पाकिस्तान में गर्दिश में उर्दू
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

पाकिस्तान में गर्दिश में उर्दू

by
Apr 27, 2013, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 27 Apr 2013 16:14:30

उर्दू के प्रसिद्ध कवि फिराक गोरखपुरी हिन्दी को गंवार और अनपढ़ लोगों की भाषा कहते थे। लेकिन यदि वे आज जीवित होते तो उर्दू के लिए दंभ भरने वाले इस कवि को उस समय बड़ा दुख होता जब उन्हें यह सुनने को मिलता कि पाकिस्तान में उर्दू को नौकरों की भाषा कहा जाता है। भारत में आज भी उर्दू का पूर्ण सम्मान है। उर्दू पर भाषा की दृष्टि से विचार किया जाए तो इसकी लिपि अरबी है और बोली हिन्दी। इस प्रकार उर्दू दो अलग-अलग भाषाओं का मिश्रण है। चूंकि मुगलों के समय फारसी राजभाषा थी इसलिए उसका सरलीकरण करके उसे कामकाज की भाषा बना दिया गया। भारत के एक बड़े भाग में हिन्दी और उसकी अन्य सहयोगी बोलियों को जब अरबी/फारसी लिपि में लिखा जाने लगा तो वह उर्दू बन गई। चूंकि भारत की भूमि पर इसका उद्भव हुआ इसलिए उर्दू यहां की एक सर्वमान्य भाषा बन गई। विभाजन के साथ यह पाकिस्तान चली गई। चूंकि पाकिस्तान का आन्दोलन उत्तर भारत में फलाफूला इसलिए सामान्य मुसलमान इसे अपनी भाषा मानने लगे। जब पाकिस्तान का निर्माण हुआ तो उर्दू को वहां राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया। लेकिन मुजीबुर्रेहमान के नेतृत्व में ढाका विश्वविद्यालय के परिसर में इसका विरोध हुआ। यहां तक कि मोहम्मद अली जिन्ना विद्यार्थियों को सम्बोधित नहीं कर सके। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने उर्दू को राष्ट्रभाषा और राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया। उनका नारा था कि बंगला ही हमारी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा है। यह पहला टकराव ही एक दिन अंतत: बंगलादेश बन जाने का कारण बना।

अंग्रेजी का बोलबाला

उर्दू भले ही पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा घोषित हो गई हो लेकिन आज भी पाकिस्तानी उसे अपनी राष्ट्रभाषा के रूप में मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि उर्दू तो नौकरों की भाषा है। पाकिस्तान में वास्तविक रूप से कोई राष्ट्रभाषा है तो वह अंग्रेजी है। आप संसद में चले जाइये अथवा विश्वविद्यालय परिसर में या फिर समाज के किसी भी वर्ग में वहां उर्दू का प्रचलन नहीं है। सिंध में सिंधी, पंजाब में पंजाबी, पख्तूनिस्तान में फारसी और फ्रंटियर प्रदेश में पश्तो का उपयोग होता है। कोई इक्का-दुक्का होगा जो उर्दू बोलता हो। निम्न वर्ग के लोग अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषा बोलते हैं और सरकारी दफ्तर एवं प्रशासन में अंग्रेजी का बोलबाला है। सम्पूर्ण पाकिस्तान दो वर्गों में बंटा हुआ है। एक सामान्य यानी आम आदमी और दूसरा पाकिस्तान का कुलीन वर्ग। इसलिए उर्दू को मुहाजिरों की भाषा कहा जाता है। यह कहा जाता है कि वे तो हमारे यहां दूसरे देश से आए हैं इसलिए उनकी भाषा राष्ट्रभाषा का दर्जा कैसे ले सकती है। पाकिस्तान तो उर्दू वाला बोलता है। अंग्रेजी वाला उसे 'पेकिस्टन' कहता है। बहुत वर्ष पूर्व एक उर्दू के प्रसिद्ध लेखक इब्राहीम जिलीस, जो हैदराबाद से पाकिस्तान गए थे, ने एक पुस्तक लिखी थी 'ऊपर शेरवानी अंदर परेशानी'। उसमें इस प्रकार के अनेक शब्दों का विवरण दिया गया था। पाकिस्तान गए आदमी को यदि अंग्रेजी नहीं आती थी तो वह उर्दू भी अंग्रेजी शैली में ही बोलता था। जब कोई 'दावाजे खोल दे' बोलना चाहता था तो ऐसा सुनाई पड़ता था मानो कह रहा हो 'देयरवाजे कोल्ड डे', इसी प्रकार दरवाजे बंद कर दे के स्थान पर आवाज आती थी 'देयर वाजे बेंकर।'

