|
मुस्लिम महिलाएं तीन बार तलाक कहे जाने के भय से जीवन भर भयाक्रांत रहती ही हैं। अब तकनीकी के विकास ने उसमें एक नया आयाम जोड़ दिया है, मोबाइल पर लघु संदेश (एस.एम.एस.) द्वारा तलाक का भय। इसकी शुरुआत हुई है पश्चिम बंगाल से। राज्य के मुर्शिदाबाद जिले के हरिहरपाड़ा प्रखण्ड को मसिपुर गांव में हसीना खातून अपने पति के साथ घर-गृहस्थी चला रही थी। उसके पति बढ़ई हैं, इसलिए काम के सिलसिले में बाहर जाते-आते रहते थे। कभी-कभी एस.एम.एस. भी अपनी पत्नी को भेज देते थे। दो साल पहले एक एस.एम.एस. आया- 'तलाक'। कानों-कान उस एस.एम.एस. की खबर गांव के मौलवी तक पहुंच गयी। उसने फरमान सुना दिया- तलाक हो गया, अब एक साथ नहीं रह सकते। पति का मुंह देखना भी हराम। हसीना पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। पति द्वारा मजाक में भेजा गया एसएमएस उस पर बहुत भारी पड़ा। इद्दत (तीन महीने अलग रहने) के बाद ही दोनों पति-पत्नी एक दूसरे का मुंह देख पाए। हालांकि लगातार तीन बार तलाक का एम.एम.एस. नहीं था, वर्ना हलाला भी करना पड़ता।
दूसरी तरफ सबीना को तलाक मिली पत्र के द्वारा। शाहबाजपुर (जिला मुर्शिदाबाद) की सबीना को पहली बार तलाक दिया था शाहनूर ने। कारण था पांच महीने की पुत्री की अचानक मृत्यु। एक तरफ पुत्री की मृत्यु और दूसरी तरफ पति ने दिया तलाक, दोहरे दर्द ने सबीना को तोड़ दिया। इस स्थिति का लाभ उठाकर कश्मीर से आए अब्दुल रसीद ने उससे निकाह किया और अपने घर ले गया। वहां उसे अपने देवर की पत्नी से पता चला कि उसे बेचा जायेगा। क्योंकि शादी करके कुछ दिन बाद महिला को बेचना ही उसके पति का व्यवसाय है। सबीना एक बार फिर आठ महीने का गर्भ लेकर जैसे-तैसे वापस भाग आयी और पति ने पत्र भेज दिया तलाक-तलाक-तलाक।
तलाकशुदा गरीब मुस्लिम महिलाओं की अनेक दर्दनाक घटनाएं प्राय: सुनने में आती रहती हैं। यद्यपि जमीयत इस्लामी ए हिन्द (प.बंगाल) के 'अमीर-ए-हलका' (अध्यक्ष) मुहम्मद नुरूद्दीन का कहना है- 'शरीयत के अनुसार एक साथ तीन बार 'तलाक' कहने से ही संबंध विच्छेद नहीं होता। 'तलाक' तीन महीने की प्रक्रिया है। पहली बार तलाक कहने के बाद पत्नी तीन महीने तक अपने पति के साथ नहीं रह सकती। इसी बीच पति तलाक वापस ले सकता है या दोबारा 'तलाक' बोल सकता है। फिर तीसरी बार तलाक बोले जाने पर ही हक मेहर (भरण-पोषण) देकर तलाक होता है।' लेकिन सचाई यह है कि कोई भी इस प्रक्रिया का पालन नहीं करता है। इस मनमाने और एकपक्षीय तलाक, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को सिवाय दर्द के कुछ नहीं मिलता, के खिलाफ पीड़ित मुस्लिम महिलाएं लामबंद होने लगी हैं। ऐसी महिलाओं ने मिलकर एक संगठन बनाया है- 'रोकेया नारी उन्नयन समिति'। इस समिति की प्रमुख खादिजा बानो ने कहा, 'शरीयत के अनुसार भी तलाक के नियमों में पत्नी-बच्चों के लिए कुछ अधिकारों का प्रावधान है, लेकिन गांवों में अशिक्षित मुल्ला-मौलवियों के मुंह से निकली बात शरीयत हो जाती है। या तो मानो, वर्ना इस्लाम विरोधी। इसलिए हमारी मांग है कि सभी के लिए अदालती प्रक्रिया से विवाह-विच्छेद अनिवार्य हो। बहुविवाह की प्रथा भी समाप्त हो।
मुस्लिम समाज में एक और आयाम जुड़ गया, 'दहेज'। जलंगी की कलकिहारा गांव की सबीना की शादी उसी गांव के एक दुकान मालिक सलाम के साथ तय हुई। एक पैर में अपंगता की वजह से सबीना के पिता ने सलाम को शादी से पहले ही 1 लाख 35 हजार रुपए नगद एवं दो तोला सोने के जेबरात भी दिए थे। पैसे हड़पने के बाद सलाम ने सबीना को ही सलाम कर दिया। अब वह 12वीं की पढ़ाई कर रही है ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके। उधर 52 साल की आयु में बहरामपुर के नवदापारा की आविदा को 'तलाक' मिला। पुत्र-पुत्रवधू, पोता-पोती छोड़कर जब आविदा घर से बाहर आयीं तो एकदम अकेली रह गईं। इन सारी घटनाओं का उल्लेख करते हुए 'रोकेया नारी उन्नयन समिति' की अध्यक्ष खादिजा बानो कहती हैं कि हमारे समाज में इतना पर्दा है कि हम महिलाओं का दर्द बाहर की दुनिया देख ही नहीं पाती। अगर हम पुलिस-प्रशासन को अपना दर्द बताना चाहें तो वे भी देखना-सुनना नहीं चाहते। शरीयत का भय ऐसा कि वे कुछ कर नहीं सकते, भारतीय कानून वे लागू नहीं करते और शरीयत की बात भी मुल्ला-मौलवी जानते-समझते नहीं। ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं, करें तो क्या करें?बासुदेब पाल
नशे में दिया तलाक भी मान्य
13 मार्च, 2012 को दारुल उलूम देवबंद ने एक विवादास्पद फतवा सुना दिया कि यदि शौहर नशे की हालत में हो और फोन पर कहा-सुनी के दौरान अपनी पत्नी को लगातार तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोल दे तो उसे मुकम्मल तलाक माना जाएगा। उस हालात में उसकी पत्नी उसके लिए 'हराम' हो जाएगी। उसे इद्दत (अलगाव) के दिन पूरे करने के बाद किसी दूसरे मर्द से निकाह करना होगा। फिर वह उससे तलाक ले और 'हलाला' हो जाए तब वापस अपने उसी शौहर के साथ निकाह कर सकती है।
टिप्पणियाँ