क्रिकेट पर डॉन का डाका?
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क्रिकेट भद्रजनों का खेल माना जाता
है। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है, पर आज की तारीख में पूरे भारतीय महाद्वीप में क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय खेल है। गली-गली में बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। आईपीएल में फटाफट मैच के कारण एक अलग रोमांच है। लोग बड़े चाव से फटाफट मैच को देखते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि आईपीएल के जरिये छोटे-छोटे कस्बों के लड़के देश के सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस कारण कई खिलाड़ियों को भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिला है। भारत-पाकिस्तान के बीच जब क्रिकेट मैच होता है तो सड़कें सूनी हो जाती हैं। यानी क्रिकेट लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। किन्तु इस खेल पर डॉन ने डाका डाल दिया है। डॉन दाऊद इब्राहिम की वजह से यह खेल बदनाम होने लगा है। डॉन और उसके गुगोंर् ने क्रिकेट को पैसा बनाने का जरिया बना लिया है। मैच खेलने से पहले ही यह तय होने लगा है कि कौन टीम जीतेगी और कौन हारेगी। लोग कहने लगे हैं कि सट्टेबाजों के कारण क्रिकेट में दर्शकों के साथ धोखा होने लगा है, दर्शकों के विश्वास की हत्या होने लगी हैे। इन लोगों ने क्रिकेट में खेल भावना ही नहीं रहने दी है। कुछ लोगों ने क्रिकेट को कालेधन को सफेद बनाने का जरिया बना लिया है। दाऊद इब्राहिम ने इस खेल को अपना खजाना भरने का माध्यम बना लिया है। यही लोग क्रिकेट मैच के दौरान नंग-धड़ंग लड़कियों को नचवाते हैं। यही लोग किसी गेंदबाज को 'नो बॉल' फेंकने के लिए 60-70 लाख रुपए का लालच देते हैं। इन्हीं लोगों ने क्रिकेट मैच को अश्लील विज्ञापनों और युवाओं को भटकाने वाले नारों का अड्डा बना दिया है। इन्हीं लोगों ने क्रिकेट को बदनाम किया है।
क्रिकेट के गिरते इस स्तर से सवोर्च्च न्यायालय भी चिन्तित है। 21 मई को एक जनहित याचिका की सुनवाई करने के बाद सवोर्च्च न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को कहा है कि यह खेल भद्रजनों का ही खेल बना रहे इसकी चिन्ता वह करे। इस याचिका में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) पर रोक लगाने की मांग की गई थी। सवोर्च्च न्यायालय ने आई पी एल पर रोक लगाने से मना कर दिया। पर न्यायालय ने बीसीसीआई को कई निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने बीसीसीआई के कामकाज के तरीके पर टिप्पणी करते हुए कहा कि समस्या तो बीसीसीआई का रवैया है और यह बदलना चाहिए।
यानी यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि आईपीएल में जो कुछ हो रहा है उसके लिए बहुत हद तक बीसीसीआई जिम्मेदार है। 2008 में जब से आईपीएल शुरू हुआ है तब से फिक्सिंग की गूंज सुनाई देने लगी थी, फिर भी बीसीसीआई ने दोषी खिलाड़ियों और सट्टेबाजों की तह तक जाने की कोशिश नहीं की। 2012 में बीसीसीआई जरूर कुछ हरकत में आया और उसने फिक्सिंग के आरोप में कम प्रसिद्ध चार खिलाड़ियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। ये खिलाड़ी हैं टीपी सुधीन्द्र, मोहनीश मिश्र, अमित यादव और शलभ श्रीवास्तव। किन्तु जिन सट्टेबाजों ने इन खिलाड़ियों को गलत रास्ता दिखाया उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस कारण ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ा और उसी का परिणाम है कि आज अनेक खिलाड़ी, सट्टेबाज और भारत विरोधी कुछ तत्त्व क्रिकेट को कलंकित करने में लग गए हैं। इन लोगों का जाल पाकिस्तान से लेकर दुबई तक फैला हुआ है। इस जाल को तोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि इस फिक्सिंग के जरिये जो पैसा कमाया जा रहा है उससे कहीं न कहीं भारत के शत्रुओं को लाभ पहुंचाया जा रहा है। खैर, यह तो हमारे तन्त्र का काम है। वह जांच करे और दोषियों को सजा दिलाए। किन्तु यहां कुछ सवाल भी उठ रहे हैं जिनका जवाब क्रिकेट