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भारतीय मछुआरों के हत्यारे इटली के नौसैनिक अब लौटकर नहीं आएंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी मंझी हुई अंग्रेजी में जताना चाह रहे हैं कि गुस्सा उन्हें भी आता है,… और तो और वे इटली की तरफ भी आंखें तरेर सकते हैं। मगर केरल के जे. फ्रेडी जैसे मछुआरों को यह तेवर अब शायद ही भरमा पाए।
फ्रेडी ने समुद्र में सालभर पहले अपने दो दोस्त खो दिए थे। सेंट एंथनी नाम की बड़ी सी नाव चलाते वक्त जिलेस्टाइन और अजेश पिंक के पास कोई हथियार नहीं था। बोर्ड पर फ्रेडी सहित उनके नौ थके हुए साथी सोए थे कि अचानक गोलियां दोनों को बेधती चली गईं। फायरिंग भीमकाय जहाज एनरिका लेक्सी से हुई। गोली चलाने वाले थे इटली के खास नौसैनिक दस्ते 'सान माकर्ो रेजिमेंट' के मैसमिलेनो लात्तोर्रे और साल्वेत्रो गिरोन।
दक्षिण केरल के तट के करीब भारतीय मछुआरों की विदेशी सैनिकों द्वारा हत्या के इस मामले में चीजें पानी की तरह साफ थीं। तटरक्षक दल के अधिकारियों के मुताबिक यह विशुद्ध रूप से भारतीय आर्थिक क्षेत्र, जिसकी सीमा तट से 200 समुद्री मील बैठती है, के भीतर दोहरे हत्याकांड का मामला था।
घटना को एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि केरल स्थित भारत का सबसे मालदार चर्च मामले को 'शांत' करने में जुट गया। पोप के सामने चर्च के प्रति निष्ठावान रहने की शपथ लेने के बाद बतौर कार्डिनल जॉर्ज ऐलेनचेरी जोश में यह खुलासा भी कर गए कि एक 'धरम का बंदा', जोकि सरकार में मंत्री भी है, इटली की परेशानी दूर करने के इस 'पुण्यकार्य' में जी–जान से लगा है।
एक सीट की मामूली बढ़त के साथ केरल की डगमगाती सत्ता संभाले मुख्यमंत्री ओमन चांडी के लिए मछुआरों के हत्यारों का मुद्दा दोधारी तलवार की तरह था। एक तरफ कार्रवाई के लिए उबलता जन रोष, दूसरी तरफ इटली का नाजुक सा रिश्ता। ऐसे में चर्च के खेल का खुलना उन्हें और चिढ़ा गया। केरल पुलिस कार्रवाई में जुटी थी, मगर कुछ ही दिनों में 'संकेत' सीधे दिल्ली से आने लगे। राज्य सरकार ने सख्ती दिखाई तो उसे उसकी हद समझा दी गई। यह मत पूछिए किसने किसकी डोर खींची, पर अप्रैल 2012 में खुद केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को कह दिया कि केरल पुलिस को इटली का जहाज रोके रखने और मामले की जांच करने का कोई अधिकार है ही नहीं।
दलील किसी ने रखी हो, इसमें इटली के पक्ष की ढिठाई भरी वह गूंज–गमक साफ हो गई थी जो वह पहले दिन से कह रहा था, 'मामला अन्तरराष्ट्रीय है और फैसला भारतीय कानूनों के मुताबिक नहीं हो सकता।'
चीजों को क्रम में रखें तो इस एक साल में हम सबने सब कुछ देख लिया है। मछुआरों की हत्या, लाशों पर मुआवजे के ठीकरे, इटली की नौसेना के समर्थन में झंडा लगाकर नोएडा के बुद्ध सर्किट में दौड़ती फरारी, सान माकर्ो के सैनिकों को जेल में ना रहने की रियायत, फिर क्रिस्मस की छुट्टी और फिर मतदान के लिए जाने की जमानत। अब जब पंछी पिंजरे से फुर्र हो गए हैं तो घटनाएं जोड़िए, रोम के लिए दिल्ली से क्या-क्या हुआ, चित्रकथा की तरह
सामने आ जाएगा।
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