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कुंभ चन्द्रमा, आजम खां राहू?

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May 4, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 May 2013 14:41:52

प्रयागतीर्थ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर हर बारहवें वर्ष लगने वाला कुंभ मेला विश्व का विशालतम मेला है। 55 दिन तक चलने वाले इस मेले में भारत के कोने-कोने से, गरीब और अमीर सभी वर्गों, जातियों और भाषाओं को बोलने वाले लोग बिना किसी निमंत्रण के, बिना किसी पूर्व व्यवस्था के, केवल पुण्य लाभ की आध्यात्मिक अंत:प्रेरणा से खिंचे चले आते हैं। मेले में ही हजारों गृहस्थ कुटी डालकर पूरे समय कल्पवास करते हैं। हजारों साधु-संन्यासी, नागा साधु, जिनके दर्शन सामान्यत: अलभ्य हैं, वहां आते हैं। एक-एक महास्नान में तीन करोड़ तक संख्या पहुंच जाती है। हजारों साल से यह क्रम चला आ रहा है। सैकड़ों राजवंश आये और गये होंगे, किन्तु यह विशाल मेला राजकृपा पर आश्रित नहीं है। धर्म ही उसका प्रेरक है, धर्म ही उसका आयोजक है। धर्म ही उसका फल है। पूरे भारत की विविधता उसमें से झांकती है।

कुंभ मेले की इस विशालता, स्वयंस्फूर्तता और आध्यात्मिकता ने समूचे विश्व को चमत्कृत किया है, उसकी जिज्ञासा को जाग्रत किया है। यही जिज्ञासा इस वर्ष प्रयाग कुम्भ के अवसर पर अमरीका के प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय के 50 वरिष्ठों, प्रोफेसरों, शोध छात्रों एवं छायाकारों को कुंभ मेले में खींच लायी। वे लगभग पन्द्रह दिन मेले में रहे। उसका अनेक पहलुओं से अध्ययन किया, नोट्स बनाये, शोध पत्र तैयार किए। इस पूरे अभियान की प्रेरणास्रोत रहीं हार्वर्ड विश्वविद्यालय में तुलनात्मक धर्म और अध्यात्म विभाग की अध्यक्षा प्रो.डायना ए.ए.हक, जो कुंभ मेले के पहले ही पूरे भारत का भ्रमण करके 'इंडिया-ए सेकेंड ज्योग्राफी' शीर्षक से बहुचर्चित पुस्तक लिख चुकी है। उनकी आंखें कुंभ मेले के बाहरी शरीर के भीतर व्याप्त आध्यात्मिक चेतना को खोजती रहीं।

आमंत्रण अखिलेश को

इस शोध प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए हार्वर्ड विश्वविद्यालय के भारतीय छात्रों की समिति ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मेले के आयोजन से जुड़े हुए स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों एवं उनकी देखरेख करने वाली अपनी मंत्रीमंडलीय समिति के साथ विश्वविद्यालय में आकर अपनी प्रस्तुति देने के साथ-साथ विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों एवं छात्रों के साथ प्रश्नोत्तर में भाग लेने का निमंत्रण दिया। यह यात्रा अमरीका-भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मूल्यवान अवसर बन सकती थी। युवा मुख्यमंत्री अखिलेश को अमरीका के बौद्धिक जगत के सामने अपने को प्रकट करने का अलभ्य अवसर था। लगता था कि अखिलेश ने इस यात्रा के महत्व को पहचाना। उन्होंने एक बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ अमरीका यात्रा की तैयारी की। इस दल में मुख्यमंत्री के अतिरिक्त दो मंत्री-आजम खां और अभिषेक मिश्र, मुख्य सचिव जावेद उस्मानी, आजम खां के विशेष सहायक अश्फाक अहमद, राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष एन.सी.वाजपेयी, मुख्यमंत्री सचिवालय के परामर्शी आमोद कुमार और चार वे अधिकारी भी थे जिन्होंने प्रत्यक्षत: मेले का प्रबंधन संभाला था। इस दल के साथ अमरीका पहुंचकर अखिलेश यादव स्व-प्रशिक्षण के साथ-साथ अमरीका और भारत के बीच सांस्कृतिक समझ का पुल बन सकते थे। उन्हें अमरीका ने भारतीय संस्कृति और समाज को समझने के लिए आमंत्रित किया था।

