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पिछले अंक में आपने पढ़ा कि तीस्ता जावेद सीतलवाड़ किस तरह 'कम्युनल कॉम्बेट' के बैनर तले कुछ राजनीतिक दलों से पैसा लेकर राष्ट्रवादी संगठनों के खिलाफ अभियान चलाती हैं और सेकुलरवाद का नकाब ओढ़ लेती हैं। गुजरात दंगों पर कहानियां गढ़ती हैं और गोधरा कांड पर जुबान बंद रखती हैं। इस बार पूर्व नौकरशाह हर्ष मंदर के बारे में। विदेशी मूल की कम्पनियों से जुड़ाव, अन्तरराष्ट्रीय 'दानदाताओं' से सहायता और भारत के दुश्मनों के मानवाधिकारों की पैरवी- ये इनके काम हैं। अफजल और अजमल कसाब को बचाने के लिए सक्रिय तो होते हैं, पर सरबजीत के लिए शायद ही कुछ किया हो। विकिपीडिया के अनुसार ये किसी मत-पंथ को नहीं मानते हैं। ये इनसानियत को ही धर्म मानते हैं। किन्तु इनकी इनसानियत के दायरे में शायद हिन्दू नहीं आते हैं। उनके नाम और काम के बारे में कुछ तथ्य।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हर्ष मंदर तथाकथित सेकुलर टोली के एक सदस्य हैं। इनके सेकुलरवाद के अनुसार आतंकवादी अफजल को माफ कर दिया जाना चाहिए था। इन्होंने पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को माफी देने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजे गए पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। सूचना के अधिकार के तहत मिली एक जानकारी के अनुसार 203 सेकुलरों ने कसाब की माफी के लिए अर्जी दी थी, जिसमें हर्ष मंदर के भी दस्तखत हैं। ये यह भी कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत से विशेष सशस्त्र बल अधिकार अधिनियम को हटा लेना चाहिए। (मालूम हो कि इसी विशेष अधिकार के कारण ही हमारे सुरक्षाकर्मी आतंकवादियों और विद्रोहियों से लड़ पा रहे हैं)। ये खांटी सेकुलर हैं। जब ये खांटी सेकुलर हैं तो सेकुलर भारत सरकार और सेकुलर राज्य सरकारें भी इन्हें बेहद पसंद करती हैं। भारत सरकार ने इन्हें राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का सदस्य बना कर उपकृत किया है, हालांकि अब ये राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् में नहीं हैं। दिल्ली सरकार और कुछ अन्य सरकारें इनकी संस्था 'अमन बिरादरी' को मदद करती हैं। वे तत्त्व और विदेशी शक्तियां भी इन्हें खूब पसंद और हर तरह से मदद भी करती हैं, जो भारत को कमजोर करना चाहती हैं। हर्ष मंदर एक कथित सामाजिक संस्था 'अनहद' के संस्थापक सदस्य भी हैं। अनहद की सर्वेसर्वा शबनम हाशमी हैं, जो खुद को सेकुलर कहती हैं।
नौकरशाह रहते हुए हर्ष मंदर एक अन्तरराष्ट्रीय सामाजिक संगठन 'एक्शन एड इंडिया' से जुड़े और उसके 'कन्ट्री हेड' का काम संभाला। 2002 में गुजरात में हुए दंगों का बहाना लेकर इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी। इनका आरोप है कि गुजरात में सरकार की शह पर दंगे हुए। पर इन्होंने गोधरा में मारे गए रामभक्तों की सहानुभूति में कभी एक शब्द नहीं कहा। नौकरी छोड़ने के बाद ये 'अमन बिरादरी' और सेन्टर फॉर इक्विटी स्टडीज (सी इ एस) की स्थापना कर कथित सामाजिक कार्यों से जुड़े। इनकी गतिविधियां गुजरात के दंगा पीड़ितों और स्ट्रीट चिल्ड्रेन बच्चों के बीच घूमती रहती हैं। इनकी मदद और देखरेख के बहाने ही ये करोड़ों रुपए का चन्दा लेते हैं। किन्तु ये जिन बच्चों के लिए काम करते हैं, उनकी हालत भी बदतर है। इनकी सेवा की असलियत क्या है उनके एक सहयोगी रहे अभिषेक शर्मा के उस पत्र से पता चलता है जो इन दिनों वेबसाइट पर है। गूगल पर खोज कर आप भी वह पत्र पढ़ सकते हैं। इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि हर्ष मंदर की संस्था अमन बिरादरी बेसहारा बच्चों के नाम पर दुनियाभर से दान लेती है पर उन बच्चों को ठीक से खाना भी नहीं दिया जाता है । पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि संस्था में काम करने वालों के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया जाता है और उन्हें मानधन भी समय पर नहीं दिया जाता है। उसी पत्र में उल्लेख है कि अमन बिरादरी को 'अमरीका इंडिया फाउण्डेशन', दिल्ली सरकार और जमायते उलेमा हिन्द से भरपूर पैसा मिलता है।
