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कठिनाइयां आपको अंदर से मजबूत करती हैं। अचानक से आईं मुसीबतें आपको तुरत निर्णय लेने का अनुभव देती हैं। अनजाने रास्ते और लंबे सफर आपके लिए नई राहें खोलते हैं। यह सब करने के लिए बस थोड़े-से साहस की जरूरत होती है। उठाइए साइकिल और निकल जाइए ऐसे रास्तों पर जहां जाने के लिए आपका जी मचल रहा हो। जिंदगी को ठाट से जीने के लिए साइकिलिंग से अच्छा विकल्प नहीं है। यह कहना है रोमांच के साथी युवा देवेन्द्र तिवारी का। मध्य प्रदेश में ग्वालियर के कृषक परिवार में जन्मे देवेन्द्र तिवारी देश के कई दुर्गम क्षेत्रों को साइकिलिंग से जीत चुके हैं।
अपनी पहली कठिन यात्रा का जिक्र करते हुए वे कहते हैं कि अचानक एक दिन बैठे-बैठे मेरे दिल में ख्याल आया कि क्यों न हिमालय की चोटियों और घाटियों को अपनी साइकिल से नापा जाए। कुल्लू मनाली क्षेत्र के 13,000 फुट से अधिक ऊंचे चंद्रखानी पास ट्रैक पर चला जाए। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड ऐसे प्रदेश हैं, जिनका हर हिस्सा खूबसूरत और आकर्षक है। हर कोई बार-बार और हमेशा के लिए इन्हें अपने अंदर समा लेने की चाह रखता है। व्यास नदी के तट पर बसा मनाली शहर हमेशा पर्यटकों से भरा रहता है। इसी चुंबकीय आकर्षण में आकर उन्होंने 13 हजार फुट से अधिक ऊंचे ट्रैक चंद्रखानी पास को फतह करने की मन में ठान ली। तब उनके पास उम्दा माउंटेन साइकिल उपलब्ध नहीं थी।
वे बताते हैं, ‘BEò ‘Bb÷´ÉåSÉ®ú C±É¤É’ से जुड़े होने पर मुझे किराए पर वह साइकिल उपलब्ध हो गई। जरूरी तैयारी के साथ मैं निकल पड़ा अपने पहले कठिन सफर पर। मनाली से शुरू होने वाला चंद्रखानी पास ट्रैक मलाना और मनिकर्ण होते हुए बिजली महादेव तक जाता है। चंद्रखानी पास को देवी-देवताओं के मिलन की जगह भी कहा जाता है। समतल सड़कों पर साइकिलिंग की जगह पहली बार ऊंचे शिखर पर साइकिल चलाने का रोमांच ही अलग था। मानो सातवां आसमान छू लिया हो। इस पहली जीत से इस यात्रा को और अधिक रोमांचकारी बनाने का साहस मन में पैदा हुआ। इस बार हाड़ कंपाने वाली सर्दी में हिमालच प्रदेश की बफर्ीली पर्वतीय श्रृंखला धौलाधार में कुछ तूफानी करने का तय किया। यहां तो ऐसा लगा जैसे स्वप्नों में देखा स्वर्ग साकार उपस्थित हो गया हो। धौलाधार कांगड़ा जिले का सबसे आकर्षक पर्यटन और साहसिक गतिविधियों का केन्द्र है। इसे 12 माह दूधिया बर्फ से ढका देखा जा सकता है। हनुमान का टिंबा या सफेद पर्वत इस पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है। धौलाधार की समुद्र तल से ऊंचाई 3500 से 6,000 मीटर तक है। छोटा हिमालय के नाम से प्रसिद्ध धौलाधार पर्वत श्रृंखला डलहौजी के पास से शुरू होती ½èþ*’ इसके बाद साहसिक खेलों में रुचि रखने वाले युवा देवेन्द्र तिवारी ने कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। जैसे ऊंचे पहाड़ उन्हें आवाज देकर बुलाते हों, वे बार-बार उनके बुलावे पर जाते रहे। छोटा सियाचिन (14,200 फुट), रोहतांग पास (13,051 फुट), बड़ा-लाचा-ला-दरर्ा (16,040 फुट), नकीला पास (15,547 फुट) और दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे चलने योग्य मार्ग तंग-लांग-ला दरर्ा (17,500 फुट) पर भी ग्वालियर के देवेन्द्र तिवारी ने भारत का झंडा फहराया।
मध्य प्रदेश में साइकिलिंग और साहसिक गतिविधियों में अपना योगदान देने के लिए देवेन्द्र तिवारी का सरकार और सामाजिक संस्थाओं ने सम्मान भी किया है। कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उन्हें साहसिक गतिविधि के लिए सम्मान दिया है। हाल ही में उन्हें वन्देमातरम् राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित किया गया।
देवेन्द्र तिवारी कहते हैं कि दुनिया को साइकिल से नापने की उनकी अदम्य इच्छा है। वे साइकिल से विश्वयात्रा पर निकलकर ‘¤Éä]õÒ ¤ÉSÉÉ+Éä’ का संदेश देना चाहते हैं। साथ ही वे पर्यावरण के प्रति भी दुनिया को सचेत करना चाहते हैं। उनका मानना है कि व्यक्ति को दैनिक जीवन में फिर से साइकिल को अपना लेना चाहिए। इसके कई फायदे हैं- शरीर चुस्त रहेगा, ईंधन का संकट कम होगा और महंगाई की मार से भी बचा जा सकेगा। ट्रैकिंग पर जाने वाले साथियों को वे सलाह देते हैं कि ट्रैकिंग के लिए जगह और मार्ग चुनने से पहले अपनी रुचि और क्षमताओं को परखना जरूरी है। अगर आपको ऊंचाई पर जाने में तकलीफ है तो समतल मैदान ही चुनें। यदि ऊंचाई आपको आनंदित करती है और आप लम्बे समय तक पहाड़ों में भटकने का माद्दा रखते हैं तो जरूर लम्बे रास्ते, ऊंची जगह चुनें और ऊंचे शिखरों पर जीवन को रोमांच के साथ जिएं।: लोकेन्द्र सिंह
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