उड़ीसा में 10वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम घोषित
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सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ने वाले विद्यार्थी का केवल यहां करियर ही नहीं बनाया जाता, बल्कि यहां उसका जीवन गढ़ा जाता है। उसमें मानवता की चेतना भरने तथा संस्कार के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण के लिए समर्पित होने की मानसिकता तैयार की जाती है।
विद्या भारती से जुड़े विद्यालयों के 98.52 प्रतिशत छात्र सफल
76.60 प्रतिशत छात्रों की प्रथम श्रेणी
शिक्षा विकास समिति ने किया मेधावी छात्रों का सम्मान
छात्रों के शिक्षकों और अभिभावकों का भी सम्मान
उड़ीसा में 10वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम घोषित हो गए हैं। अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान विद्या भारती से संबद्ध शिक्षा विकास समिति, उड़ीसा द्वारा संचालित सरस्वती शिशु विद्या मंदिरों का प्रदर्शन विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी अच्छा रहा। इन विद्यालयों के 98.52 प्रतिशत विद्यार्थी 10वीं की परीक्षा में सफल हुए हैं।
जानकारी के अनुसार शिक्षा विकास समिति, उड़ीसा द्वारा संचालित 897 विद्यालयों के कुल 11,432 विद्यार्थी इस बार 10वीं की परीक्षा में बैठे थे। इनमें से 98.52 प्रतिशत छात्र-छात्राओं को सफलता प्राप्त हुई है। 76.60 प्रतिशत अर्थात 8758 छात्र- छात्रा प्रथम श्रेणी, 16.65 प्रतिशत अर्थात 1903 द्वितीय श्रेणी तथा 5.02 प्रतिशत अर्थात 602 तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं। राज्य के 128 शिशु मंदिर विद्यालय ऐसे हैं जहां का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहा है।
10वीं की परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को सम्मानित करने के लिए शिक्षा विकास समिति, उड़ीसा द्वारा गत दिनों भुवनेश्वर में मेधावी छात्र अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिरों के 70 ऐसे विद्यार्थियों का सम्मान किया गया जिन्होंने ने इस बार 10वीं की परीक्षा में 94 प्रतिशत से अधिक अंक अर्जित किए हैं।
सम्मान समारोह में सम्मानित किए गए विद्यार्थियों के गुरुओं तथा अभिभावकों का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री अजीत त्रिपाठी थे, जबकि मुख्य वक्ता थे विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष डा. गोविंद प्रसाद शर्मा। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षा विकास समिति, उड़ीसा के प्रदेश अध्यक्ष डा. बांछानिधि पंडा ने की। प्रतिनिधि
'युगपुरुष स्वामी विवेकानन्द' लोकार्पित
स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में गत 12 मई को नई दिल्ली में 'युगपुरुष स्वामी विवेकानन्द' पुस्तक का लोकार्पण हुआ। स्वामी विवेकानंद के जीवन और विचारों पर आधारित पुस्तक का लोकार्पण रा.स्व.संघ के अ.भा. कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने किया। इस अवसर पर श्री इन्द्रेश कुमार के साथ दिल्ली की पूर्व महापौर श्रीमती आरती मेहरा, विधायक श्री जगदीश मुखी एवं पूर्व सैनिक सेवा परिषद के सेवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कर्नल (से.निवृत) एम.एम. गुप्ता भी मंच पर उपस्थित थे। पुस्तक की सामग्री का संकलन श्री मदन लाल आहूजा ने किया है, जबकि पुस्तक की प्रस्तावना रा.स्व.संघ के उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख श्री नरेन्द्र कुमार ने लिखी है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दू जागरण के अ.भा. सह संयोजक श्री अशोक प्रभाकर सहित बड़ी संख्या में दिल्ली के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
'विवेकानंद और भारत' विषयक संगोष्ठी
सशक्त भारत के निर्माण का चिंतन
स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती समारोह समिति के तत्वावधान में गत 11 मई को रांची (झारखंड) में 'विवेकानंद और भारत' विषयक गोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें बड़ी संख्या में रांची के प्रबुद्ध नागरिकों ने भाग लिया।
गोष्ठी के मुख्य अतिथि झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद थे, जबकि मुख्य वक्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार। मंच पर आयोजन समिति के अध्यक्ष श्री हिमांशु कुमार वर्मा एवं रा.स्व.संघ के क्षेत्र संघचालक श्री सिद्धिनाथ सिंह भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता एवं स्वामी विवेकानंद के चित्रों पर पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।
गोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का प्रादुर्भाव ऐसे समय में हुआ जब भारत अंधकारमय काल से गुजर रहा था। स्वामी विवेकानंद ने लगभग पांच वर्ष तक पराधीन भारत का भ्रमण कर भारत के दु:ख-दर्द को जाना। केवल साढ़े उन्तालिस वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने भारत के सुप्त स्वाभिमान को जगाया। मरणासन्न हिन्दू समाज में प्राण फूंकने का प्रयास किया। भारत ही नही, बल्कि विदेशों में भी हिन्दू संस्कार और संस्कृति, ज्ञान और विज्ञान का डंका बजाया।
श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि वास्तव में आधुनिकता के इस दौर में हमने हिन्दू मूल्यों को दफन कर रखा है जो इस देश को संक्रमण काल में डाले हुए है। देश की आजादी की लड़ाई में गांधीजी से लेकर जितने बड़े नेता हुए जिन्होंने देश को सबकुछ माना, उनके जीवन की प्रेरणा स्वामी विवेकानन्द थे। स्वामी विवेकानन्द ने अपनी अल्पायु में जो कर दिखाया, वह कोई हजारों वर्षों में भी नहीं कर सकता। वर्तमान परिस्थिति में स्वामी विवेकानंद के आदर्शों एवं विचारों पर चलकर ही सशक्त भारत का निर्माण किया जा सकता है।
मुख्य अतिथि श्री विक्रमादित्य प्रसाद ने कहा कि वर्तमान में भी स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता है। धन्यवाद ज्ञापन श्री हिमांशु कुमार वर्मा ने किया। विसंके, झारखंड
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