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बत्तीस साल में जो किया, वह अब तक हल न हुआ

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Apr 22, 2013, 12:00 am IST
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दिंनाक: 22 Apr 2013 12:43:45

गणित के महान शोधक की 125वीं जन्म जयन्ती

श्रीनिवास रामानुजन का नाम गणित के क्षेत्र में ध्रुव तारे के समान आज भी चमक रहा है। उन्होंने 32 वर्ष 4 मास एवं 4 दिन के छोटे से जीवनकाल में गणित के क्षेत्र में जो कार्य किया, उनको सिद्ध करने के लिए उनकी मृत्यु के 93 वर्षों के बाद भी दुनिया के विद्वान शोध कर रहे हैं।

बाल्यावस्था एवं संस्कार

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। इरोड में उनके मामा का घर था। उनके पिताजी श्रीनिवास आयंगर तंजाबुर जिले के कंुभकोणम गांव में कपड़े की दुकान में मुनीम का कार्य करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत सामान्य थी। उनकी माता कोमलताम्मल धार्मिक प्रवृति की एक परम्परावादी महिला थीं। परिवार से मिले संस्कारांे के कारण रामानुजन भी सुबह पूजा-पाठ करते थे। हमेशा धोती पहनना, चोटी रखना ही उनकी पहचान थी।

रामानुजन प्रारंभ से ही पढ़ाई में काफी आगे थे। इस हेतु विद्यालयीन शिक्षा के समय उनको कई पुरस्कार एवं छात्रवृतियां प्राप्त हुई थीं। परंतु गणित में विशेष रुचि होने के कारण और उसी ओर अधिक ध्यान देने के कारण 11वीं की परीक्षा में वे सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हुए थे, परन्तु उनकी गणित की उत्तर पुस्तिका देखकर उनके शिक्षक भी आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने 16 वर्ष की आयु में विख्यात गणितज्ञ जी.एस. कार की पुस्तक में से ज्यामिति एवं बीज गणित के प्रमेय एवं सूत्र हल कर दिए थे। त्रिघात एवं चतुर्घात समीकरण हल करने के तरीके खोज निकाले थे। 

प्रो. हार्डी की भूमिका

ग्यारहवीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद परिवार की आवश्यकता के कारण वे टयूशन करने लगे। इसके बाद विवाह हो जाने के बाद उन्हें कई स्थानों पर नौकरी हेतु भटकना पड़ा। इस कारण से उनका गणित में शोध का कार्य भी प्रभावित होता था। परन्तु उन 6 वर्ष के कठिन समय में वे डिप्टी कलेक्टर रामास्वामी अय्यर, प्रो. पी.वी. शेषु अय्यर, सी.वी राजगोपालाचारी, रामचन्द्र राव आदि के सहयोग से नौकरी के साथ-साथ गणित का कार्य भी करते रहे। रामानुजन के जीवन में जिनकी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही, वे थे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रो. जी.एच. हार्डी। उन्होंने जब रामानुजन का गणितीय शोध कार्य देखा तब वे आश्चर्यचकित रह गये। उन्होंने इंग्लैण्ड के अन्य गणितज्ञों से विचार-विमर्श करके तथा भारत के अंग्रेज अधिकारियों एवं मद्रास विश्वविद्यालय से विचार-विमर्श एवं आग्रह करके रामानुजन को इंग्लैण्ड बुलाया। 

जब रामानुजन को प्रो. हार्डी के माध्यम से इंग्लैण्ड जाने का निमंत्रण मिला तब उनकी माता ने स्पष्ट 'ना' में उत्तर दिया, क्योंकि उस समय समुद्र पार जाना अशुभ माना जाता था। उनकी मां को लगता था कि विदेश में लोग मांस, मंदिरा का सेवन करते हैं, मेरे बच्चे पर भी कुसंस्कार पड़ जाएगा। रामानुजन ने माता को वचन दिया कि वे भारतीय परम्परा एवं धर्म का पूरी तरह से पालन करेंगे और शाकाहारी भोजन ही लेंगे। इसके बाद 17 मार्च, 1914 को उन्होंने इंग्लैण्ड के लिए प्रस्थान किया। इंग्लैण्ड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के शोधार्थी के रूप में प्रवेश दिलाकर, अध्ययन, शोध कार्य, छात्रवृति आदि दिलाने में सब प्रकार से प्रो. हार्डी ने सहयोग किया। 

गणित को समर्पित जीवन

1914 के 1919 के बीच वे इंग्लैण्ड में रहे। इस बीच उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आये। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण गणित के कार्य में रुकावट, खान-पान में कठिनाई (क्योंकि रामानुजन पूर्ण शाकाहारी थे), अत्यधिक ठंड के कारण बीमारी आदि समस्याओं के बीच भी उन्होंने 37 शोध-पत्र प्रस्तुत किये। उन्हें 19 मार्च, 1916 को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक की उपाधि दी गई। 6 दिसम्बर, 1917 को 'फैलो ऑफ लंदन मेथेमेटिकल सोसाइटी' के रूप में नियुक्ति की गई। फरवरी, 1918 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के सदस्य के रूप में नियुक्त हुए। प्रथम भारतीय के रूप में मई, 1918 में 'फैलो ऑफ रायल सोसाइटी' बनने का सम्मान प्राप्त हुआ। 13 अक्तूबर, 1918 को वह ट्रिनिटी कॉलेज के फैलो चुने गये। इस प्रसंग से रामानुजन ने अपने जीवन में धन्यता का अनुभव किया, क्योंकि उनके गुरू के समान, प्रो. हार्डी भी इसी पद पर ट्रिनटी कॉलेज में ही कार्यरत रहे थे। 

