लखनऊ में भाऊराव देवरस स्मृति व्याख्यान
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भारत के नेताओं की ढिलाई
न पाकिस्तान से जमीन ली, न चीन को रोका
पिछले दिनों लद्दाख में चीनी घुसपैठ ने भारत के राजनीतिक नेतृत्व की अदूरदर्शी नीतियां तथा रणनीतिक असफलता को रेखांकित किया है। 1947 के बाद देश की सवा लाख वर्ग किमी. भूमि गंवाने के बाद भी आज हम युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं।' यह कहना था रा.स्व.संघ के अ.भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार का। वे गत दिनों लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में 20वें भाऊराव देवरस स्मृति व्याख्यान को संबोधित करते रहे थे। व्याख्यान का विषय 'जम्मू-कश्मीर-तथ्य, समस्या और समाधान' था।
श्री अरुण कुमार ने कहा कि चीन के साथ सीमाओं का स्पष्ट निर्धारण न होने की बात बेमानी है। 1842 में युद्ध में पराजित होने के बाद चीन ने चुशूल की संधि की थी जिसमें उसने मानसर से आगे न आने का वचन दिया था। चीन ने लंबे समय तक इस संधि का पालन किया। लेकिन इधर आकर सीमा पर विवाद शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य एक समग्र इकाई है जिसमें पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान भी शामिल हैं। राज्य का भारतीय संघ में विलय अंतिम और विवाद से परे है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर सुरक्षा परिषद् ने प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान को यह पूरा क्षेत्र खाली करने और भारत द्वारा उस पर अपना नियंत्रण स्थापित करने को कहा। लेकिन हमारी सरकार उसका पालन कराने के लिए पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने में असमर्थ रही। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ले.ज. (से.नि.) निरंजन सिंह मलिक थे, जबकि अध्यक्षता अधिवक्ता हरगोविंद सिंह परिहार ने की।
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