यहां तक तो सब ठीक था लेकिन पिछले दिनों पाकिस्तान में यह कहा जाने लगा कि उर्दू तो नौकरों की भाषा है। अपना सब कुछ भारत में छोड़ कर जाने वाले आज भी वहां मुहाजिर कहलाते हैं। शरणार्थी शब्द किसी के लिए भी आपत्तिजनक हो सकता है। लेकिन पाकिस्तान में मुहाजिर शब्द अब भारत से गए लोगों को अखरता नहीं है। यदि ऐसा होता तो राजनीतिक दल 'मुहाजिर कौमी मूवमेंट' कैसे बनता। भारत से गए नवाब, जमींदार और प्रशासकीय अधिकारी सभी मुहाजिर शब्द से ही पुकारे जाते हैं। सिंधी, पंजाबी, बलूची और पठान सभी मुहाजिर शब्द से ही पुकारे जाते हैं। पाकिस्तान में मुहाजिर शब्द आज भी अपमानित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

नौकरों की भाषा

पाकिस्तान के नाटककार इस्लाम अमजद का कहना है कि उर्दू भाषा पाकिस्तान में नौकरों की भाषा बन गई है। अंग्रेजी स्कूल वाले बच्चों को स्कूल में उर्दू बोलने पर दंडित करते हैं। अमजद का कहना है कि हमारे बालक उर्दू पढ़ नहीं सकते। दु:ख की बात तो यह है कि 12 वर्ष का बच्चा अपना नाम उर्दू में नहीं लिख सकता। एक पुलिस वाला भी उर्दू में चालान नहीं करता। उर्दू तो पूरे पाकिस्तान की भाषा है लेकिन वह अब तक तो किसी जिले की भाषा भी नहीं बन सकी है। घर में काम करने वाले पुरुष, स्त्री से उर्दू में बात की जाती है, क्योंकि पाकिस्तान का कोई भी राज्य हो वहां के लोग अपने अपने राज्यों की भाषा में बात करते हैं। चूंकि आज भी अनेक मुहाजिर इन भाषाओं को सीख नहीं पाए हैं इसलिए उनसे उर्दू में बात की जाती है। जिन मुहाजिरों के दम पर पाकिस्तान बना है उसे गैर-पाकिस्तानी समझा जाता है। पाकिस्तान का उच्च मध्यम वर्ग अपनी राज्य की भाषाओं में बातचीत करता है।

उससे ऊपर का वर्ग अंग्रेजी का उपयोग करता है। निम्न वर्ग की भाषा उर्दू है इसलिए घर में काम करने वाले, दफ्तर के चपरासी, फूटपाथ पर सब्जी बेचने वाले कूंजड़े और खाना बनाने वाले रसोइये अधिकतर मुहाजिर हैं इसलिए उनसे उर्दू में बातचीत की जाती है। विवाह के निमंत्रण पत्र अधिकतर तो अंग्रेजी में ही छापे जाते हैं। भूल से भी उर्दू में निमंत्रण पत्र नहीं छापे जाते हैं। उर्दू बोलने वालों को गंवार, सफाई कर्मचारी, धोबी, नाई और बाजेवाला समझा जाता है।