रामानुजन स्वदेश वापस लौटने के बाद असाध्य बीमारी की अवस्था में भी उनकी गणित की साधना चलती रही। उनकी पत्नी जानकी देवी के शब्दों में कहें तो 'पेट में पथरी में रहने के कारण उनकी पीठ एवं पैर में दर्द होता था उनकी परवाह किये बिना वे कहते थे कि मुझे तकिया लगाकर बिठा दो और बाद में स्लेट और चाक मांगकर गणित के सूत्र सुधारने का कार्य करने में मग्न हो जाते थे। अपनी मृत्यु के दो मास पूर्व 12 जनवरी, 1920 को उन्होंने प्रो. हार्डी को अंतिम पत्र लिखा, उसमें भी उन्होंने 'मॉक थीटा फंक्शन' पर मिले परिणामों को लिखकर भेजा था। 

श्रीनिवास रामानुजन ने 32 वर्ष की छोटी आयु में, जीवन भर संघर्षरत रहकर भी गणित के क्षेत्र में ऊचाई को प्राप्त किया। उनके द्वारा किए गए शोध कार्य का पार्टिकल फिजिक्स, कम्प्यूटर साईस, क्रायप्टोग्राफी, पोलिमर कैमिस्ट्री, परमाणु भट्टी, दूरसंचार, कम्युनिकेशन नेटवर्क, घात, न्यूकिलियर फिजिक्स, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों में अनुप्रयोग किये जा रहे हैं। उनके तीन हस्तलिखित प्रपत्र (नोटबुक) टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फन्डामेन्टल रिसर्च के द्वारा प्रकाशित किया गया। 

प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं दार्शनिक बट्रेड रसेल ने कहा कि प्रो. हार्डी एवं प्रो. लिटिलवुड ने 'एक हिन्दू क्लर्क में से दूसरे न्यूटन को खोज निकाला'। भारत रत्न डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा भारत ही नहीं पूरे विश्व के गणितज्ञों के लिए रामानुजन निरन्तर प्ररेणास्रोत बने हुए हैं। प्रो. हार्डी ने तत्कालिक गणित के विद्वानों को 100 में से अंक वितरित थे। जिसमें स्वयं को 25, लिटिलवुड को 30, जर्मन गणितज्ञ हिलवर्ड को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिये थे।

दूर करें गणित का डर

प्रो. के. आनन्दराव भी रामानुजन के समय में किग्स कॉलेज में थे। उनके अनुसार, 'इतनी प्रसिद्धि मिलने के बाद भी वे स्वभाव से विनम्र थे, उनके रहन-सहन मे सादगी थी। वे अपने लिए स्वयं ही भोजन बनाते थे। जब उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नही थी, लिखते समय कागज खत्म हो जाते थे, तब लिखे हुए कागज पर लाल स्याही की मदद से सूत्र लिखने लगते थे। नौकरी के समय में पोर्ट ट्रस्ट के रास्ते से कागज इकट्ठा करके उपयोग करते थे। इस सबके बावजूद चेन्नै विश्वविद्यालय से जब 250रु. की छात्रवृति स्वीकार हुई, तब उन्होंने रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर कहा कि इसमें से मेरे घर का खर्च निकलने के बाद जो बच जाए, वह गरीब विद्यार्थियों के सहायता कोष में जमा करा दें। 

भारत के प्रधानमंत्री ने श्रीनिवास रामानुजन के 125वें वर्ष को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया है। परन्तु भारत में श्रीनिवास रामानुजन के कार्य पर कोई विशेष अनुसंधान नहीं किया जा रहा। केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों तथा देश में गणित पर कार्य करने वाले विद्वानों एवं विश्वविद्यालयों में इस पर चिंतन करके कुछ ठोस कार्य करने के बारे में विचार करना चाहिए। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने देशभर में गणित वर्ष के निमित्त विभिन्न गतिविधियां चलाई है। रामानुजन के जीवन पर एक पुस्तक भी प्रकाशित होने जा रही है। श्रीनिवास रामानुजन का जीवन एवं कार्य मात्र भारत के ही नहीं विश्व के गणितज्ञों, शिक्षकों एवं छात्रों के लिए प्रेरणादायी है। श्रीनिवास रामानुज के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करके उनके कार्य को आगे बढ़ाने एवं छात्रों को गणित के भय से मुक्त करने का संकल्प करें। यही श्रीनिवास रामानुजन को सच्ची श्रद्धाञ्जली होगी। अतुल कोठारी

शुभ–अशुभ संख्या

जब श्रीनिवास रामानुजन लन्दन में बहुत अधिक बीमार थे, तब प्रो. हार्डी उनसे मिलने के लिए गये। जाते समय रास्ते में प्रो. हार्डी सोच रहे थे कि रामानुजन का स्वास्थ्य खराब होने के कारण आज वे गणित की कोई बात नहीं करूंगा। कुछ हल्की-फुल्की बात करना अच्छा रहेगा। पर जब वे रामानुजन से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं जिस टैक्सी से आया उसका नम्बर 1729 था, जो अपशकुन संख्या है। रामानुजन ने तुरन्त कहा, 'नहीं-नहीं, यह संख्या छोटी से छोटी संख्या है, जिसे दो भिन्न-भिन्न रूपों में दो संख्याओं के घन के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। विख्यात गणितज्ञ प्रो. लिटिलवुड का ठीक ही कहना था कि रामानुजन प्रत्येक संख्या के मित्र थे। अतुल कोठारी

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