आजम की करतूत

यह दल 24 अप्रैल को भारत से रवाना हुआ तब से ही यह यात्रा भारतीय मीडिया की चर्चा का विषय बन गयी। पर अब उसमें कुंभ कहीं नहीं है, सांस्कृतिक आदान-प्रदान का की चर्चा का विषय बन गयी। छाया हुआ है केवल शहरी विकास मंत्री आजम खां का अपमान, जिन्हें अखिलेश ने कुंभ मेला प्रबंध समिति के अध्यक्ष पद पर बैठने का गौरव प्रदान किया था, क्या सोचकर- यह पता नहीं? आजम खां ने यात्रा के लिए रवाना होते ही अपनी पार्टी के एक सांसद मुनव्वर सलीम की दिल्ली हवाई अड्डे के अधिकारियों द्वारा पूछताछ से क्रोधित होकर उन अधिकारियों पर 'मुस्लिम विरोधी' होने का आरोप लगा दिया। फिर बोस्टन के लोगान अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पूछताछ के लिए अपने को केवल 10 मिनट के लिए रोके जाने को अमरीका की मुस्लिम विरोधी नीति का अंग बताया। और, एकदम अमरीका विरोधी अभियान प्रारंभ कर दिया। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के कार्यक्रम का बहिष्कार किया। वहां पहले से तय अपना भाषण नहीं दिया और भारत वापस लौटने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं, संभवत: उनके रौद्र रूप से भयभीत होकर अखिलेश भी मुख्यमंत्री पद की गरिमा की चिंता न करके आजम खां के बहिष्कार कार्यक्रम में सम्मिलित हो गये। उन्होंने भी हार्वर्ड में अपना भाषण नहीं पढ़ा। प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हुए। इतना ही नहीं, भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित एक भोज कार्यक्रम, जिसमें उन्हें प्रवासी भारतीय समाज के साथ मिलने का अवसर मिलता, भी रद्द करवा दिया, और अपने तीसरे मंत्री अभिषेक मिश्र को साथ लेकर भारत वापस लौट आये।

अमरीकी सुरक्षा तंत्र

क्या सचमुच अखिलेश को यह समझ नहीं आया कि बोस्टन हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच से हार्वर्ड विश्वविद्यालय का कोई संबंध नहीं था। वस्तुत: विश्वविद्यालय पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, वह पूर्णतया स्वायत्त है। 11 सितम्बर, 2001 को न्यूयार्क पर जिहादी आक्रमण के बाद से अमरीका ने जो आंतरिक व्यवस्थाएं खड़ी की हैं, उनमें विमानतलों पर आने वाले सभी यात्रियों की सुरक्षा जांच बहुत कड़ी कर दी गई है, उसमें कोई भेदभाव नहीं बरता जाता। इस सुरक्षा जांच को भारत के राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम भोग चुके हैं, राजग काल के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिज ने भोगा। वर्तमान सरकार के भी प्रफुल्ल पटेल आदि कई मंत्रियों को उस जांच से गुजरना पड़ा है। अभिनेता शाहरूख खान, इमरान हाशमी आदि की जांच भी चर्चा का विषय बन चुकी है। अत: यदि आजम खां को भी उस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा तो कौन-सी खास बात हुई। इन कड़ी सुरक्षा व्यवस्थाओं के कारण ही अमरीका 2001 के बाद जिहादी प्रहारों से बचा रह सका। यद्यपि दुनिया भर के मुसलमान अमरीका को अपना शत्रु मानते हैं, उनके दिलों में अमरीका के लिए गहरी नफरत भर गयी है। इतनी सावधानी के बाद भी आजम खां की अमरीका यात्रा के कुछ समय पहले ही बोस्टन मैराथन दौड़ के समय तीन विस्फोटों ने अमरीकी मन को पूरी तरह हिला दिया। अभी तक की जांच के अनुसार इन विस्फोटों में रूस के चेचन्या क्षेत्र के युवक थे, जो अमरीका आकर बस गये थे। ताजा सर्वेक्षणों के अनुसार बहुसंख्यक अमरीकी जिहादी आक्रमणों की आशंका से भयभीत हैं।

इस पृष्ठभूमि में आजम खां को जांच के लिए 10 मिनट रोके जाने की घटना को 'हिरासत' का नाम देना और अमरीका पर आरोप लगाना कि वह आजम खां को बोस्टन विस्फोट कांड में फंसाना चाहता था, अनियन्त्रित अहंकार का प्रदर्शन है। आजम खां ने अमरीका पर नस्ल भेद का भी आरोप लगाया। भारत सरकार से कहा कि वह अमरीका से जवाब तलब करे। उन्होंने भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद पर आरोप लगाया कि उन्होंने अमरीका के साथ मिलकर मेरा अपमान कराया। उन्होंने फतवा जारी किया कि भविष्य में उत्तर प्रदेश का कोई मंत्री अमरीका नहीं जाएगा। इसका क्या यह अर्थ होगा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जुलाई में अमरीका यात्रा के निमंत्रण को स्वीकार नहीं करेंगे?

