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प्रसिद्ध जल विशेषज्ञ राजेन्द्र सिंह ने पाञ्चजन्य से बातचीत करते हुए कहा कि चाहे केन्द्र सरकार हो, राज्य सरकारें हों या विभिन्न नगरों की नगर पालिकाएं ये सब लोगों को पेयजल उपलब्ध नहीं करा सकती हैं। ये सब पानी के व्यापार को प्रोत्साहित कर रही हैं। भारत वह भूमि है, जहां गर्मियों मेंं राहगीरों को पानी पिलाने की व्यवस्था जगह-जगह होती थी। कुछ संवेदनशील और हृदयवान लोग अभी भी प्याऊ लगवाते हैं। किन्तु इसी देश की सरकारें अब पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने में लगी हैं। सरकारी नीतियों की वजह से ही भारत में 50 हजार करोड़ से ज्यादा का पानी का व्यापार होता है। पानी प्रकृति की देन है, उसके बिना जीना असंभव है। जीवनदायिनी पानी को बेचना संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है। हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है। पानी का निजीकरण न होकर सामुदायीकरण होना चाहिए, तभी हम जल समस्या से निपट सकते हैं। जल का मुख्य स्रोत तालाब है। किन्तु तालाबों का शोषण हो रहा है, अतिक्रमण हो रहा है, उन्हें प्रदूषित किया जा रहा है। तालाबों का शोषण और अतिक्रमण बन्द हो। उन्हें प्रदूषण-मुक्त किया जाए, नहीं तो हम एक-एक बूंद पानी के लिए तरसेंगे।
इन तथ्यों पर भी नजर डालें
l विश्व की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या को शुद्ध पेयजल नहीं मिलता है।
l स्वच्छ पेयजल न मिलने के कारण विकासशील देशों में प्रतिवर्ष करीब 22 लाख लोग मरते हैं, जिनमें सर्वाधिक बच्चे हैं।
l भारत के ज्यादातर भागों में पेयजल की कमी है।
l उड़ीसा, झारखण्ड, बिहार, असम, प. बंगाल, उ.प्र. जैसे कई राज्यों के सुदूर गांवों के लोग नदी या नालों का पानी बिना निथारे पीते हैं।
l पानी को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2013 को अन्तरराष्ट्रीय जल सहभागिता वर्ष घोषित
किया है।
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