खंड में असहयोग आंदोलन के दौरान ढाई वर्ष जेल में काटने के बाद से लेकर 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान उनके द्वारा किए गए संघर्ष, जेल यात्रा और इस दौरान उनके परिवार द्वारा झेली गई विपत्तियों का वर्णन है। पुस्तक के तीसरे खण्ड में 15 अगस्त, 1947 में लेकर शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा का वर्णन है। इस दौरान कई ऐसे प्रसंग दिए गए है, जो उनकी विलक्षण सादगी और राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रस्तुत करते हैं। पुस्तक के अंतिम खण्ड में पाकिस्तान के भारत पर आक्रमण से लेकर उनके देहावसन तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में उनके जीवन के अनेक चित्र भी संकलित किए गए हैं। यह पुस्तक केवल बच्चों, युवाओं को ही नहीं बल्कि उन राजनेताओं को भी अवश्य पढ़नी चाहिए जो देशहित में राजनीति करना चाहते हैं।

डा. राष्ट्रबंधु की ही दूसरी पुस्तक एक अन्य  देशभक्त पंडित मदन मोहन मालवीय की जीवनी पर आधारित है। हालांकि इसमें महामना के संपूर्ण जीवन के घटनाक्रमों को विस्तारपूर्वक संकलित  नहीं किया गया है, लेकिन फिर भी कुछ ऐसी प्रमुख घटनाओं को शामिल किया है जो बच्चों और किशोरों के लिए प्रेरक हो सकती हैं। बचपन में ही बालक मदनमोहन किस तरह विद्याध्ययन के लिए लालायित रहते थे, संगीत में भी उनकी कितनी गहरी रूचि थी, कैसे उन्होंने स्वयं को संयमी बना लिया था – ऐसे अनेक प्रेरक प्रसंग इसमें दिए गए हैं। उन्होंने अपने जीवन में अनेक भूमिकाएं निभाईं- अध्यापक, पत्रकार, अधिवक्ता, जनसेवक और सबसे बढ़कर राष्ट्रसेवक के रूप में पंडित जी ने उदाहरण ने आदर्श प्रस्तुत किया। धर्म में गहरी आस्था होने के बावजूद उनमें रत्ती भर भी सांप्रदायिकता का भाव नहीं था। हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्थान के मर्म को समझाते हुए उन्होंने आजीवन जो कार्य किए वे हमारे आदर्श हैं। वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय इसकी मिसाल है। जल्दबाजी में रेलयात्रा बिना टिकट के करने के बाद किराया डाक से रेल विभाग को क्षमा-पत्र के साथ भेजने जैसे उद्धरण की आज के दौर में उम्मीद करना ही व्यर्थ है। निश्चित ही ऐसे काम महापुरुष ही कर सकते हैं।

पुस्तक का नाम – लाल बहादुर शास्त्री

लेखक       –    राष्ट्रबंधु                 

प्रकाशक    –    नेशनल बुल ट्रस्ट, इंडिया

                नेहरू भवन, 5 इंस्ट्रीट्यल एरिया

                फेज-2, वसंत कुंज

                नई दिल्ली-70

पृष्ठ         – 55

मूल्य        – 30 रुपए

 

पुस्तक का नाम – महान देशभक्त

                 पंडित मदन मोहन मालवीय

लेखक       –    राष्ट्रबंधु                

प्रकाशक    –     किताबघर प्रकाशन,

                 24/4855,

                 दरियागंज, दिल्ली-02

पृष्ठ         – 40 मूल्य – 60 रुपए

फोन         –    (011) 30180011

कविताओं के विविध रंग

सुविख्यात रामकथा विशेषज्ञ, कथाकार, निबंधकार, उपन्यासकार, अनुवादक डा. रमानाथ त्रिपाठी यदा-कदा कविताएं भी लिखते रहे हैं। हांलाकि इस विधा में उनके मनोभाव कम ही व्यक्त हुए हैं लेकिन इनमें गुजरते हुए यह अनुभूति जरूर होती है कि जीवन के हर पल को एक कवि के रूप में उन्होंने समझा और उसे अभिव्यक्त भी किया है। उनका एकमात्र काव्य संकलन 'अपूर्वा' कुछ समय पूर्व ही प्रकाशित होकर आया है। कुल पांच खण्डों में विभक्त इन कविताओं के माध्यम से रमानाथ जी के भीतर एक कवि के जन्म से लेकर उसके क्रमिक विकास और प्रौढ़ता ग्रहण करने के स्थितियों को साफ तौर पर लक्षित किया जा सकता है।

