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'दामाद' है तो खातिरदारी होगी

by
Apr 15, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Apr 2013 12:32:39

 l24 मार्च,2013

आवरण कथा 'दामादजी का कारोबार कांग्रेस की किरकिरी' में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाढरा किस प्रकार सरकारी संरक्षण में पैसा बना रहे हैं उसका खुलासा किया गया है। करीब 10 साल के अन्दर राबर्ट वाढरा लाखों से करोड़ों में पहुंच गए। ईमानदारी की कमाई से इतना पैसा जोड़ना संभव नहीं है। साफ है कि वाढरा को सोनिया के दामाद होने का लाभ मिल रहा है।

–दयाशंकर मिश्र

लोनी, गाजियाबाद (उ.प्र.)

o ¤ÉÉfø®úÉ पर केन्द्र सरकार के साथ-साथ सभी कांग्रेसी राज्य सरकारें मेहरबान हैं। हरियाणा सरकार ने वाढरा को 'सरकारी दामाद' मानकर 'दहेज' में करोड़ों रुपए का भूखण्ड भेंट किया है। सत्ता का ऐसा दुरुपयोग करने का उदाहरण और कहीं नहीं मिलेगा। वाढरा के पास इतनी सम्पत्ति कहां से आई इसको लेकर भाजपा एक अभियान छेड़े।

–गणेश कुमार

कंकड़बाग, पटना (बिहार)

o ¨ÉÖ®úÉnùɤÉÉnù निवासी पीतल का छोटा सा कारोबार करने वाले सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाढरा चंद वर्षों में करोड़ों के मालिक हो गए हैं। कांग्रेस की सभी राज्य सरकारें शायद उन्हें सोनिया का नहीं, बल्कि अपना दामाद मानती हैं। हरियाणा और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। इसीलिए दोनों सरकारों ने इतनी मेहरबानी 'दामादजी' पर दिखाई कि सारे कानून ताक पर उठाकर रख दिए।

–निमित जायसवाल

ग-29, ई. डब्लू. एस. रामगंगा विहार फेस प्रथम, मुरादाबाद-244001 (उ.प्र.)

वास्तविकता से दूर

श्री देवेन्द्र स्वरूप के लेख 'संघ को कब समझेगा मीडिया?' का सन्देश है कि संघ के सम्बंध में सेकुलर मीडिया वास्तविकता से कोसों दूर है। सेकुलर प्रत्रकारों को संघ की शाखाओं में कुछ समय लगातार जाने की जरूरत है। इससे उन्हें वास्तविकता का ज्ञान होगा। संघ की शाखाओं में देशभक्ति की भावना सिखायी जाती है, जबकि मदरसों में मजहबी कट्टरता उभारी जाती है। यदि सेकुलर मीडिया संघ को सकारात्मक दृष्टि से देखे तो संघ के प्रति लोगों का आकर्षण भी बढ़ेगा।

–वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28-ए, शिवपुरी विस्तार

कृष्ण नगर, दिल्ली-110051

बेहद रोचक

इन दिनों स्वामी विवेकाननंद के जीवनन की अनुपम झांकी चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की जा रही है। यह झांकी बेहद रोचक व मन को प्रभावित कर रही है। समय-समय पर अन्य महापुरुषों के प्रेरणादायक प्रसंगों को लेखों और चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करें, तो पाठकों का ज्ञान बढ़ेगा।

–कुमारी प्रियंका

आर जेड-127, सन्तोष पार्क,

उत्तम नगर, नई दिल्ली-59

ऐसा क्यों?

श्री जितेन्द्र तिवारी की रपट 'बलिदान सबका एक-सा कीमत अलग-अलग' अच्छी लगी। बड़ी दु:खद स्थिति है कि वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता शहीदों को मजहब के आधार पर देख रहे हैं। उ.प्र. में शहीद डी.एस.पी. जिया उल हक के परिवार वालों को मुआवजा और नौकरी देने में उनके मजहब का ध्यान रखा गया। वहीं 2008 में दिल्ली के बटला हाउस में आतंकवादियों के हाथों शहीद हुए पुलिस अधिकारी मोहन चंद शर्मा की पत्नी को मुआवजा पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा था। ऐसा कयों?

–देशबन्धु

उत्तम नगर, दिल्ली -59

o =.|É. में तुष्टीकरण की पराकष्ठा हो रही है। अखिलेश सरकार को सिर्फ  शहीद जिया उल हक का परिवार दिखता है, जबकि आए दिन वहां के नौजवान शहीद हो रहे हैं। उनके परिवार वालों की चिन्ता क्यों नहीं होती है? मुलायम सिंह की यह स्वीकारोक्ति कि उन्होंने 400 मुस्लिम युवकों को जेल से छुड़ाया, यह अपने आपमें प्रमाण है कि उन्होंने सत्ता के लिए तुष्टीकरण की सारी हदें लांघ दी हैं।

–मनोहर 'मंजुल'

पिपल्या–बुजुर्ग

प. निमाड़-451223 (म.प्र.)

