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भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती

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Apr 27, 2013, 12:00 am IST
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भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती

दिंनाक: 27 Apr 2013 11:56:15

हथियार-नशे का मेल

पिछले कुछ दशकों में भारत की आंतरिक सुरक्षा को भारी खतरा पैदा हुआ है और अधिकांश खतरे बाहरी मदद से और भी घातक साबित हो रहे हैं। नशीली दवाओं की तस्करी एक नए खतरे के रूप में उभरी है, जिससे भारत में जिहादी गतिविधियों और विद्रोही आंदोलनों को सुलगाया जा रहा है। उग्रवादियों, विद्रोहियों तथा आतंकवादियों को हमारे पड़ोसी देशों द्वारा विध्वंसक गतिविधियों के लिए पैसा और पनाह दी जा रही है।

भारत के उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम में नशीले पदार्थों के दो सबसे बड़े उत्पादक देश-म्यांमार और पाकिस्तान हैं। दोनों ने भारत के विद्रोही गुटों को मदद दी है और उन्हें उकसाया है। सीमा-पार आतंकवाद को सत्ता नीति के रूप में अपना कर पाकिस्तान जिहादी आतंकवाद के गढ़ के रूप में उभरा है। वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध के लिए निहित स्वार्थों को मोहरा बनाया।

अमरीका ने 1989 में अफगान युद्ध के बाद पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को तुर्की और मध्य एशिया से नशीले पदार्थों की तस्करी के पुराने मार्गों पर नजर रखने को कहा था। पाकिस्तान की आईएसआई ने राह भटके युवकों को फुसलाकर हथियारों के बदले नशीले पदाथों को पंजाब में लाने को कहा। इस प्रकार पंजाब की सीमा से सटे अमृतसर और गुरदासपुर इलाके इस क्षेत्र में नशीली दवाओं की निकासी के नए रास्ते बन गए और खालिस्तानी आतंकवादियों ने इन्हें ले जाने का काम संभाल लिया। हथियारों और नशीली दवाओं के इस गठजोड़ के चलते नशीली दवाओं के व्यापार और उग्रवाद ने भारत के उत्तर-पूर्व, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में अपने पांव पसारे और देश के कई हिस्सों में आंतरिक गड़बड़ियां शुरू हो गईं। 1990 के दशक में सेना ने अनुमान लगाया था कि कश्मीर में उग्रवाद को जिंदा रखने के लिए पाकिस्तान हर महीने 30 करोड़ रुपए खर्च कर रहा था। 1993 में मुम्बई बम विस्फोट तथा देश के शहरी इलाकों में बम हमलों के दौरान नशीले पदाथों से जुड़ा आतंकवाद भी सामने आया। तस्करी के पुराने मार्ग राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके का भी आईएसआई ने भरपूर इस्तेमाल किया। भारत के उत्तर-पूर्व की 4,500 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा उत्तर में चीन, पूर्व में म्यांमार, दक्षिण पश्चिम में बंगलादेश और उत्तर पश्चिम में भूटान के साथ लगती है। नागा विद्रोह के जनक फिजो को काफी पहले 1956 में पाकिस्तान ने समर्थन दिया था, तब वह भाग कर ढाका चला गया था, जहां से विद्रोह का झंडा बुलंद करने के लिए वह लंदन चला गया। इसी प्रकार चीन ने नागा विद्रोहियों को छापामार युद्ध का प्रशिक्षण व हथियार दिए। उत्तरपूर्व के विद्रोहियों को म्यांमार के विद्रोही संगठनों से भी मदद मिली है। उत्तरपूर्व में आईएसआई की भूमिका सम्पर्क सूत्र के रूप में रही है, क्योंकि उसके इस क्षेत्र के कई विद्रोही गुटों के साथ सम्बंध हैं।

भारत के उत्तर में भी यही हालात हैं। आईएसआई और हथियार-नशे के सौदागरों के निशाने पर आ जाने के कारण भारत का पंजाब राज्य नशे की लत की गिरफ्त में आ गया और यह बीमारी मालवा, माझा और दोआबा इलाकों तक फैल गई है। पुलिस के अनुसार, 2011 के पहले दो महीनों में ही राज्य में 2,150 किलोग्राम अफीम, 25,500 किलोग्राम पोस्त-भूसी, 376 ग्राम हेरोइन, 35 किलोग्राम चरस, 21,607 किलोग्राम नाकोर्टिक्स पाउडर और 1,500 किलोग्राम गांजा पकड़ा गया था। साफ है कि इस सीमावर्ती राज्य को कमजोर करना पाकिस्तान की रणनीति का   हिस्सा है।

कश्मीर में जिहाद में भी नशीली दवाओं और बंदूकों ने अहम भूमिका अदा की है। सच तो यह है कि जम्मू-कश्मीर में, खासकर दक्षिण कश्मीर के पुलवामा और अनंतनाग जिलों में अब बड़े पैमाने पर पोस्त और गांजे की खेती की जा रही है। टाइम्स आफ इंडिया की एक रपट के अनुसार, माओवादी नशीली दवाओं के गिराहों को संरक्षण देने के नाम पर उनका फायदा उठाते हैं। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह गठजोड़ एक समस्या बना हुआ ½èþ* (+b÷xÉÒ)

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