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दिल्ली में बर्बर बलात्कार का शिकार हुई एक युवती की मौत पर देशभर में तीखा आक्रोश उपजा। चूंकि बलात्कार काण्ड का मुख्य आरोपी 18 वर्ष से कम आयु का था, इसलिए उसे तिहाड़ जेल की बजाय बाल सुधार गृह में भेजा गया। उसे कठोर दण्ड भी नहीं मिलेगा। इसलिए चारों तरफ से किशोर कानून (जुवेनाइल ला) में बदलाव की मांग उठी, क्योंकि किशोर न्याय कानून (2000) की धारा 16 किसी नाबालिग को मृत्युदण्ड देने पर रोक लगाती है। इसलिए किशोर अपराधियों की आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने की मांग समाज, बौद्धिक जगत और न्यायिक क्षेत्र से भी उठी। पर इसे सरकार की मतिहीनता कहें या कुछ और, वह इसके बदले आम सहमति से युवती द्वारा शारीरिक संबंध बनाने की आयु सीमा 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने का प्रस्ताव ले आयी। भारी विरोध हुआ तो संशोधन किया। हालांकि 19 मार्च को दुष्कर्म रोधी (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित हो गया, पर इस दौरान भी 200 से अधिक सांसद अनुपस्थित रहे और इसमें भी कुछ प्रावधानों को लेकर उनके दुरुपयोग की आशंका जताई गई है, हल्की भाषा में टीका–टिप्पणी हुई है। इस पूरे प्रसंग ने एक बेहद गंभीर मामले में सरकार की सतही सोच को सामने ला दिया है। संप्रग सरकार सहमति से शारीरिक संबंध के बारे में जो प्रस्ताव लाना चाहती थी, उस विषय पर यहां प्रस्तुत हैं दो विद्वानों की राय–
सहमति की यही परिभाषा है
तो कुछ अपराध नहीं
कैसी विडम्बना और सरकारी सोच का दिवालियापन है कि जिस देश में युवतियों के लिए विवाह की आयु 18 वर्ष है और लड़कों को 21 वर्ष की आयु में विवाह करने का प्रावधान है, उसी देश में सरकार यह घोषणा कर दे कि कोई भी युवती 16 वर्ष की आयु में सहमति से अगर यौन संबंध बनाती है तो उसे गैरकानूनी नहीं माना जाएगा। यह साफ था कि इस प्रस्ताव को संसद में पारित कराना बहुत बड़ी चुनौती होगी, लेकिन मंत्रियों के बीच बनी इस सहमति को भी अपने देश में दु:खद आश्चर्य के साथ देखा जा रहा है। हो सकता है कि इस तथाकथित राजीनामे को वह समाज पचा ले जहां बाल विवाह का प्रचलन है, लेकिन वहां की सरकारों को यह साफ बताना होगा कि उनकी दृष्टि में अब बाल विवाह अपराध रहा है या नहीं। इस विवादित सहमति के पक्ष में कुछ समाजशास्त्रियों और विज्ञानियों की यह राय थी कि टीवी, इंटरनेट के इस युग में बच्चे पहले के मुकाबले अब जल्दी वयस्कता की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसी स्थिति में यौन संबंधों की आयु घटा देना व्यावहारिक लगता है। पर यहां सवाल यह है कि यदि आगे चलकर दस साल की आयु में ही बच्चे ये सब कुछ जानने लग जाएं तो क्या कानून उन्हें दस साल की आयु में ही शारीरिक संबंध बनाने की छूट प्रदान करेगा? जिस देश में केवल विवाह की ही आयु 18 वर्ष नहीं है बल्कि वोट देने का अधिकार, ड्राइविंग लाइसेंस लेना, सिगरेट व शराब पीने तथा वयस्क फिल्म देखने के लिए किसी व्यक्ति का 18 वर्ष का होना कानूनी रूप से अनिवार्य है, तो फिर सहमति से यौन संबंध के लिए दो साल की यह छूट क्यों और किसलिए?
हाल ही का समाचार है कि मुंबई के एक बार पर छापा मारकर पुलिस ने 38 बार बालाओं को और उस होटल के अधिकारियों को गिरफ्तार किया। क्या सरकार बताएगी कि यह बार बालाएं बिना सहमति के वहां नाचने-गाने के लिए आई थीं? अगर सहमति से और अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए वे नाचती-गाती हैं तो फिर छापा मारकर उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया? प्रतिदिन समाचार पत्रों में पुलिस की इस कार-गुजारी का वर्णन रहता है कि अवैध देह व्यापार का धंधा चल रहा था और पुलिस ने उन लोगों को पकड़कर सलाखों के पीछे कर दिया। कौन नहीं जानता कि यह काम भी उसी सहमति से होता है जिसकी वकालत भारत सरकार की मंत्रिपरिषद ने की। लोग जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं, नशे का सेवन और व्यापार करते हैं। वे सब कुकर्म भी तो स्वेच्छा अथवा मित्र मंडली की सांझी इच्छा का ही परिणाम है। किसी एक घर में जुआ होता है, खेलने वाले मकान मालिक की सहमति से आते हैं, पैसों का देन-लेन होता है, धंधा खूब चलता है। वहां अगर सहमति का कानून लागू हो जाए तो फिर कोई भी अपराध, अपराध नहीं रहेगा। सरकार यह बताने में असमर्थ है कि एक किशोर बालिका शारीरिक संबंध बना ले और उसे सहमति का आवरण ओढ़ा दिया जाए तो वह कैसे सही हो गया और जब एक युवती अपनी इच्छा से नाचने-गाने का धंधा अपनाकर किसी बार में ग्राहकों को शराब पिलाती और उनका मनोरंजन करती है तो वह पुलिस के हस्तक्षेप योग्य अपराध कैसे हो गया?
बहुत से प्रश्नों का उत्तर केन्द्र सरकार को देना होगा। जैसे 16 वर्ष की आयु का लड़का या लड़की किसी भी आयु के व्यक्ति से, विवाहिता अथवा अविवाहित होने पर शरीर संबंध बना सकता हैं, इस अवैध संबंध से पैदा होने वाले बच्चों को संभालने के लिए क्या सरकार तैयार हो रही है? अथवा इन किशोरी बालिकाओं को सरकारी अस्पतालों में गर्भपात करवाने की विशेष छूट दी जाएगी? यही प्रश्न 'लिव इन रिलेशनशिप' को मान्यता देने के बाद भी पैदा हुआ था। इससे तो अच्छा यही होगा कि लड़कियों की समानता, सुरक्षा, उन्नति की बातें करना सरकार छोड़ दे और वही पुरानी मध्यकालीन बाल विवाह की आज्ञा दे दे। ऐसा लगता है कि पश्चिम की चकाचौंध से हमारे देश के शासकों की आंखें भारत और भारतीयता को देखने में असमर्थ हो गई हैं।लक्ष्मीकांता चावला
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