मुस्लिम वोट बैंक की होड़

आजम खां का संकेत पाकर उ.प्र. के मुस्लिम नेताओं ने अमरीका विरोधी अभियान छेड़ दिया है। रामपुर और बरेली में अमरीका का पुतला जलाया गया। बरेली में उसके पुतले पर गोवंश का सिर लगाया गया। जफरयाब जिलानी, अब्बास हैदर आदि प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने अमरीका विरोधी भावनाएं भड़काना शुरू कर दिया। इसकी भी पृष्ठभूमि है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पूरी राजनीति मुस्लिम वोट बैंक पर केन्द्रित है। मुस्लिम वोटों के लिए वहां तीन पार्टियों में होड़ लगी है-सोनिया कांग्रेस, सपा और बसपा। दिल्ली के इमाम बुखारी ने पिछले विधानसभा चुनावों में मुलायम सिंह को समर्थन दिया था। अपने समर्थन की जो वे कीमत चाहते थे, वह उन्हें नहीं मिली, इसलिए वे आजकल सपा से नाराज हैं और बसपा के साथ जाने की धमकी दे रहे हैं। इसलिए मुस्लिम समर्थन को बनाये रखने के लिए सपा पूरी तरह आजम खां पर निर्भर है। इस बात की होड़ लगी है कि उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वोट बैंक आजम खां के नियंत्रण में है या इमाम बुखारी के। इसीलिए आजम खां मुसलमानों की अमरीकी विरोधी भावना पर सवार होकर उनके वोट बैंक पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं।

मुलायम सिंह प्रधानमंत्री पद पाने की अपनी आकांक्षा की खुली घोषणा कर चुके हैं। उनका कहना है कि यदि वे उत्तर प्रदेश में लोकसभा की साठ सीटें जीत सके तो उनका प्रधानमंत्री बनना सुनिश्चित है। किन्तु मुस्लिम नेतृत्व की रणनीति है कि राज्यों की विधानसभाओं में क्षेत्रीय दलों को जिताया जाए और केन्द्र में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए सोनिया कांग्रेस का साथ दिया जाए। इस रणनीति की काट के लिए आवश्यक है कि मुलायम सिंह स्वयं ही प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करें। शायद इसीलिए अमरीका में आजम खां के तथाकथित अपमान को समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम कार्ड खेलने का साधन बना लिया। सपा सांसदों ने दो दिन तक राज्यसभा में हंगामा किया। शिवपाल यादव ने अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा को चिट्ठी भेजकर गुस्सा जाहिर किया। इलाहाबाद  विश्वविद्यालय में समाजवादी लोहिया वाहिनी ने उग्र प्रदर्शन किया। समाजवादी पार्टी ने अमरीका की निंदा का प्रस्ताव पारित किया। भारत सरकार से मांग की कि वह अमरीका से जवाब तलब करे। भारतीय दूतावास ने अमरीकी विदेश विभाग तक ये भावनाएं पहुंचा भी दीं। समाजवादी पार्टी के सभी प्रमुख नेता-राजेन्द्र लाल चौधरी, नरेश अग्रवाल आदि वक्तव्य देकर अमरीका को कोस रहे हैं।

सच तो यह है कि भारतीय राजनेता अपने व्यक्तिगत और दलीय स्वार्थ से ऊपर उठकर सोच ही नहीं सकते। जिस प्रकार वे भारतीय लोकतंत्र में अपने लिए विशेष सुविधाएं बटोर कर ऊंच-नीच का भेदभाव चला रहे हैं, वैसा ही वे चाहते हैं कि अमरीका जैसे अन्य देश भी करें। यही कारण है कि भारत अपने को आतंकवाद के विरुद्ध बेबस पा रहा है और अन्य देश आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी चौकसी बरत रहे हैं। हमें उनसे सीखना चाहिए, न कि उन पर अपनी भेदभाव की नीति को थोपने की चेष्टा करनी चाहिए। देवेन्द्र स्वरूप

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