खालिस्तान के नाम पर होती राजनीति
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खालिस्तान के नाम पर होती राजनीति

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Apr 27, 2013, 12:00 am IST
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दिंनाक: 27 Apr 2013 16:04:36

पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से मिलकर राज्य में आतंकवाद बढ़ने की आशंका जताई है। इसका कारण भुल्लर को फांसी दिया जाना बताया जा रहा है। 1991 और 1993 में हुए दो बम धामाकों में शामिल रहे भुल्लर को जर्मनी पुलिस ने गिरफ्तार कर भारत के हवाले किया था। पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना है कि भुल्लर को फांसी दिए जाने से खालिस्तानी नेता इसका इस्तेमाल पंजाब के लोगों को भड़काने के लिए कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि इससे राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है और खालिस्तान आतंक पंजाब में एक बार फिर से सिर उठा सकता है। वैसे खालिस्तान के दोबारा पनपने की बातें कई बार पहले भी उठती रही हैं। इससे पहले भी खबरें आती रही हैं कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई पुराने खालिस्तानी आतंकियों की मदद कर रही है। यही नहीं, बब्बर खालसा और खालिस्तान कमांडो फोर्स जैसे प्रतिबंधित संगठन सिख युवाओं को 1984 में 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री दिखा कर या प्रचार साहित्य उपलब्ध करा कर उनके भीतर विरोध की आग भड़काते रहे हैं। पिछले साल 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' में शामिल रहे जनरल कुलदीप सिंह बराड़ पर लंदन में कातिलाना हमला हुआ था। तब जनरल बराड़ ने भी यही बात कही थी कि उन पर खालिस्तानी समर्थकों ने ही बदले की भावना से हमला किया था। जनरल बराड़ ने ही 1984 में 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' का संचालन किया था। इस घटना में भिंडरांवाले समेत कई आतंकावादी मारे गए। लेकिन इसी के साथ सिखों के एक वर्ग में आक्रोश की भावना भर गई। कुछ उग्रवादी बदले की इसी भावना से उन लोगों की जान के पीछे पड़ गए जो 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' में शामिल थे। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 1986 में पुणे में जनरल वैद्य की हत्याओं को इसी कड़ी में जोड़कर देखा जाता है।

लेकिन खालिस्तान आंदोलन से जुड़ी सबसे प्रमुख घटना इंदिरा गांधी की हत्या को माना जाता है। इंदिरा गांधी की हत्या उनके सिख अंगरक्षक ने अमृतसर के स्वर्णमंदिर में हुए 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' की घटना के विरोध में की थी। कहा तो यह भी जाता है कि खालिस्तान के समर्थन में आंदोलन पहले इंदिरा गांधी और ज्ञानी जैल सिंह ने ही शुरू कराया था। लेकिन बाद में जब यह नासूर बनने लगा तो इंदिरा गांधी ने ही इसे खत्म करा दिया। लेकिन 1990 के दशक तक भारतीय सुरक्षा बलों ने खालिस्तानी आतंकवाद की कमर तोड़कर रख दी थी। इसके बावजूद खालिस्तान का जिन्न बार-बार बोतल से बाहर निकल आता है।

बब्बर खालसा इंटरनेशनल, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, खालिस्तान कमांडो फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स जैसे संगठनों पर गैर कानूनी गतिविधियां (निरोधक) संशोधान अधिनियम 2004 के तहत प्रतिबंध लगा हुआ है। बहुसंख्य सिख समुदाय तो अब 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' को भूल भी चुका है। लेकिन बीच-बीच में ऐसी घटनाएं होती हैं, जिससे इसकी याद ताजा हो जाती है। ऐसी ही एक घटना जनरल वैद्य के हत्यारों की स्मृति में बनाए जा रहे स्मारक से जुड़ी है। जनरल वैद्य के हत्यारों हरजिंदर सिंह और सुखदेव सिंह को 1992 में फांसी की सजा हुई थी। तब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दोनों को शहीद का दर्जा दिया था। जाहिर है यह घटना राजनीति से प्रेरित थी। इस पर जनरल बराड़ ने भी टिप्पणी करते हुए कहा था कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए। अब पंजाब के राजनीतिक और सामाजिक हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। जब खालिस्तान आंदोलन अपने चरम पर था, तब जरूर उस दौर के कुछ सिख युवा उसकी ओर आकर्षित हुए होंगे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। युवाओं की महत्वाकांक्षाएं व प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं, लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो खालिस्तान के मुद्दे को बार-बार हवा देते हैं। हकीकत यह है कि खालिस्तान अब गुजरे जमाने की बात बन चुका है।

