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पानी बचाने के लिए प्रसिद्ध गैर-सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल ने बहुत अच्छा काम किया है। सुलभ ने पानी कम खर्च करने वाली 'टायलेट सीट' का निर्माण किया है। जहां भी सुलभ शौचालय हैं वहां ऐसी ही सीटें लगी हैं। सुलभ की 'टायलेट सीट' की नकल कोई भी राजमिस्त्री कर सकता है। सीट के नीचे 'वाटर सील' होती है। सुलभ ने इस सील को ऐसा बनाया है कि कम पानी से ही पूरा मल नीचे चला जाता है। सुलभ के कम पानी खर्च करने वाले 'फ्लश' भी हैं, जिनमें सामान्य 'फ्लश' से आधा पानी लगता है। सुलभ के शौचालयों में इस्तेमाल होने वाला पानी भी बेकार नहीं जाता है। उस पानी को जमीन के अन्दर एक टंकी में जमा किया जाता है। कई प्रक्रियाओं के बाद उसे साफ किया जाता और वही पानी फिर से शौचालय में प्रयोग होता है। टंकी के अन्दर मल से जो गैस बनती है उसे भी कई रासायनिक तत्वों से गुजारा जाता है और उस गैस का प्रयोग बल्ब जलाने, जेरनेटर चलाने, खाना पकाने के काम में आता है। सुलभ के संस्थापक पद्मश्री बिन्देश्वर पाठक ने पाञ्चजन्य से बातचीत करते हुए कहा कि पानी के बिना जीव मात्र की कल्पना नहीं की जा सकती है फिर भी पानी की चिंता कोई नहीं कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसकी संस्कृति, इसकी आर्थिक दशा और इसकी प्रकृति के अनुरूप योजना नहीं बनाई जाती है। यह देश स्विट्जरलैंड नहीं है ,जहां आबादी कम है और संसाधन अधिक हैं। किन्तु यहां की योजनाओं में स्विट्जरलैंड जैसे देशों की छाप दिखती है। डॉ. पाठक ने यह भी कहा कि पानी को नहीं बचाया गया तो तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो सकता है। उन्होंने कहा कि पानी के स्रोतों को हर हाल में बचाया जाना चाहिए। पानी का एक अहम स्रोत है कुआं। हर कुंए को अन्दर से चालीस फीट तक पक्का किया जाना चाहिए और नीचे यूं ही छोड़ देना चाहिए। इससे बरसात के समय में भी कुंए का पानी प्रदूषित नहीं होगा। उन्होंने यह भी बताया कि पानी कम है पर उसे भी हम प्रदूषित कर देते हैं। शहरों के गंदे नाले सीधे जल के मुख्य स्रोतों में गिर रहे हैं। इस कारण नदियां भी मर रही हैं। अभी देश में 'सीवर सिस्टम' को पूरी तरह लागू करने में हजारों साल लग जायेंगे। क्योंकि 1817 से अब तक दुनिया के सिर्फ 270 नगरों में सीवर बने हैं, जबकि 7933 शहर हैं। इसलिए मेरा कहना है कि भारत को अपने अनुकूल काम करना चाहिए। पानी तभी बचेगा जब हम अपने जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करेंगे और उनका संरक्षण करेंगे।
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