|
महाशिवरात्रि से पूर्व वरेली के कुछ युवक रुद्राभिषेक के लिए गढ़ से गंगा जल लेकर वापस आ रहे थे। देर रात्रि फतेहपुर पश्चिमी के पास अगरास गांव में बने विश्राम केन्द्र पर कांवड़िए रुके तो उसके पास ही एक बाग में कुछ लोगों को एक मिनी ट्रक (टाटा 407) में तीन गायों और दो बैलों का लादते पाया। शिव भक्त समझ गए कि रात के अंधेरे में इस गोवंश को अवैध कटान के लिए ले जाया जा रहा है। उन्होंने पशु तस्करों को ललकारा, गोवंश छुड़ाने पहुंचे तो पशु तस्करों ने अवैध हथियारों से गोली चला दी। इस गोलीबारी में विनय कुमार यदुवंशी नामक युवक घायल हो गया और पशु तस्कर ट्रक सहित भागने में सफल हो गए। तेज गति के कारण कुछ ही दूर मिर्जापुर में जाकर उनका ट्रक पलट गया तो वे ट्रक छोड़कर फरार हो गए। यह सिर्फ एक बानगी भर है, उत्तर प्रदेश में पशु तस्करों के बढ़ते दु:साहस की।
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार को एक साल गत 18 मार्च को ही पूरा हुआ। एक वर्ष में विकास के बड़े-बड़े दावे किए गए। पर सच्चाई यह है कि एक साल की अखिलेश सरकार की विशेष उपलब्धि है- हिंसा, अपराध और पशु तस्करी के मामलों में वृद्धि। सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि पशु तस्करों को पुलिस व सपा नेताओं का ही संरक्षण प्राप्त हो रहा है। एक वर्ष के दौरान में मेरठ में गोवध के विरुद्ध बड़ा संघर्ष हो चुका है। पशु तस्कर की पैरवी करने के लिए और पुलिस अधीक्षक (गोण्डा) को रिश्वत के लिए तैयार करने के आरोपों में फंसे राज्यमंत्री के.सी. पांडेय का प्रकरण सर्वाधिक चर्चा में है। हाल ही में फैजाबाद पुलिस ने भी पशु तस्करों व गोवध करने वालों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी, जिसमें कई ट्रकों में 174 पशुओं की बरामदगी हुई थी। 64 पशु तस्करों को गिरफ्तार करने में भी सफलता मिली थी।
यह भी साफ हुआ है कि पशु तस्करी के धंधे के लिए कुख्यात व फरार इनामी बदमाश माजिद के संबंध कई नेताओं व पुलिस अधिकारियों से हैं। माजिद जिला शामली के थाना कांधला ईदगाह के निकट मेवातियान का निवासी है। इसके खिलाफ बस्ती, बलरामपुर व गोंडा में पशु क्रूरता व गोवध निवारण अधिनियम सहित अन्य धाराओं में अनेक मुकदमें दर्ज हैं। माजिद पर पुलिस ने पांच हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा है। इसका सम्पर्क इतना मजबूत है कि इसी का एजेंट बनकर कांधला निवासी आशुतोष कुमार पांडेय ने पुलिस अधीक्षक को एक लाख रूपये देने का प्रयास तक कर डाला। वह पुलिस अधीक्षक द्वारा बिछाये गये जाल में फंस गया और अब जेल में है। इसी दौरान पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई जांच में यह भी पता चला कि नेपाल सीमा से लेकर बिहार सीमा तक अनेक वर्दीधारियों को पशु तस्करी के लिए 'हफ्ता' दिया जाता है। इस मामले में नगर कोतवाली के एक उपनिरीक्षक व दो आरक्षियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित भी किया जा चुका है।
लखनऊ और आसपास के जिलों का शायद ही ऐसा कोई राजमार्ग हो जहां से प्रतिदिन प्रतिबंधित और बड़े पशुओं को क्रूरता के साथ वाहनों में ठूंसकर वाहन न गुजरते हों। इन पशुओं को ट्रकों में भरने से पहले इन्हें इंजेक्शन देकर बेहोश कर दिया जाता है। फिर इनके चारों पैर व गर्दन रस्सी में बांधकर गठरी की तरह बांध दिया जाता है। इसके बाद एक के ऊपर एक पशुओं को समान की तरह रखा जाता है। इस तरह 'पैक' करके इन्हें दूसरे जिलों और प्रांतों के लिए भेजा जाता है। पशु तस्करी के वीभत्स तरीके का यह खुलासा तभी हो पाता हैं जब कोई वाहन गलत मार्ग पर चला जाए या फिर वाहन खराब हो जाये या दुर्घटनाग्रस्त हो जाए।
विगत कई महीनों से प्रदेश के अनेक जनपदों व कस्बों से गोवंश तस्करों के खिलाफ अभियान के समाचार भी प्राप्त हो रहे हैं। जनपद चंदौली में थाना सैयद रजा पुलिस ने गश्त के दौरान दो ट्रकों के साथ चार पशु तस्करों-सरफराज, शिब्बू, मो.अशरफ व राजू यादव को पकड़ने में सफलता प्राप्त की है। चौबीस गायों को मुक्त कराया है। अमेठी से भी 40 किलो गोमांस के साथ एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। फतेहपुर के मलवां थाना क्षेत्र के अंतर्गत सूपा गांव के समीप पुलिस ने वध के लिये ले जाये जा रहे बीस बैलों समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया। आजमगढ़ में पुलिस अधीक्षक की सक्रियता के चलते पशु तस्करों के खिलाफ अभियान में भी काफी तेजी आई है। इसी अभियान के अतंर्गत एक ऐसी गोशाला का पता चला है कि जिसकी आड़ में पशु तस्करी का खेल चल रहा था। पूरा परिप्रेक्ष्य जानने से यह साफ हो रहा है कि यदुवंशी मुख्यमंत्री के राज में पशु तस्करों और गोवध करने वालों को किसी का डर नहीं है। गोवंश हत्यारों का पुलिस और नेता से गठजोड़ भी अब किसी से छिपा नहीं है।
चारे की कमी से पशु बन गए चारा
महाराष्ट्र में भी गाय तथा बैल के वध पर प्रतिबंध है। किसी भी बूचड़खाने को मांस के लिए किसी भी पशु का वध करने से पूर्व पशु चिकित्साधिकारी से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। पर महाराष्ट्र के वैध व अवैध बूचड़खानों में किसी भी प्रकार की रोक-टोक नहीं है। इन दिनों महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति के कारण किसानों के लिए पशुपालन घाटे का सौदा साबित हो रहा है। एक बैल सामान्यत: प्रतिदिन 100 से 130 रु. का चारा खाता है, यानी महीने का उस पर 4 हजार रु. खर्च होता है। सूखे के कारण न तो उनका उपयोग हो पा रहा है और न ही उनका भरण-पोषण हो रहा है। किसान उन्हें बेचने को विवश हैं, यह जानते हुए भी कि खरीददार उन्हें बूचड़खाने तक पहुंचा देगा। सूखे की स्थिति को देखते हुए अलकबीर (हैदराबाद) और देवनार (मुम्बई) स्थित बड़े व यांत्रिक बूचड़खानों के दलालों की पशु मंडियों में सक्रियता बढ़ गई है। उस्मानाबाद के पशु बाजार में पशुओं की बिक्री 43 प्रतिशत तक बढ़ी है तो जालना में 25 प्रतिशत तक। किसान अब खेती के लिए किराए के ट्रैक्टर की ओर देख रहे हैं, पशुपालन उनके वश की बात नहीं रही। मृत्युंजय दीक्षित
टिप्पणियाँ