पाकिसतान के हर राज्य में अपनी राज्य भाषा के व्यवहार को ही वे प्राथमिकता देते हैं। वार्तालाप की शुरुआत तो अपनी ही राज्य भाषा से होती है लेकिन समझ में न आए तो उर्दू का उपयोग किया जाता है। लेकिन उसमें भी अंग्रेजी का पुट होता है। उनके मानस में यह बात कूट-कूट कर भरी हुई है कि अंग्रेजी बोलना, पढ़ना और लिखना सभ्य होने की निशानी है। जब दो व्यक्तियों में अथवा दो समूहों में झगड़ा होता है उस समय उर्दू का उपयोग धड़ल्ले से होता है। हर पाकिस्तानी की यह मानसिकता है कि उर्दू में बोल कर सामने वाले को पराजित किया जा सकता है। पंजाबियों में तो यह गंध कूट-कूट कर भरी हुई है। पाकिस्तान बने 66 वर्ष बीत गए हैं लेकिन पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू जन-जन की भाषा नहीं बन सकी है। पाकिस्तान में उर्दू को इसलिए महत्व नहीं दिया जाता है क्योंकि उच्च वर्ग वाले यह समझते हैं कि यदि उर्दू शिक्षा का माध्यम बन गई तो क्लकर्ों और चपरासियों के बच्चे भी पढ़-लिख कर कुलीन वर्ग के बच्चों के साथ बैठे होंगे। पाकिस्तान में जब टीवी के पर्दे पर बहस होती है तो बोलने वाले उर्दू शब्दों के स्थानों पर अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करके यह बताना चाहते हैं कि उन्हें उर्दू बोलने में भारी कठिनाई होती है। विज्ञापनों और नाटकों में चपरासी, ड्राइवर और माली का काम करने वालों के लिए अब्दुल और अहमद जैसे नामों का उपयोग किया जाता है। जबकि अधिकारियों और स्वामियों के नामों के पीछे ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है मानो वे अंग्रेज और अमरीकी हों। पाकिस्तान का छोटे से छोटा व्यक्ति भी अंग्रेजी में हस्ताक्षर कर अपने को बड़ा और पढ़ा-लिखा सिद्ध करने का प्रयास करता है।

उर्दू से घृणा

अंग्रेजी तो इनके बाप-दादाओं ने पढ़ी नहीं इसलिए अपने को कुलीन वर्ग का पाकिस्तानी साबित करने के लिए अंग्रेजी सिखाने वाले टयूटरों की व्यवस्था की जाती है। अपने राज्य की विधानसभा हो या फिर संसद हर दो सदस्यों में से एक अंग्रेजी सीखने के लिए घरों पर शिक्षकों की ट्यूशन लेता है। अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी घरों में अंग्रेजी पढ़ाने वालों को बुला कर अंग्रेजी सीखना अपना पहला कर्तव्य मानते हैं। पाकिस्तान सरकार के संगठन कौमी जबान मजलिस, उर्दू साइंस बोर्ड, अंजुमने तरक्की उर्दू, उर्दू अकादमी और जामेआत जैसे अनेक सरकारी संगठन और संस्थाएं हैं, जो करोड़ों रुपये खर्च करके उर्दू पढ़ाने-सिखाने और अंग्रेजी तथा अन्य राज्य भाषाओं की पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद कराने का भरसक प्रयास करते हैं, लेकिन पाकिस्तान की जनता है कि उर्दू सीखना ही नहीं चाहती। उर्दू माध्यम के बच्चों को इस प्रकार से देखते हैं मानो उन्होंने सड़क पर कोई गंदगी देख ली हो।

1973 के संविधान में उर्दू को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया था। साथ ही सरकार ने इस बात का संकल्प लिया था कि 15 वर्ष के भीतर उर्दू पाकिस्तान के कोने-कोने में फैल जाएगी लेकिन आज 25 वर्ष के बाद भी पाकिस्तान में उर्दू कहां है, यह वहां के उर्दूप्रेमियों का सवाल है। पाकिस्तान के दैनिक 'नवाए वक्त' में लिखे गए इस लेख के लेखक का कहना है कि जब पाकिस्तान बना नहीं था उस समय हिन्दुओं और अंग्रेजों ने उर्दू को विकसित नहीं होने दिया। लेकिन आज 66 वर्ष के बाद उर्दू के लिए उर्दूदानों द्वारा बनाए गए पाकिस्तान में उर्दू कहां है यह सवाल आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है। कल उर्दू को परायों ने देश निकाला दिया था, आज अपनों ने उसे अपने राष्ट्र से बाहर निकाल रखा है। उर्दू विरोधी मानस उर्दू को कब जीने, बढ़ने और फलने-फूलने का अधिकार देगा यह सवाल पाकिस्तान की 18 करोड़ जनता से है? मुजफ्फर हुसैन

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप को नसों की बीमारी, अमेरिकी राष्ट्रपति के पैरों में आने लगी सूजन

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies