|
दाग: उजले चेहरों की कालिख उजागर करना सीबीआई का काम है। मगर इस बार तो कमाल ही हो गया। जांच रिपोर्ट के लिए ताका–झांकी और काटा–पीटी का कांग्रेसी खेल देश की शीर्ष अदालत में खुल गया। कोर्ट ने कह दिया कि सीबीआई 'सरकारी तोता' है। …यानी जैसा रटाते हैं वैसा बोलता है। खुद जांच एजेंसी का हलफनामा सरकार के लिए यह मुसीबत लेकर आया है। 'मिट्ठू' की गवाही मालिक के खिलाफ जाने के बाद से सत्तापक्ष के 'तोते' उड़े हुए हैं। अब बलि भले अश्विनी कुमार की हो, सवला सीधे पीएमओ से है, जिसका इस मामले में लगातार दखल रहा है। हर कलंक को ढकने के लिए जिस छवि की दुहाई देते हो वहां से यह सब होता है? एक कहावत है, 'ना खाने वाले का निवाला देखकर डर गए।' इस मामले में सबसे बड़ा दाग प्रधानमंत्री कार्यालय पर है। कैसा चेहरा, कैसे काम! देश डरा हुआ है।
दादागिरी: इटली मूल के लेखक मारियो पुजो का एक उपन्यास है 'गॉडफादर'। बिगड़ैलों के बिगड़े काम बनाने वाले माफिया माई–बाप की कहानी। माफिया की कार्यशैली को सफाई से उकेरती कृति किताबों के 'शेल्फ' में जंच सकती है मगर राजनीति में माफिया शैली का क्या काम! राजनीति में बिगड़ैलों का और उन्हें बचाने वाले कुनबे का क्या काम! धमकी, धौंस, दादागिरी का हमारे इस लोकतंत्र से क्या लेना–देना! मगर नहीं, देश को यह दिन भी देखना था।
सदन ने ये तेवर नहीं देखे थे, पत्रकारों ने तमतमाहट नहीं देखी थी। खुद नेता प्रतिपक्ष ने पहले ऐसी त्योरियां नहीं देखी थी। सोनिया माइनो गांधी का यह अलग ही रंग था। भ्रष्टाचारी मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर करने की बजाय अभयदान की सी मुद्रा…'दादागिरी ऐसी ही चलेगी' की गुरर्ाहट!
इसे आप क्या कहेंगे–शीर्ष सत्ता के अहंकार की गूंज, या फिर देश को कमजोर करने वाले भ्रष्टाचारी तंत्र की हिम्मत बढ़ाने की कोशिश? वैसे, दोनों ही स्थितियां लोकतंत्र के लिए घातक हैं। यदि इस 'ललकार' में सत्तामद या वंश विशेष का दर्प छिपा है तो कांग्रेस को अपने ही पाले में मुलायम, ममता और माया जैसे दिग्गजों की ताकत भी आंक लेनी चाहिए। नेहरू–इंदिरा युग का अंत हो चुका है। वंशवाद का जादू क्षेत्रीय क्षत्रपों की बैसाखी के बिना विकलांग है। सिर्फ गांधी परिवार की चमक से सत्ता का सूरज नहीं चमकेगा, यह बात कांग्रेसी रणनीतिकार अब भी नहीं समझे तो पार्टी का डूबना तय है। वाईएसआर की विरासत सोनिया के सिपहसालारों को सौंपने से इनकार कर जगनमोहन रेड्डी दस, जनपथ को उसका पता और अपना कद दिखा चुके हैं। कुछ इसी तरह का काम उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने किया। उम्र में अपने से बड़े राहुल व प्रियंका गांधी पर मुलायम पुत्र अकेले भारी पड़े।
ऐसे में दागियों की हिमायत, इसमें भी अपने–पराए का फर्क और जांच एजेंसियों के जरिए सत्ता के गैर कांग्रेसी साथियों की बांह मरोड़ने के आरोप कांग्रेस को गठबंधन के भीतर ही अलग–थलग करने वाले हैं।
लेकिन यदि 'दादागिरी चलेगी' का ऐलान व्यवस्था के घुन को ढकने के लिए किया गया है तो निश्चय ही यह गंभीर चिंता का विषय है। फिर तो यह पूरे देश के लिए साझा चुनौती है। घुना पेड़ कितना बढ़ेगा, कब तक खड़ा रहेगा, यह यूपीए 'चेयरपर्सन' ना तो तय कर सकती हैं और ना ही इसे थामे रह सकती हैं। भ्रष्टाचार पर कुल्हाड़ी उस जनता को चलानी है जो सब जानती है। जो भी हो, इतना तय है कि दादागिरी अब वास्तव में चलेगी नहीं।
टिप्पणियाँ