'आर्कटिक काउंसिल' में भारत, पर्यवेक्षक का दर्जा
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'आर्कटिक काउंसिल' में भारत, पर्यवेक्षक का दर्जा
वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन के उपचार में बढ़ेगी भारत की भूमिका?
उत्तर ध्रुव और वहां रहने वालों की चिंता करने के लिए बनी 'आर्कटिक काउंसिल' ने भारत को बतौर सदस्य शामिल कर लिया है। यह परिषद उत्तर ध्रुव से जुड़े मौसमी परिवर्तनों, धरती पर बढ़ती तपन, पर्यावरण संरक्षण, इलाके के प्राकृतिक संसाधनों का समझदारी से इस्तेमाल और कुदरती माहौल को बनाए रखते हुए वैज्ञानिक अनुसंधान के विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों की चिंता करती है। उत्तर ध्रुव पर भारत का एक स्थायी अनुसंधान केन्द्र बना हुआ है। इसको काम शुरू किए पांच साल हो गए हैं और अब जाकर भारत को आखिरकार इस परिषद की सदस्यता हासिल हुई है। दुनिया में जलवायु परिवर्तन पर बढ़ती चिंताओं को देखते हुए भारत के लिहाज से यह एक संतोष की बात है कि उसे पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है। परिषद के स्थायी सदस्य देश हैं-अमरीका, कनाडा, नार्वे, रूस, फिनलैंड, आइसलैंड और स्वीडन। हाल ही में स्वीडन में हुई परिषद की बैठक में भारत के अलावा चीन, इटली, जापान, कोरिया और सिंगापुर को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है।
अहमदेनिजाद को मिल सकती है चुनावी–कायदे तोड़ने की सजा
74 कोड़े या छह महीने जेल
ईरान के मजहबी नेता अयातुल्ला अली खामीनी से इन दिनों 36 का आंकड़ा होने के चलते वहां के राष्ट्रपति महमूद अहमदेनिजाद पर एक के बाद एक मुसीबतें आ रही हैं। अभी पिछले दिनों खामीनी ने उनकी सरकार की परिवार नियोजन नीति की खुलेआम बखिया उधेड़ते हुए उसे मुल्क की भलाई के लिए गलत बताया था। उन्होंने ईरान वालों से परिवार बड़े करने को कहा। परिवार सीमित करने वाली सरकारी नीति का अब वहां कोई मोल नहीं बचा।
अब एक बार फिर अहमदेनिजाद सबकी घूरती आंखों के निशाने पर हैं। पिछले दिनों वे अपने मातहत चीफ ऑफ स्टाफ का चुनावों के लिए पर्चा भराने साथ चल दिए। राष्ट्रपति रहते उनका साथ जाना चुनावी कायदों के खिलाफ जाता है सो सबकी नजरें फिर उन्हीं पर जा टिकीं। अखबारों ने खूब लिखा। 11 मई को सरकारी टेलीविजन चैनल ने चीफ ऑफ स्टाफ रहीम माशेई के साथ खड़े मुस्कुराते अहमदेनिजाद की 'फुटेज' दिखा दी, जिसमें अनजाने में अहमदेनिजाद अपने सहयोगी के कान में यह खुसफुसाते सुन लिए गए कि अगर चुनाव पर्चा भराने के लिए मेरे तुम्हारे साथ आने पर सवाल उठें तो 'कह देना मैं आज छुट्टी पर था'। वहां चर्चा है कि अगर चुनावी कायदे तोड़ने का आरोप साबित होता है तो अहमदेनिजाद को 74 कोड़ों या छह महीने जेल की सजा सुनाई जा सकती है।
मुल्क के मामलों पर नजर रखने वाली 'गार्जियन काउंसिल' ने 12 मई को राष्ट्रपति के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी। उसका कहना था कि अहमदेनिजाद ने जनकोष के कायदे तोड़े हैं। काउंसिल पर राष्ट्रपति बनने के इच्छुक सभी 680 उम्मीदवारों की जांच का जिम्मा है। इसमें माशेई भी शामिल हैं। चूंकि अहमदेनिजाद को तीसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने से संविधान मना करता है सो वे अपने बाद अपने पसंदीदा माशेई को यह पद दिलाने के लिए जीतोड़ कोशिश में लगे हैं। वहां राष्ट्रपति पद के चुनाव 14 जून को होने हैं। उनके विरोधियों का कहना है, वे चुनाव प्रचार में जनता का पैसा खर्च कर रहे हैं।
ईरान के मौलवी यूं भी माशेई से नाराज हैं क्योंकि वे कुछ ज्यादा ही 'बड़ा दिल' रखते हैं, इस्रायल के प्रति कथित तौर पर नरम हैं। एक बार उन्होंने कहा था कि 'ईरान वाले दुनिया के सब लोगों के दोस्त हैं-यहां तक कि इस्रायल के भी।' इसलिए पलड़े का झुकाव अयातुल्ला के चहेते, तेहरान के महापौर मोहम्मद बागेर कलीबाफ और पूर्व पुलिस प्रमुख अली अकबर विलायती की तरफ है।
तुर्की में सीरियाई शरणार्थियों पर आफत
11 मई को तुर्की के सरहदी शहर रेहनली में दो बम धमाके होते ही स्थानीय तुर्की वालों का सीरियाई शरणार्थियों के खिलाफ उबल रहा गुस्सा फूट पड़ा। जैसे ही खबर फैली कि धमाकों में 46 लोग मारे गए हैं, सड़क पर करीब सौ लोगों का जत्था सीरिया से भागकर आए हावम परिवार पर टूट पड़ा। उस परिवार की दुकान के सामने पहुंच कर भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए-'सीरिया वालों को मार डालो', 'तुम सीरिया वाले हमारे यहां बम फोड़ रहे हो'। तुर्की के लोग बम धमाकों और ऐसी दूसरी हरकतों के पीछे सीरिया से वहां आकर बसे लोगों का हाथ बताते हैं। सीरिया से अब तक वहां 3 लाख शरणार्थी आ चुके हैं और सारे के सारे सरहद पर बने शरणार्थी शिविरों में ही नहीं रह रहे हैं। तुर्की के प्रधानमंत्री इरदोगन और उनके आला मंत्री धमाकों के पीछे सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की गोपनीय पुलिस, मुखाबरात को जिम्मेदार ठहराते हैं। आलोक गोस्वामी
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