 उनके द्वारा वर्ष 1940 से 1944 के मध्य किशोर रूप में लिखी गई कविताएं इस बात को प्रमाणित करती हैं कि रमानाथ जी का मन आरंभ से ही जीवन के निहितार्थ और उसके उद्देश्य को लेकर अपने आपसे सवाल करता रहा है। 'खोजता हूं क्या बताऊं' शीर्षक कविता में उनके मन की उस उलझन को देखा जा सकता है, जो सत्य की खोज में विकल है-

प्रिय, तुम्हारे नमन सुन्दर–

मदिर करते अर्द्धचेतन।

अर्ध बेसुध मन न भूला, ठौर किस

वह सत्य पाऊं।

इसी तरह वर्ष 1944 से 1950 तक की अवधि में लिखी गई कविता में कवि के युवा मन में उठने वाली प्रेम की गहन अनुभूति भी छंदमय होकर मन के कोमल भावों को सशक्त अभिव्यक्ति                देती है-

नरम नीड़ में रेशमी पर समेटे

अकेली कोई दीन विहगी किशोरी

तड़फ रो उठी चीर नन्हे से दिल को

लगी हूक सी हाय, इस चांदनी में।

निशा आज रोयी शिशिर चांदनी में

इसके बाद कालेज में अध्यापन के दौरान वर्ष 1950 से 1964 के दौरान लिखी गई कविताओं में उनके मनोभाव कई रूपों में व्यक्त हुए। कहीं भारत वर्ष को नवचेतना से ओत-प्रोत करने का युवाओं से आह्वान वह 'जगमग-जगमग भारत कर दो' कविता में करते हैं तो कहीं छंदमुक्त शैली में अपनी पत्नी से दाम्पत्य प्रेम की व्याख्या सहज रूप में 'वह वनिता' में दिखाई पड़ती है। इनके इतर व्यंग्यात्मक लहजे में वह 'हे जोरू के प्योर गुलाम' जैसी कविता भी लिखकर वे आश्चर्यचकित कर देते हैं। एक बानगी देखिए-

'तुम प्यारे चूल्हा फूंक रहे

वे अपने नैना आज रहीं।

धीमी महीन सी बोली में

फिल्मी गाना गुनगुना रहीं।'

इसके बाद वर्ष 1964 से अब तक की लिखी गई कविताओं में भी अनेक विषयों को सम्मिलित किया है। उनकी कविताओं के केन्द्र में 'करेला' 'आइसक्रीम', 'रोटी', 'घोंसला' से लेकर 'मलहम' और 'पंड़ा, जुगाडू और मैं' भी देखे जा सकते हैं। पुस्तक के अंतिम खण्ड में असमिया, बंगला, उड़िया आदि भाषाओं में अनूदित कविताओं को संकलित किया गया है। इसमें रवींद्र नाथ ठाकुर, देवकांत बरूआ और कानन मिश्र जैसे प्रसिद्ध कवियों की कविताएं सम्मिलित हैं। कह सकते हैं कि 'अपूर्वा' की कविताएं जीवन के विविध पलों को एक सजग विद्वान के अनुभव से समझने का अवसर देती हैं।

पुस्तक का नाम – अपूर्वा (काव्य संकलन)

लेखक       – डा. रमानाथ त्रिपाठी     

प्रकाशक    – अक्षय प्रकाशन,

                 2/18, अंसारी रोड

                 दरियागंज,

                 नई दिल्ली-02

पृष्ठ         – 147 मूल्य         – 300 रुपए

फोन         –    (011) 23270381

 

 

मारण मोहन सीख रहे हैं

पंकज परिमल 

आज दुधारू संबंधों का

पल–पल दोहन सीख रहे हैं

साधक का चोला सज धजकर

मारण–मोहन सीख रहे हैं।।

 

स्वार्थ मंत्र का सम्पुट देकर

सिद्धान्तों का पाठ कर रहे

साधारण कुरता सिलवाकर

आज राजसी ठाठ कर रहे

मांग रहे बलिदान जवानी

फिर बन जाते हैं वरदानी

वे सम्पत्ति का प्रेत बने हैं

जो पूरे निज साठ कर रहे

 

व्यापारी के हाथ तुला का

शक्ति संतुलन सीख रहे हैं

मेंढक रख–रख कर पलड़ों पर

भारोत्तोलन सीख रहे हैं।।

 

विधि नियमों में व्याख्याओं की

सीखे उलझी गांठ लगाना

आश्वासन देकर देने के

क्षण में सीखे दांत दिखाना

चोरी करे पहरूआ देख

उसे शत्रु की घात बताना

ठग को काम मिला है सबको

नैतिकता की शपथ दिलाना

 

गाली वाले अधर आज

सूक्तियों का उच्चारण सीख रहे हैं

शिलान्यास नरकों का करके

स्वर्गारोहण सीख रहे हैं।।

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