भारत में चीनी प्रधानमंत्री
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वही हुआ जो ली चाहते थे?
सीमा लांघने पर टालमटोल अपने फायदे के करार किए
चीन के कूटनीतिक इतने चतुरसुजान हैं कि जिस देश की धरती पर उनके सैनिक चोरी छुपे आ धमकते रहे, जहां के सीमान्त गांवों के भोले-भाले बाशिंदों को धमकाकर उनकी अपनी जमीन पर मवेशी चराने से मनाही कर दी, जिन्हें अपनी आजादी के जश्न में अपने ही देश का झण्डा फहराने से मना कर दिया, और तो और जिस देश के साथ किए तमाम करारों को धता बताते हुए उसकी और जमीन कब्जाने की गरज से 15 दिन तक अपने 30 से ज्यादा सैनिक डेरे-तंबू गाड़ कर जमाए रखे, उसी देश के सत्ताधीशों से उन्होंने अपने नेता की अगवानी कराई। कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने न केवल उनके चलने को लाल कालीन पेश की, बल्कि उनकी शान में लजीज व्यंजनों की दावत भी दी। चीनी प्रधानमंत्री ली कीकियांग ने 19 से 21 मई के बीच अपनी भारत यात्रा के दौरान चेहरे और शरीर की भाव- भंगिमाओं से भारत के कमजोर रीढ़ के नेताओं को भरमाने की कोशिश में यूं भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। विस्तारवादी मंसूबों पर कायम बीजिंग की कम्युनिस्ट सरकार में हाल ही में प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले ली ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनकर यह संदेश देने की एकतरफा कोशिश की कि 'भारत उनके लिए कितना अहम है।'
21 मई को नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ली ने बातचीत में लद्दाख में घुसपैठ पर भारत की आपत्ति तो सुन ली, पर उसके लिए न तो उन्होंने गलती मानी, न वादा किया कि आगे से ऐसा नहीं होगा। सीमा संबंधी बात तो हुई पर सिर्फ इतनी कि दोनों देशों के अधिकारी इस तरफ तेजी से काम करें और तमाम विवादों का दोनों की रजामंदी से समाधान करें। ली बार-बार यही रट लगाते रहे कि 'हमारे और दुनिया के लिए भारत-चीन नजदीकी का बहुत महत्व है।'
दोनों देशों के प्रतिनिधिमण्डलों के बीच सीमा विवाद पर आगे काम बढ़ाने की चर्चा के अलावा आठ ऐसे करारों पर दस्तखत किए गए जिनमें चीन का ही पलड़ा भारी रहने वाला है या जिनके क्रियान्वयन में चीन को फायदा होने वाला है। मिसाल के लिए पहला करार है, चीन ब्रह्मपुत्र के जल स्तर और जल प्रवाह की जानकारी देगा। वह ये दे भी दे, तो भी ब्रह्मपुत्र को वह कई जगहों पर बांधों में बांध चुका है, तिब्बत में एक बड़ा बांध बनकर तैयार है, भारत की लाख आपत्तियों के बावजूद उसने तिब्बत में काम जारी रखा हुआ है। दूसरा करार है, चीन में पहुंचने पर कैलास-मानसरोवर के यात्रियों को वायरलैस और स्थानीय सिम कार्ड दिए जाएंगे। वैसे अब तक तो चीन उन यात्रियों को बदबूदार बिस्तर, गंदे होटल, खराब खाना और कागजी कार्रवाई में कई दिनों की परेशानी ही देता आ रहा है। करार के बाद उन चीजों में सुधार होगा ऐसा लगता तो नहीं है। तीसरा करार, वाणिज्य और उद्योग में सहयोग बढ़ाएंगे, व्यापार असंतुलन दूर करेंगे। यहां चीनी कंपनियों ने पहले ही सस्ता और घटिया माल भेजकर भारत के लघु उद्योगों को घाटे में ला खड़ा किया है, इस करार से वहां के माल के लिए और रास्ता साफ होगा, इसमें शक नहीं। चीन की तरफ से भारत को 2012-13 में 54.3 अरब डालर का माल भेजा गया जबकि भारत से चीन ने सिर्फ 13.52 अरब डालर का ही माल लिया। इतना असंतुलन! भारत का 40.78 अरब डालर का व्यापार घाटा क्या दूर हो पाएगा? चौथा करार, दोनों देशों के लोगों में आपसी सहयोग बढ़ाएंगे। पांचवा, समुद्री उत्पादों का आयात-निर्यात बढ़ेगा। वैसे इन उत्पादों की पैदावार भारत के मुकाबले चीन में अधिक है इसलिए वहीं से ज्यादा माल आएगा। छठा, शहरों में सीवेज वगैरह में तजुर्बे साझे किए जाएंगे। सातवां, सिंचाई और जल संसाधन में सहयोग बढ़ेगा, और आठवां, साहित्य का अनुवाद और प्रकाशन बढ़ेगा।
ऐसे तमाम करारों की आढ़ में चीन भारत को नजदीकी बढ़ाने की घुट्टी जरूर पिलाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन नेहरू युग के तजुर्बे को देखते हुए कम्युनिस्ट बीजिंग पर कितना भरोसा किया जा सकता है कितना नहीं, इसे भारत का सत्ता-अधिष्ठान अच्छे से समझ ले और किसी खुशफहमी के धंुधलके में भारत की भौगोलिक अखंडता को दाव पर न लगने दे। कसौटी है तो बस यही। प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी
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