घोटाला सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय का तीखा वार
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घोटाला सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय का तीखा वार
सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई से पूछा–
सीबीआई ने क्यों नहीं बताया कि 8 मार्च की रिपोर्ट सरकार को दिखाई गई थी? ºÉÒ¤ÉÒ+É<Ç के वकील ने 12 मार्च को अदालत को क्यों बताया, कि रिपोर्ट किसी को नहीं दिखाई गई थी? कानून मंत्री और दो संयुक्त सचिवों के अलावा क्या रिपोर्ट किसी और को दिखाई गई? क्या स्टेटस रिपोर्ट में कोई बदलाव किए गए थे? ÊEòºÉEäò कहने पर बदलाव किए गए थे और उनका क्या असर हुआ? CªÉÉ कानून मंत्री को सीबीआई से रिपोर्ट देखने के लिए मांगने का अधिकार है?
सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने बताया–
मैं ये कहना चाहता हूं कि 8 मार्च की स्टेट्स रिपोर्ट का मसौदा सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल करने से पहले कानून मंत्री को दिखाया गया था, क्योंकि वह उसे देखना चाहते lÉä* ªÉä रपट प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के एक-एक अधिकारी को भी दिखाई गई थी क्योंकि वे भी उसे देखना चाहते थे। BVÉåºÉÒ अब अगली कोई स्टेट्स रिपोर्ट कार्यपालिका के किसी राजनीतिक सदस्य को नहीं ÊnùJÉÉBMÉÉ* +ÉVÉ (26 अप्रैल) को जो ताजा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जा रही हैं, वह किसी भी तरह किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को नहीं दिखाई गई है।
बिगड़ी हुई या बिगाड़ी हुई एक कहावत है-
हजरत–ए–दाग जहां बैठ गए, बैठ गए
हजार जूते पड़े, उठे नहीं, लेट गए।
कुछ ऐसी ही बेशर्मी का लबादा ओढ़े हुए है सोनिया-मनमोहन की घोटाला सरकार। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपटें बार-बार बता रहीं हैं कि दोनों हाथों से देश का खजाना लूट रही है और लुटा रही है केन्द्र सरकार। घोटाले दर घोटाले के खुलासे संसद के सत्रों की बलि चढ़ा रहे हैं। सिर्फ विपक्षी दलों की बांह मरोड़ने के लिए गठित केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ही कसम खाकर बता रही है कि कानून मंत्री ही जांच में आंच लगा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय की तीखी टिप्पणी है कि 'इतना बड़ा विश्वासघात, आपने तो विश्वास की नींव ही हिलाकर रख दी।' पर कठपुतली प्रधानमंत्री बड़ी बेशर्मी से कह रहे हैं कि 'आप तो नौ साल से त्यागपत्र मांग रहे हैं। न मैं हटूंगा और न कानून मंत्री अश्विनी कुमार।' भले विपक्ष ने संसद का बहिष्कार कर रखा हो और सरकार जनता का विश्वास खो चुकी हो।
गत 8 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष जो स्टेट्स रपट प्रस्तुत की गयी थी वह भले सीलबंद थी पर उसका मजमून न केवल कानून मंत्री को मालूम था बल्कि उसमें उन्होंने 20 से 30 प्रतिशत तक बदलाव भी किए थे। यह बात पत्रकारों ने नहीं रची-गढ़ी बल्कि सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा ने ही न्यायालय के समक्ष शपथ पत्र देकर कही है। रंजीत सिन्हा ने साफ-साफ स्वीकार कर लिया है कि न केवल कानून मंत्री बल्कि उस प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी रपट देखी और बदलाव किए जिस पर आरोप है कि घोटाले में वह भी शामिल था। जब घोटाला हुआ तब कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ही अधीन था। कोयला मंत्रालय के भी दो अधिकारियों से रपट सांझा की गई। इसीलिए विपक्ष प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा है। पर प्रधानमंत्री कैसे हट जाएं? नौ साल में नैतिकता नहीं जागी तो अब चला-चली की बेला में कैसी शर्म? अपनी आड़ देकर एक वंश को लूटने का मौका देने वाला ऐसा प्रधानमंत्री भला और कहां मिलेगा कांग्रेस को, लिहाजा पार्टी पूरी तरह उनके साथ खड़ी है। संसद में बैठी नेहरू वंश की वर्तमान 'महारानी' के इशारे पर उनके दरबारी सांसद हंगामा करने लगते हैं और विपक्ष की नेता को बोलने तक नहीं देते। विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज कहना चाहती थीं कि 'सीबीआई करे या जेपीसी (संयुक्त संसदीय दल)-सारी जांच आप और आपकी सरकार को बचाने के लिए हो रही है प्रधानमंत्री जी!! इसीलिए संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पी.सी.चाको को हटाने की मांग समिति के ही आधे से अधिक सदस्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने भी जांच रपट में मनमाने बदलाव किए, प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया। पर दबाव को घटाने के लिए बनने वाली संसदीय समितियों का जो हश्र होता रहा है, वही चाको समिति का भी हुआ। ढेरों बैठकें, करोड़ों खर्च और नतीजा शून्य।
उधर सीबीआई के निदेशक ने 26 अप्रैल को प्रस्तुत की गई अपनी दूसरी रपट में शपथपूर्वक कहा कि 8 मार्च की तरह इस रपट को किसी को भी नहीं दिखाया गया है। पर सर्वोच्च न्यायालय उन पर भरोसा कैसे करे। न्यायालय ने साफ कर दिया कि अब आपकी निगरानी सीवीसी यानी केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त करेंगे। साथ ही साथ न्यायालय ने यह भी पूछ लिया कि बताओ आपके कौन-कौन से अधिकारी कोयला घोटाले की जांच कर रहे हैं, ताकि उन पर निगरानी बिठाई जा सके कि वे अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए किन-किन मंत्रियों के बंगलों के चक्कर काट रहे हैं और जांच को प्रभावित कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने जहां केन्द्र सरकार पर तीखे कटाक्ष किए वहीं सीबीआई को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि उसे अपने राजनीतिक आकाओं से निर्देश लेने की जरूरत नहीं है। इतना ही नही, न्यायालय ने स्पष्ट कहा, 'केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराना उसकी पहली प्राथमिकता है।' इसीलिए सरकार छटपटा रही है। पहले ए.राजा को बलि का बकरा बनाया और अब सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के महाधिवक्ता जी.ई.वाहनवती ने अपने सहयोगी अतिरिक्त महाधिवक्ता हरीन रावल को बलि का बकरा बनाया। यह हम नहीं, अपने पद से त्यागपत्र देते हुए रावल ने ही कहा है। कोयला घोटाले में कई बलि के बकरे बन चुके हैं। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री भी बलि के बकरे ही हैं। असली घोटालेबाजों पर नजर सबकी है, पर हाथ उस ओर नहीं बढ़ रहे, जांच उस दिशा में जाती नहीं दिख रही है। उस ओर बढ़ते हाथ को, उन सभी संवैधानिक संस्थाओं को ध्वस्त करने की कोशिश जारी है। सीबीआई, सीवीसी और सीएजी के बाद लगता है अब सर्वोच्च न्यायालय की बारी है। इसलिए उसके निर्देश की अवहेलना कर रपट को प्रभावित करने का दु:साहस जारी है।
प्रस्तुति : जितेन्द्र तिवारी
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