सीइएस का मुख्यालय दिल्ली में है। सीइएस को कई ईसाई संगठनों और चर्च से सहायता मिलती है। कई रपटों और लेखों के अनुसार 2010-11 में इस संस्था को 4,78,17,508.11 रुपये और 2011-12 में 7,55 ,17,631 .25 रुपये मिले हैं। हर्ष के संगठन को 2011 में सबसे अधिक विदेशी चन्दा मिला है। नीदरलैंड से जुड़ी एक संस्था 'पार्टनरशिप फाउण्डेशन' ने 12 करोड़ 33 लाख रुपये सीइएस को दिए हैं। पार्टनरशिप फाउण्डेशन को शुरू करने वाला एक व्यापारी है और वह डच नागरिक है। इसने फरवरी 2002 में कोलकाता में बेघर बालिकाओं के लिए 'रेनबो होम प्रोग्राम' शुरू किया था। मंदर इस फाउण्डेशन के भारत में मुख्य साझेदार हैं। इसने इनको करोड़ों रुपये का अनुदान दिया है। कुछ समय पहले सीइएस को डेनमार्क की एक संस्था 'डन चर्च एड' से 90 लाख रु. मिले हैं। मंदर की इस संस्था को अमरीका से जुड़े संगठन एसोसिएशन फॉर इंडियाज डवलपमेंट (एआईएड) से 10 लाख रु. मिले हैं। यह संस्था बिनायक सेन (जिनको माओवादियों की मदद के आरोप में उम्र कैद की सजा हुई है और इन दिनों जमानत पर हैं) और मेधा पाटकर का समर्थन करती है। हर्ष मंदर को अमरीका की 'मुस्लिम रिलीफ एंड चौरिटीज' से भी मदद मिलती है।
एक रपट के अनुसार हर्ष मंदर की संस्था सीइएस को दो साल के अंदर 12 करोड़, 33 लाख 35 हजार 139 रु. और 36 पैसे का दान मिला है। कुछ लोगों का मानना है कि हर्ष मंदर ने आईएएस की रौबदार नौकरी इसलिए नहीं छोड़ी थी कि वे गुजरात के दंगों से दुखी थे, बल्कि उन्होंने उसे अपने लिए एक सुनहरा अवसर माना । एक्शन एड इंडिया में काम करके वे जान चुके थे कि विदेशी दान कैसे मिलता है । वह यह भी जानते थे कि जो भारतीय सेकुलरवाद का झंडा उठाता है उसे ईसाई और मुस्लिम संगठन सिर आंखों पर बैठाते हैं और ऊपर से पुरस्कारों की झड़ी लग जाती है। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर सेकुलरवाद का झंडा थामा और राष्ट्रवादी ताकतों को लगे गरियाने। इसका उन्हें फायदा भी मिलता है। कभी उन्हें सेकुलर भारत सरकार का 'कृपा-प्रसाद' मिल जाता है, कभी विदेशी चन्दा। आईएएस की नौकरी करके हर्ष मंदर कभी इतना पैसा नहीं कमा सकते थे। इतनी शोहरत भी उन्हें नहीं मिलती। यह सब सेकुलर बनने से हुआ। शायद इसीलिए अनेक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता की आड़ में सेकुलर बन रहे हैं और भारतीयता के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। प्रस्तुति: अरुण कुमार सिंह
एक्शन एड इण्डिया की हकीकत
एक्शन एड इंडिया ब्रिटिश मूल की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी है। यह कम्पनी बेसहारा बच्चों के नाम पर दुनियाभर से पैसा जुटाती है। प्रायोजित एजेंसियों के जरिये यह भारत में हमेशा मौजूद रहती है। इस कम्पनी को ब्रिटिश सरकार से मदद मिलती है। भारत में इसके समर्थक अनेक नौकरशाह और नेता हैं। भारत के अंग्रेजी मीडिया में जो शख्स 'सेकुलर हीरो' बन जाता है उसे यह कम्पनी लपक लेती है।
हर्ष मंदर और पुरस्कार
हर्ष मंदर यदि कुछ करते हैं तो वह एक मजहब विशेष के लोगों के लिए ही करते हैं। फिर भी इन्हें राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने साम्प्रदायिक सद्भावना बनाने और सेकुलरवाद को बढ़ावा देने का काम किया है। किन्तु हर्ष मंदर तो एक मजहब विशेष के लिए ही काम करते हैं। क्या इसी से सेकुलरवाद को बढ़ावा मिलता है और साम्प्रदायिक सद्भावना बढ़ती है? आप अंदाजा लगा सकते हैं राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार किन लोगों को दिया जाता है।
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