'खतरनाक' पार्टी

पिछले दिनों नई दिल्ली में राजनाथ सिंह ने भाजपा  कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि कांग्रेस देश को आतंकवाद से छुटकारा नहीं दिला सकती है, क्योंकि उसके पास आतंकवाद को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है। मैं उनकी बातों से सहमत हूं और एक बात बताना चाहती हूं कि कांग्रेस खुद में एक 'खतरनाक' पार्टी है। यही तुष्टीकरण की नीति चलाती है। यही भ्रष्टाचारियों को पालती है और अपने विरोधियों को सी.बी.आई. के जरिए डराती है।

–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर

द्वारकापुरम, दिलसुखनगर

हैदराबाद, 60 (आं.प्र.)

o EòÉÆOÉäºÉ-xÉÒiÉ संप्रग सरकार देश की सुरक्षा नहीं कर सकती है। जो सरकार अपनी सुरक्षा के लिए देशहित को ताक पर रख रही है उससे क्या अपेक्षा की जाए? इस सरकार ने बहुत हद तक आतंकवादियों के मनोबल को बढ़ाने का काम किया है।

–गोकुल चन्द्र गोयल

85, इन्द्रा नगर, सवाई माधोपुर (राज.)

o +ÉiÉÆEò´ÉÉnùÒ निर्दोष लोगों को मार रहे हैं, हमारे सैनिकों के सिर काट रहे हैं और भारत सरकार आतंकवादियों को पालने वाले पाकिस्तान से दोस्ती करने के लिए लालायित है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के स्वागत में भोज दे रही है। ऐसे में आतंकवाद का खात्मा नहीं होगा।

–डा. आर. एस. सोनी

इन्दौर-452001 (म.प्र.)

असलियत उजागर

कुछ अंक पहले 'संतई पर सवाल'  शीर्षक से प्रकाशित समाचार ने मदर टेरेसा की असलियत उजागर कर दी है। 'दया' और 'करुणा' जैसे चमत्कारों द्वारा रोगियों को लाभ पहुंचाने एवं ठीक करने के पीछे-झूठ व फरेब है। वास्तविक रूप से रोगियों के ठीक होने का कारण चिकित्सकों द्वारा इलाज था। दुर्भाग्य से ऐसे लोगों को सम्मानित भी किया जा रहा है, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के कार्यों को सरकारी स्तर पर कोई महत्व नहीं मिल रहा है। जबकि वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता नि:स्वार्थ भाव से दिन-रात वनवासियों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं, जबकि ईसाई मिशनरी उनकी सेवा उनके मतान्तरण के लिए करते हैं।

–रमेश कुमार मिश्र

ग्रा. कान्दीपुर,  पत्रा– कटघरमूसा

जिला–अम्बेडकर (उ.प्र.)

अराजकता की ओर भारत

ऐसा लगता है कि भारत अराजकता की ओर बढ़ रहा है। भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले नेता ये सब कानून को नहीं मान रहे हैं। जहां कानून का राज नहीं होता वहां अराजकता ही फैलती है।

–चुन्नी लाल सोनी

मेन रोड, छपरौली,

जिला–बागपत– 250617 (उ.प्र.)

 

चैत्र शुक्ल      11 रवि   21 अप्रैल, 2013

”     ”       12      सोम  22      ”   “

”     ”       13      मंगल  23    ”   “

”     ”       14     बुध  24       ”   “

चैत्र पुर्णिमा        गुरु  25       ”   “

(वैशाख स्नान प्रारम्भ)

वैशाख कृष्ण    1 शुक्र  26       ”   “

”     ”        2      शनि 27       ”   ” 

 

गनीमत है मुंह खोला

कांग्रेसजन कर रहे, राहुल की जयकार

इतने सालों बाद वे, बोले आखिरकार

बोले आखिरकार, गनीमत है मुंह खोला

लेकिन किसने लिखा उसे, जो तुमने बोला

कह 'प्रशांत' जो बातें तुमने बतलाई हैं

उनको पूरा करने में क्या कठिनाई है?  