लाखों–करोड़ों की कमाई का जरिया

दूसरी तरफ देखा जाए तो खालिस्तान आंदोलन लाखों-करोड़ों डालरों के धंधों का नाम बन चुका है। आज विदेशों में बसने वाले पंजाब के सिखों की संख्या अच्छी खासी है। कनाडा, अमरीका, जर्मनी, इटली, फ्रांस, आस्ट्रेलिया सहित बहुत से देशों में सिखों की अच्छी खासी संख्या है। इन लोगों से चंदा जुटाने के लिए खालिस्तान के नाम का प्रयोग किया जाता रहा है। इन अनिवासी भारतीयों में भ्रम फैलाया जाता है कि भारत में सिखों से कथित तौर पर नाइंसाफी हो रही है। इस तरह का 'प्रोपेगेंडा' करने वाले लोग इस संबंध में 'ऑप्रेशन ब्लूस्टार' व 1984 में हुए सिख दंगों की झूठी-सच्ची क्लिपें भी पेश करते हैं और अपनी जेबें भरते हैं। कुछ समय पहले तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने संसद में कहा था कि खालिस्तानी आतंकवादी गुट, खासकर विदेशों में बसे संगठन पंजाब में फिर से आतंकवाद की आग फैलाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। वर्ष 2010 में परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कानाडा में खालिस्तानी अलगाववादी गतिविधियों को लेकर चिंता जता चुके हैं। विगत समय जब पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बेअंत सिंह के हत्यारे राजोआणा को फांसी दी जानी थी तो उसके पक्ष में कुछ लोगों ने अच्छी खासी कमाई की है। इस तरह की कमाई करने वालों में केवल कुछ संगठन ही नहीं पंजाबी मीडिया का एक वर्ग भी शामिल है जो राज्य में लगातार वातावरण को प्रदूषित कर रहा है।

आरंभ हुई राजनीतिक रार

जैसा कि आतंकवाद की हर घटना पर होता रहा है, पंजाब में भी आतंकवाद को लेकर राजनीति शुरू हो चुकी है। कांग्रेस पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने कहा है कि अफजल गुरु की फांसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी आतंकी भुल्लर व राजोआणा पर कमजोर क्यों दिखाई दे रही है। इसका प्रतिकार करते हुए भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष कमल शर्मा ने कहा है कि आतंकवाद के मुद्दे पर भाजपा की राष्ट्रव्यापी कठोर नीति रही है, जो व्यक्ति राष्ट्र के खिलाफ हथियार उठाता है उसे कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने प्रधानमंत्री से मिलकर राज्य की शांति व्यवस्था का वास्ता देते हुए इस मामले में नरमी बरतने को कहा है।

लेकिन कांग्रेस पार्टी की आतंकवाद पर राजनीति का भांडाफोड़ किया है खुद यूथ कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मनिंदर जीत सिंह बिट्टा ने। बिट्टा 1993 में भुल्लर के बम हमले में बाल-बाल बचे थे परंतु उनके सुरक्षाकर्मी मारे गए थे और बिट्टा गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बिट्टा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी आतंकवाद के मुद्दे पर दोहरे मापदंड अपना रही है। उन्होंने भुल्लर के मुद्दे पर कई बार राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का प्रयास किया परंतु वे नहीं मिलीं परंतु वे आतंकी भुल्लर के परिजनों से मिलती रही हैं। अदालत में भुल्लर के मुकदमे भी कपिल सिब्बल लड़ रहे हैं जो देश की सरकार में मंत्रिमण्डल के सदस्य हैं।राकेश सैन

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