ये निर्माता राष्ट्र के
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कोई भी देश एक दिन में नहीं बनता, किसी एक व्यक्ति, किसी एक संगठन के प्रयासों से नहीं बनता। दुर्भाग्य से आजादी के बाद से आज तक सत्तासीन कांग्रेसियों और वामपंथी इतिहासकारों का गठजोड़ देश को पीढ़ी दर पीढ़ी यही पढ़ाता आ रहा है कि आधुनिक भारत का निर्माण जैसे किसी एक संगठन और एक परिवार विशेष की कृपा से ही हुआ है। जबकि सच तो यह है कि जहां देश को आजाद कराने के लिए हजारों- लाखों हुतात्माओं ने अपने प्राणों को आजादी के बाद भारत निर्माण के लिए सैकड़ों महापुरुष और संस्थान अपना सर्वस्व न्यौछावर करके दिन-रात काम कर रहे हैं। पर निष्काम भाव से राष्ट्र निर्माण में लगे ऐसे लोगों और संस्थाओं के बारे में पढ़ने को कम ही मिलता है। इस दृष्टि से शिवदत्त शर्मा 'विवेक भारती' की नई पुस्तक 'आधुनिक भारत के निर्माता-व्यक्ति और संगठन' एक साधारण-सा संकलन होकर भी अपने आपमें अनूठी पुस्तक है। 184 पृष्ठों की इस पुस्तक में जिन महापुरुषों-संगठनों और प्रयासों को संकलित किया गया है उन्हें सात भागों में बांटा गया है। पहले पांच भाग महापुरुषों से संबंधित हैं, इनमें निर्माता, महापुरुष, संस्कार और संगठन के शिल्पी नवचैतन्य के प्रेरक सूत्रधार, कला, संगीत, साहित्य के महारथी और अंत में विज्ञान, खेल एवं सेना के नायक शामिल हैं। छठा विषय व्यक्तियों पर नहीं ऐसे संगठनों पर आधारित है जो नवजागरण के कार्य में लगे हैं। और पुस्तक में अंतिम अध्याय में भारत के नवनिर्माण के विविध प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है। जैसा कि पुस्तक में लिखा गया है- 'आज के अधिकांश युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद ही हैं, इसलिए यह सही ही है कि आधुनिक भारत के निर्माता महापुरुषों के संकलन की शुरूआत स्वामी विवेकानंद से की गयी है।' पुस्तक किसी वैचारिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होती तो महात्मा गांधी, डा.भीमराव अम्बेडकर, पं.जवाहरलाल नेहरू का चर्चा करके आधुनिक भारत के निर्माता महापुरुषों की सूची पूरी कर दी जाती। पर संकलनकर्त्ता शिवदत्त शर्मा ने उपरोक्त महापुरुषों के साथ-साथ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, लाला लाजपत राय, वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला है। साथ ही साथ देश को वैचारिक दासता से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करने वाले और विश्व पटल पर भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को स्थापित करने वाले महर्षि अरविंद, रविन्द्र नाथ टैगोर, स्वामी रामतीर्थ, डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार, मदन मोहन मालवीय, पं.दीनदयाल उपाध्याय, श्री गोलवलकर 'गुरुजी' , डा. राममनोहर लोहिया और खान अब्दुल गफ्फार खान की राष्ट्र निर्माण में भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गयी है। आधुनिक भारत के निर्माण में कुछ ऐसी महान आत्माओं का भी योगदान है, जिनकी जन्मस्थली भले ही भारत न हो, पर जिन्होंने इस देश को अपनी कर्मस्थली बनाया। ऐसी ही महान महिला विभूतियों में फ्रांस में जन्मी श्री मां हैं, जिन्होंने अरविंद आश्रम की स्थापना में महती भूमिका निभाई, और आयरलैंड में जन्मीं मारग्रेट एलिजाबेथ हैं, जिन्हें भगिनी निवेदिता के नाम से आज सब जानते हैं। इस विशाल देश को बनाने में उत्तर पूर्व के योगदान को भला कैसे भुलाया जा सकता है। नागालैंड की महान महिला स्वतंत्रता सेनानी रानी मां गाइडिन्ल्यू के संघर्ष को भी पुस्तक में उचित प्रतिनिधित्व मिला है। कुल मिलाकर यह संकल्प पठनीय व संग्रहणीय है।
जो देश बरसों तक आक्रांताओं का शिकार हो, परतंत्र हो, उसे सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों प्रशासनिक और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के प्रयासों से ही बनाया नहीं जा सकता।