–प्रशांत

पुरस्कृत पत्र

इतिहास से सबक लें

 

आज भारत को सबसे अधिक खतरा वोट बैंक की सरकारी नीतियों से है। जनसंख्या नियंत्रण, कानून-व्यवस्था, शिक्षा, आतंकवाद तथा गृह और विदेश नीतियां तक मुस्लिम तुष्टीकरण को ध्यान में रखकर तय की जा रही हैं। गत 2 हजार वर्ष के भारतीय इतिहास में भारतीय शासकों ने विदेशी आक्रमणकारी शक, हूण, अरब व मुसलमानों जैसे क्रूर, अत्याचारी और बर्बर आक्रान्ताओं तक से मानवतावादी हिन्दू संस्कृति सूत्रों के पालन के साथ सामना करने का प्रयास किया। हिन्दू शासकों ने अत्याचारी विदेशी हमलावरों को हराकर भी उन्हें क्षमादान दिया, जो बाद में क्षमाशील व नीतिपालक भारतीय हिन्दू शासकों के ही विनाश का कारण बना। मोहम्मद साहब के जीवनकाल से बहुत पहले से ही अरब देशों का भारत के मालाबार तट पर बड़ा भारी व्यापार था। अरब व्यापारी घोड़े आदि कई चीजें भारत लाते और भारत से वहां लकड़ी, मसाले, रेशम आदि निर्यात होते थे। इस प्रकार व्यापारिक लाभों के कारण दक्षिण भारतीय शासक इन अरब व्यापारियों को संतुष्ट रखने का प्रयास करते थे। मोहम्मद साहब द्वारा अरब में इस्लाम फैलाने के बाद नवमुसलमान अरबी व्यापारी भारत में अपने मजहब का प्रचार-प्रसार करने लगे। इस पर कुछ प्रतिक्रिया व हिन्दू-मुस्लिम टकराव भी होने लगे। परन्तु भारतीय शासक व्यापार के लोभ में मुसलमान विदेशी व्यापारियों का पक्ष लेने लगे। अपनी पुस्तक ‘<ÆÊb÷ªÉxÉ <º±Éɨɒ में टाइटस ने लिखा है, ‘ʽþxnÚù शासक अरब व्यापारियों का बहुत ध्यान रखते थे, क्योंकि उनके द्वारा उनको आर्थिक लाभ होता था। कुछ मतान्तरित हुए भारतीय मुसलमानों को भी शासकों द्वारा वही सम्मान व सुविधाएं दी जाती थीं, जो इन अरब मुसलमान व्यापारियों को दी जाती lÉÓ*’ इसी प्रकार एक मुसलमान इतिहासकार मोहम्मद ऊफी लिखता है कि ‘Eèò¨¤Éä के मुसलमानों पर हिन्दुओं ने प्रतिक्रिया की तो वहां के शासक  सिद्धराज (1094-1143 ई.) ने न केवल अपनी प्रजा के उन हिन्दुओं को दण्ड दिया, बल्कि उन मुसलमानों को एक मस्जिद बनाकर भेंट EòÒ*’

इस प्रकार दक्षिण भारत में इस्लाम अरब व्यापारियों द्वारा तथा उत्तर भारत में अरबी, अफगानी, ईरानी, मंगोल और मुगल आक्रमणकारी कुरान और तलवार का विकल्प लेकर आए। परन्तु भारतीय हिन्दू शासकों ने उन आक्रमणकारियों को रीति-नीति युक्त व मानवीय गुणों वाला समझते हुए उनसे मानवतावादी प्रतिकार किया। जिसका लाभ इन दुष्टों ने निरन्तर उठाया और अपनी विचारधारा के अनुरूप भारत में शासन विस्तार किया। इसी का परिणाम रही भारत में आठ सौ साल की मुगल अत्याचारी गुलामी। आज भी भारत में भारतीय शासकों का चिन्तन वही है जो 7वीं शताब्दी में इस्लाम के प्रवेश करते समय दक्षिण भारत के हिन्दू शासकों का था। फर्क इतना है कि तब नोटों का लालच था, आज वोटों का। अपने उदारवादी व क्षमाशील दृष्टिकोण के कारण ही श्रेष्ठ हिन्दू वीर योद्धा आक्रमणकारियों को हराकर भी क्षमा करते रहे। इसका परिणाम हिन्दुओं को भुगतना पड़ा। इस देश की सदियों पुरानी हिन्दू संस्कृति तक को समाप्त करने का प्रयास किया, छोटे-बड़े मन्दिर व आस्था केन्द्रों को नष्ट-भ्रष्ट किया। सन् 712 में मोहम्मद बिन कासिम से लेकर वर्तमान समय में अफजल तथा अजमल कसाब तक के आक्रमण इसी प्रकार के उदाहरण हैं। समय अवश्य बदला है, परन्तु आक्रमणकारी मानसिकता, संस्कृति तथा विचारधारा में कोई बदलाव नहीं है। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए।

–डा. सुशील गुप्ता

शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट

बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

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