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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (11 अप्रैल) से वासन्तिक नवरात्र शुरू हो रहे हैं। इसी दिन विक्रमी संवत् 2070 भी प्रारंभ हो रहा है। हमारे मनीषियों ने यह अद्भुत विधान बनाया है कि हम अपने नव वर्ष का स्वागत शक्ति की देवी दुर्गा जी का पूजा-पाठ करके करते हैं। सनातनधर्मी पूरे नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा करते हैं और नव वर्ष के लिए मंगल कामना करते हैं। नवरात्र के अवसर पर देवी मन्दिरों विशेषकर शक्तिपीठों में भक्तों का तांता लगा रहता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। शक्तिपीठों के सन्दर्भ में एक पौराणिक कथा है। एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व/ बिहासनी' यज्ञ आयोजित किया। इस यज्ञ में उन्होंने जानबूझकर अपने दामाद और सती के पति भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब सती को पता चला तो वह क्रोधित हो उठीं। भगवान शंकर के मना करने के बावजूद वह यज्ञस्थल पर पहुंच गईं। वहां अपने पति का अपमान देखकर वह यज्ञ-कुण्ड में कूद गईं। इसके बाद भगवान शंकर का तीसरा नेत्र खुल गया। पूरा ब्रह्माण्ड सहम सा गया। गुस्से से सती के शव को लेकर भगवान शंकर सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। उसी भ्रमण के दौरान जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस समय भारत में 42, बंगलादेश में 6, पाकिस्तान में 2 और नेपाल में एक शक्तिपीठ है। श्रीलंका और तिब्बत में भी शक्तिपीठ होने की बात कहीं-कहीं आती है। यहां कुछ शक्तिपीठों का वर्णन प्रस्तुत है।
कालका देवी
यह मन्दिर हरियाणा के कालका रेलवे स्टेशन के पास पुराने शिमला मार्ग पर है। कहा जाता है कि माता पार्वती के शरीर से कौशिकी देवी के प्रकट हो जाने पर पार्वती का शरीर काला हो गया तथा वह कालका में आकर स्थित हो गईं। दिल्ली से कालका आप रेल या बस से पहुंच सकते हैं।
मनसा देवी
मनसा देवी का मन्दिर पंचकुला जिले के विलासपुर गांव के पास 100 एकड़ जमीन पर फैला है। यह चण्डीगढ़ से बिल्कुल सटा हुआ है। मनसा देवी से चण्डी मन्दिर की दूरी करीब 10कि.मी. है। दिल्ली से यहां पहुंचना बहुत ही आसान है।
नैना देवी
यह हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। कहा जाता है कि यहां देवी के नेत्र गिरे थे। यह स्थान राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 21 से जुड़ा है। दिल्ली से नैना देवी की दूरी लगभग 350 कि.मी. है। दिल्ली से करनाल, चण्डीगढ़, रोपड़ होते हुए नैना देवी पहुंच सकते हैं।
चिन्तपूर्णी देवी
चिन्तपूर्णी देवी छिन्नमस्तिका देवी के नाम से भी विख्यात हैं। हि.प्र. के ऊना जिले में चिन्तपूर्णी देवी का भव्य मन्दिर है। यहां देवी की मूर्ति नहीं पिण्डी है। यह बहुत ही भव्य स्थान है।
ज्वाला देवी
चिन्तपूर्णी से ज्वाला देवी का मन्दिर करीब 40 कि.मी. है। यह कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है। मन्दिर के अन्दर दीवारों से ज्वालाएं निकलती रहती हैं, जो सदा प्रज्ज्वलित रहती हैं। इन्हीं पवित्र ज्वालाओं की पूजा की जाती है।
ब्रजेश्वरी देवी
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के नगर कोट में महामाया का मन्दिर है। इसे ही ब्रजेश्वरी देवी का मन्दिर कहा जाता है। 11वीं सदी में बने इस मन्दिर की स्थापत्यकला बेजोड़ है। यहां दुर्गा जी की चार भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित है।
चामुण्डा देवी
चामुण्डा देवी का मन्दिर पालमपुर से 10 कि.मी. दूर बनेर नदी के किनारे है। मन्दिर में देवी दुर्गा की मूर्ति एक लाल कपड़े से ढकी रहती है। यहां की आरती का विशेष महत्व है। दिल्ली से इसकी दूरी करीब 600 कि.मी. है।
वैष्णो देवी
जम्मू–कश्मीर में स्थित यह स्थल उत्तर भारत में सबसे अधिक पूजनीय है। वैष्णो देवी की यात्रा कटरा से शुरू होती है। कटरा से करीब 12 कि.मी. की ऊंचाई पर यह स्थल है। प्रतिदिन हजारों भक्त वैष्णो माता के दर्शन करते हैं। दिल्ली से बस या रेल से जम्मू पहुंच सकते हैं। जम्मू से कटरा तक बस या टैक्सी हमेशा उपलब्ध रहती है। अब दिल्ली से कटरा तक सीधी रेल सेवा उपलब्ध हो गई है।
शाकुम्भरी देवी
यह मन्दिर उ.प्र. में सहारनपुर जिले के बेहट से करीब 15 कि.मी. दूर है। यह एक शक्तिपीठ है। दुर्गा सप्तशती में शाकुम्भरी देवी का वर्णन है। दिल्ली से रुड़की, कलसिया, बेहट होते हुए यहां पहुंच सकते हैं।
कामाख्या देवी
कामाख्या देवी का मन्दिर असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर है। यहां भगवती सती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यहां साल भर श्रद्धालु आते हैं। यह मन्दिर तांत्रिकों की साधना के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्रों में यहां भक्तों की काफी भीड़ रहती है। कहीं से भी गुवाहाटी पहुंचें। गुवाहाटी से कामाख्या जाने के लिए अनेक साधन मिलते हैं।
हिंगलाज देवी
हिंगलाज देवी का मन्दिर कराची (पाकिस्तान) से उत्तर-पश्चिम में लगभग 120 कि.मी. दूर हिंगोल नदी के किनारे है। कहा जाता है कि यहां सती के सिर का ऊपरी भाग गिरा था। इन दिनों इस शक्तिपीठ की स्थिति ठीक नहीं है। कभी-कभार भारत से ही कुछ श्रद्धालु हिंगलाज देवी के दर्शन के लिए जाते हैं। उनको वीजा भी काफी मशक्कत के बाद मिलता है। करीब एक वर्ष पहले हिंगलाज देवी मन्दिर के पुजारी का अपहरण कर लिया गया था। उनका अभी तक कुछ पता नहीं है। इस वजह से इस शक्तिपीठ में नियमित पूजा भी नहीं हो पाती है।
कराची के पास ही सक्कर रेलवे स्टेशन के नजदीक शर्कररे में एक शक्तिपीठ है। यहां देवी की आंखें गिरी थीं।
श्रीशैल देवी
यह भी एक शक्तिपीठ है, जो बंगलादेश में है। यह स्थान सिलहट से उत्तर-पूर्व में 3 कि.मी. की दूरी पर जानपुर गांव में है। यहां सती का गला गिरा था।
सुगंधा शक्तिपीठ
यह स्थान बंगलादेश में शिकारपुर में है। यहां सुनन्दा देवी का मन्दिर है। मान्यता है कि यहां देवी की नासिका गिरी थी। यहां शिव चतुर्दशी (मार्च महीने) के अवसर पर विशेष पूजा होती है।द
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