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चीन इतना चतुर है कि उसने पहले अपने पाले में पूरी तैयारी कर ली फिर भारत के अंदर घुसकर हमारी ही जमीन कब्जाना चाहता है। उसने ल्हासा तक रेल लाइन बिछा ली है, दिन में 8 रेलें वहां आती हैं। हर ट्रेन में सेना की एक पूरी पलटन बैठकर आ सकती है। एक महीने में 30-32 डिविजन आ सकती हैं। तिब्बत में हजारों किलोमीटर की तारकोल वाली सड़क ठीक सीमा तक बना ली है। 5 हवाई अड्डे बना लिए हैं। भारत ने जब 50 साल के अंतराल के बाद वहां थोड़ी ढांचागत तैयारी करनी शुरू की तो वे अड़ंगे डालने लगे हैं। उनका कहना है कि भारत ने सीमा करार करके माना था कि वहां कोई सड़क नहीं बनाएंगे, कोई ढांचा खड़ा नहीं करेंगे। ये तो सरासर भारत को धोखा देने वाली बात हुई। उसकी मनमानी नहीं चलेगी।
अभी चीनियों ने घुसपैठ इसी मकसद से की है कि जब उनके प्रधानमंत्री ली कीक्यांग भारत आएं तो यह मुद्दा जरूर उछले और वे सीमा पर हमसे अपनी मनमानी करा लें, इस पर बातचीत शुरू हो जाए। चीन जानता है कि भारत की सरकार इतनी लचर है कि 'शांति' बनाए रखने के नाम पर किसी भी हद तक झुक सकती है। चीन ग्वादर बंदरगाह तक अपना ढांचागत विकास कर रहा है। इसलिए उसे लद्दाख में चुमार में बैठे भारतीय फौजी खटकते होंगे। वह नहीं चाहता कि भारत ग्वादर पर होने वाली उसकी कोई भी गतिविधि देखे, इसलिए उसे वह इलाका अपने कब्जे में चाहिए। दौलत बेग ओल्दी में बनी हमारी हवाई पट्टी उनको चुभती है, क्योंकि उसे लगता है, इस ठिकाने से हम उनको देख सकते हैं और आगे चलकर इसका विस्तार करके उन पर हमला भी बोल सकते हैं। यहां से उनका कराकोरम-गिलगित-ग्वादर राजमार्ग हमारी पहुंच में होगा। वे गिलगित और कराकोरम के रास्ते ग्वादर तक सड़क और रेल पटरी बिछाने में लगे हैं। वहां से तेल और गैस पाइपलाइन आएगी। भारत-पाकिस्तान-चीन के इस जंक्शन की अहमियत बहुत बढ़ गई है। इसलिए वे यहां पर भारत को तंग करके मैदान खाली कराना चाहते हैं। चीन की चाल है पूरब में आगे बढ़ते रहो, पश्चिम में हमला बोलो। भारत के पश्चिमी सेक्टर में लद्दाख में युद्ध छेड़ने का चीन को यह फायदा होगा कि उसे वहां पाकिस्तान की मदद हासिल हो जाएगी। ये इतना अहम क्षेत्र है, लेकिन हमने वहां अपनी ताकत बढ़ाने को कुछ नहीं किया है। 50 साल हो गए, वहां सड़क नहीं बना पाए, 30 साल हो गए पर आधुनिक हथियार नहीं खरीदे। 'नरेगा' पर 2 लाख करोड़ खर्चने वाली सरकार इसके आधे पैसे भी हथियारों पर खर्चती तो काम हो जाता। 1962 जैसा हाल न हो, इसके लिए सेना को तैयार करने की रफ्तार सौ गुना बढ़ानी होगी।
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