पुस्तक का नाम – आधुनिक भारत के निर्माता
व्यक्ति और संगठन
संकलन – शिवदत्त शर्मा 'विवेक भारती'
अर्चना त्रिपाठी
प्रकाशक – आकाशवाणी प्रकाशन, सहयोगी अपना साहित्य, पीली कोठी, गोपाल नगर,
जालंधर (पंजाब)
मूल्य – 50 रुपए पृष्ठ – 184
समूचा भारत यह वर्ष स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती वर्ष के रूप में मना रहा है। इस अवसर पर कई संग्रहणीय पुस्तकें भी प्रकाशित हो रही हैं। इसी क्रम में पुलिस महानिदेशक पर से सेवानिवृत्त हुए सुपरिचित विचारक और लेखक देवकी नंदन गौतम की पुस्तक 'ज्ञान मार्ग कर्मयोगी : स्वामी विवेकानंद (अद्वैत वेदांत से विश्व धर्म की ओर)' प्रकाशित होकर आई है। इसमें उनके व्यक्तित्व के साथ ही आध्यात्मिक यात्रा के सोपानों को भी नए ढंग से व्याख्यायित किया गया है। हालांकि पुस्तक के अध्यायों में कोई घटना या कथानक के अनुसार निश्चित क्रम नहीं है लेकिन इस पर भी प्रत्येक अध्याय अपने आपमें पूर्ण है और स्वामी जी के जीवन, उनके व्यक्तित्व या उनकी चेतना के किसी एक बिन्दु को अलग तरह से सामने लाता है।
पुस्तक के एक अध्याय में नरेन्द्र दत्त (स्वामी विवेकानंद का पूर्ववर्ती नाम) के जन्म और किशोरावस्था तक की विलक्षण अनुभूतियों को लिपिबद्ध किया गया है। 'प्रारंभिक आध्यात्मिक संघर्ष' शीर्षक अध्याय में लेखक ने कई ऐसी बातें और विवेकानंद के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया है, जिनके बारे में सामान्य पाठक को शायद ही कुछ मालूम हो। इसमें वे लिखते हैं कि स्वामी जी के बारे में आमतौर पर तीन-चार घटनाएं ही लोग जानते हैं। इस अध्याय में यह भी बताया गया है कि किस तरह नरेन्द्र के भीतर उपस्थित द्वैत-अद्वैत और परम ज्ञान से संबंधित संदेह को, स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने समाप्त किया। सनातन धर्म के मूल संदेश को समझते ही किस तरह स्वामी विवेकानंद ने उसे विश्व को संप्रेषित करने का निश्चय किया, इस पर भी पर्याप्त चर्चा की गई है।
अगले अध्याय 'शिकागो धर्म संसद में स्वामी जी' में लेखक ने उस ऐतिहासिक घटना का विस्तार से वर्णन किया है जिसने स्वामी विवेकानंद को एक 'विश्वपुरुष' के पद पर आसीन कर दिया। शिकागो के धर्म संसद में स्वामी जी के अभूतपूर्व संभाषण ने किस तरह से पश्चिमी समाज में भारत की गौरवमयी संस्कृति और चेतना को पुनर्स्थापित किया, इसका प्रभावी वर्णन इस अध्याय में किया गया है। लेखक मानते हैं, 'स्वामी रामकृष्ण-स्वामी विवेकानंद कोई नया धर्म या पंथ नहीं खड़ा करते अथवा सुझाते। वे मूर्तिमान धर्म होकर हमारे समक्ष प्रकट होकर हमारा समाधान करने लगते हैं। और यह मात्र सनातन धर्म या वेदान्त अनुयायियों के लिए नहीं, अपितु समस्त मानव समाज के लिए।'
पुस्तक पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि इसे लिखने का उद्देश्य पाठक को स्वामी विवेकानंद के जीवन या उनकी शिक्षा मात्र में परिचित कराना नहीं है बल्कि इसके जरिए लेखक यह स्थापित करना चाहते हैं कि स्वामी जी ने जीवन और जगत के उस सत्य पर से केवल आवरण हटाया था। सत्य मानव धर्म तो सदैव से उपस्थित रहा है और सदैव रहेगा, लेकिन स्वार्थ, लालच और अहं की टकराहटों के चलते संपूर्ण विश्व उस चिर सत्य को देख नहीं पाता। उसे महसूस नहीं कर पाता। उस चेतना का अहसास कराने के लिए स्वामी विवेकानंद का भारत भूमि पर अवतरण हुआ। अपनी भूमिका में लेखक ने स्वीकार किया है कि यह पुस्तक स्वामी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के एक विशिष्ट अंश पर केन्द्रित है और उसका समाज में बखान करने का यह प्रयास है। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि जिस तरह से लेखक ने स्वामी जी के एक विशिष्ट अंश को व्याख्यायति किया है, वह प्रयास अपन आपमें सराहनीय और नए तरह का है। विभूश्री
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