आंसू और आक्रोश
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होम Archive

आंसू और आक्रोश

by
May 4, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 May 2013 14:26:21

सरबजीत ने आखिर दम तोड़ दिया। भारत आई तो केवल उसकी मृत देह जिसे 3 मई 2013 को 'राजकीय सम्मान' के साथ अग्नि को समर्पित किया गया। 23 साल बाद निर्जीव देह के रूप में अपने गांव भिखीविंड (तरनतारन, पंजाब) लौटे सरबजीत को अंतिम विदा देने गांवभर के लोग तो पहुंचे ही, सारा देश इस दर्द की टीस महसूस कर रहा था। 23 साल पहले 28 अगस्त 1990 को सरबजीत भूल से सीमा पार पाकिस्तान की जमीन पर चले  गए जहां उन्हें बेरहम पाकिस्तानियों ने पकड़कर जेल में डाल दिया। कुछ ही दिन बाद, 29 जुलाई 1990 को लाहौर और फैसलाबाद में बम धमाके हुए और पाकिस्तानी सरकार को भारत को तिलमिलाने का मौका मिल गया। उसने सरबजीत पर उन धमाकों का दोष मढ़ दिया। अदलात ने झूठी गवाही के आधार पर सरबजीत को फांसी की सजा सुना दी। तब से सरबजीत के परिवार ने सैकड़ों बार दरख्वास्तें लगाईं भारत की सरकारों से, पर सरकारें अपनी राजनीति में ही उलझी रहीं, फुर्सत किसे थी कि किसी गांव वाले के मामले में उलझे। उन्हें शायद सरबजीत के रास्ते भारत को अपमानित करने की पाकिस्तान सरकार की मंशा की सुध ही न थी। परिवारजन के आंसू रीत गए, पर सरकार का दिल नहीं पसीजा। सोनिया गांधी को ढेरों चिट्ठियां लिखीं, पर किसी का जवाब नहीं आया। हां, सरबजीत के मरने के बाद प्रधानमंत्री, गृहमंत्री ने सरकारी लहजे में 'दिल बहुत आहत हुआ' वाले बयान कैमरों के आगे बोल दिए।

26 अप्रैल 2013 को पाकिस्तान की जेल में सरबजीत पर जानलेवा हमले से बहुत पहले ही जेल के अफसरों को खतरे से आगाह करके उनकी सुरक्षा बढ़ाने की मांग की गई थी, लेकिन पाकिस्तानी एक हिन्दुस्थानी कैदी की परवाह क्यों करते। सरबजीत को जब पाकिस्तानी कैदी घेर कर लहूलुहान कर रहे थे तब भी किसी पुलिसवाले ने बीच-बचाव नहीं किया। पाकिस्तान की बर्बरता इससे भी साफ हो जाती है कि मरने के बाद सरबजीत की देह भारत भेजने से पहले उनका दिल, गुर्दे और पेट निकाल लिया गया था।

लेकिन भारतवासी गुस्से में हैं, पाकिस्तान की सरकार से ज्यादा उन्हें भारत की मनमोहन सरकार पर गुस्सा है। उसने क्या किया सरबजीत को रिहा कराने के लिए? क्यों नहीं इस बाबत कभी पाकिस्तान से कड़े शब्दों में बात की? पिछले साल पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक भारत आए थे, उन्होंने भारत में कैद एक पाकिस्तानी नागरिक को मानवीय आधार पर छोड़ने को कहा, भारत ने छोड़ दिया। लेकिन अपने निर्दोष नागरिक को वह लाहौर की जेल से छुड़वाने में विफल रही।

देश का गुस्सा सड़क पर दिख रहा है। पूरा देश जवाब चाहता है। वह जानना चाहता है कि सीबीआई, जेपीसी, राहुल, आईपीएल में मदमस्त सरकार देश की अस्मिता बचाने के लिए क्या कभी जागेगी? समाज में खाई पैदा करने वाले विधेयक गढ़ने में लगीं सोनिया गांधी क्या देश की पीड़ा समझेंगी? सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने टीवी पर ठीक ही कहा- 'राहुल को पार्टी उपाध्यक्ष बनाते वक्त रो देने वाली सोनिया की आंख में तब आंसू क्यों नहीं आए जब भारत का एक बेटा पाकिस्तान के अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच झूलता हुआ दर्द से कराह रहा था'? पाञ्चजन्य ब्यूरो

अब बचीं सिर्फ तारीखें

28 अगस्त 1990- 26 साल का सरबजीत भटककर सीमा पार गया, पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ा

29 जुलाई 1990- लाहौर और फैसलाबाद में धमाके, दोष सरबजीत के माथे मढ़ा

15 अगस्त 1991- पाकिस्तानी अदालत ने सुनाई सरबजीत को फांसी की सजा, गवाह सलीम ने एक चैनल को बताया- 'दबाव में उसके खिलाफ झूठी गवाही दी थी'।

16 जून 2011- दलबीर कौर कोट लखपत जेल (लाहौर) में अपने भाई सरबजीत से मिलीं

9 फरवरी 2013- भारत में संसद हमले के दोषी अफजल को फांसी, सरबजीत पर खतरा बढ़ा, वकील अवैसी ने उनकी सुरक्षा बढ़ाने की अपील की।

26 अप्रैल 2013- लाहौर जेल में सरबजीत पर जानलेवा हमला

2 मई 2013- सरबजीत की अस्पताल में मृत्यु

फेसबुक से…

  जब तक पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाया जाएगा, पता नहीं और कितने सरबजीतों के साथ ऐसा होगा।

–यथार्थ बडाला

  इस निर्मम काण्ड के लिए भारत सरकार पूरी तरह दोषी है। … शर्म करो बेरहम 'चेयर मैनो'। राजनीति, राजनीति और राजनीति, तुम लोगों का सिर्फ
यही एक मकसद है। 

–वैभव चीकू

  सरबजीत सिंह की मृत्यु के लिए पाकिस्तान से ज्यादा हमारी संवेदनहीन सरकार जिम्मेदार है, जो एक अमीर उद्योगपति को जेड सुरक्षा देने को तैयार है, लेकिन आम आदमी का उसकी नजर में कोई महत्व नहीं है। राजनीतिज्ञो, शर्म करो।

–संतोष कुमार मिश्रा

  मि. मनमोहन सिंह, कृपया खोल से बाहर आओ और देखो कैसे इटली की सरकार अपने नाविकों को बचाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है।

-अनुज शर्मा

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