प्रेमियों को मिलने चाहिए। क्या इस सट्टेबाजी के खेल ने मैच फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार श्रीसंत, अजीत चंदीला और अंकित चौहान जैसे उभरते खिलाड़ियों का कैरियर खत्म नहीं कर दिया है? ये खिलाड़ी ऐसे साधारण परिवारों से आये हैं, जहां लोग अपने बच्चों को अभी भी संस्कार देते हैं। शायद इन खिलाड़ियों को संस्कार देने में कहीं थोड़ी कमी रह गई। तभी ये लोग कैरियर का ध्यान नहीं रख पाए और सट्टेबाजों के जाल में फंस गए। वास्तव में ये सब तो सिर्फ उस खेल के मोहरें हैं जिस खेल का संचालन दुबई और कराची से होता है। साधारण घरों से आने वाले इन क्रिकेटरों ने पैसों के लालच में आकर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। पर इस प्रसंग ने क्रिकेट के उन काले पन्नों को भी खोल दिया है जिन पर दाऊद इब्राहिम की करतूतें अंकित हैं।
क्रिकेट में मैच फिक्सिंग कोई नई बात नहीं है। इसकी शुरुआत 1980 के दशक में ही हो गयी थी। 1985 में इसकी चर्चा उस समय अधिक हुई जब इसके साथ कुख्यात डॉन दाऊद इब्राहिम का नाम जुड़ा। दाऊद के गुर्गे खिलाड़ियों को धमका कर मैच का मनचाहा परिणाम निकालते थे।
सन् 1999 में भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कप्तान अजहरुद्दीन, अजय जडेजा ,अजय शर्मा और दक्षिण अफ्रीकी टीम के कप्तान हैसी क्रोनिये पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे। उस समय भी इसके पीछे दाऊद का नाम आया था। अजहरुद्दीन एवं अन्य पर लगे आरोपों की जांच सीबीआई ने की थी। पर्याप्त सबूतों ने उन आरोपों को सही भी ठहराया था। किन्तु कानूनी दांव-पेंच की वजह से उन खिलाड़ियों को कोई सजा नहीं मिल पाई। हालांकि बीसीसीआई ने उन्हीं सबूतों के आधार पर अजहरुद्दीन पर आजीवन प्रतिबंध लगाया था जो अब हटा लिया गया है और अब वे सांसद भी हैं। अजय जडेजा पर से भी प्रतिबंध हट गया है। अजय शर्मा अभी भी प्रतिबंधित हैं।
कानून के जानकारों का मानना है कि कानून की किसी भी धारा में मैच फिक्सिंग को अपराध नहीं माना गया है। इसलिए शायद ही किसी 'फिक्सर' को सजा मिले। बीसीसीआई कुछ ऐसे कदम उठाए जिनसे इस खेल के प्रति लोगों का विश्वास बना रहे और भारत विरोधी तत्त्व किसी भी मैच को प्रभावित न कर पाएं। यह राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से भी जरूरी है।
आईपीएल मैचों की फिक्सिंग को लेकर अब तक 19 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। गिरफ्तारियों की सूची में विख्यात अभिनेता स्व. दारा सिंह के बेटे विन्दु सिंह का भी नाम शामिल हो गया है। यह सूची रोज बड़ी होती जा रही है। बीसीआई के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मैयप्पन भी शक के दायरे में आ चुके हैं। इसलिए अब यह समय आ गया है कि क्रिकेट को कलंकित करने वालों को सजा मिलनी ही चाहिए।
पूर्व क्रिकेटरों का कहना है …
'आईपीएल में क्रिकेटरों को अच्छी रकम मिलती है, बावजूद इसके कुछ खिलाड़ी गलत रास्ता अपनाते हैं जो चौंकाने वाला है। हमें जांच का इंतजार करना होगा।'
– सुनील गावस्कर
'मैं हैरान, निराश और हताश हूं। स्पॉट फिक्सिंग का साया बना हुआ है और मैं जानता हूं कि बीसीसीआई और राजस्थान रॉयल्स इसकेप्रति शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाएगा।'
– राहुल द्रविड़
'इस तरह के भ्रष्टाचार के लिए खिलाड़ी ही जिम्मेदार होता है। जो कुछ हुआ उससे मैं बहुत निराश हूं। जो भी खिलाड़ी दोषी पाए जाएं उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा देना चाहिए।'
– सौरव गांगुली
'यह क्रिकेट के लिए काला दिन है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इसमें नामी खिलाड़ी शामिल हैं। दोषी पाए जाने पर इन्हें 10 से 12 साल जेल होनी चाहिए और आजीवन प्रतिबंध।'
– सैयद किरमानी
'यह तो होना ही था और दोबारा भी होगा, अब भी कड़े कदम नहीं उठाए गए तो। पिछली बार आईपीएल में पांच खिलाड़ी फिक्सिंग में पकड़े गए और उन पर सिर्फ प्रतिबंध लगा।'
– कीर्ति आजाद
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