वे, जो भुला दिए गए
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किसी भव्य भवन को देखकर हम प्राय: उसकी भव्यता में इतने खो जाते हैं कि उसके निर्माण में अपना सर्वस्व अर्पित करने वाली नींव की उन ईंटों को भूल ही जाते हैं, जिनके आधार पर उस भव्य भवन का बोझ रहता है। यही बात किसी भी विकासोन्मुख समाज और राष्ट्र पर भी लागू होती है। आज जिस भारत में हम सब रह रहे हैं उसने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में विकास के अनेक सोपानों को पार किया है। इस राष्ट्र को यहां तक पहुंचाने में अनेक प्रसिद्ध और बहुत से ऐसे देशप्रेमियों का बलिदान भी शामिल हैं, जिनके बारे में या तो हम सब जानते ही नहीं हैं या फिर बहुत कम जानते हैं। न केवल ब्रिटिश शासन से स्वाधीनता दिलाने में बल्कि उसके बाद भी जब-जब राष्ट्र की अस्मिता पर संकट के बादल मंडराए, देश के अनेक सपूतों ने जीवन आहूत कर अपना दायित्व निभाया। दरअसल, हमारे इतिहास लेखकों ने एक दल विशेष के लोगों द्वारा किए गए अवदान को ही अधिक महत्व दिया। ऐसा करना न केवल उन देशप्रेमियों के साथ अन्याय है जिन्होंने देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, बल्कि उस पीढ़ी को भी अंधेरे में रखने जैसा है जिसने स्वाधीनता के बाद आंखें खोलीं। सुपरिचित पत्रकार-लेखक विजय कुमार ने एक पुस्तक के माध्यम से इस दृष्टि से एक सार्थक प्रयास किया है। कुछ समय पूर्व प्रकाशित होकर आयी पुस्तक 'और यह जीवन समर्पित' में उन्होंने स्वाधीनता संघर्ष में योगदान देनेे देशभक्तों का लघु जीवन परिचय और उनसे जुड़े प्रेरक प्रसंगों को संकलित किया है। इसमें जहां एक ओर लोकमान्य तिलक, तात्या टोपे, मंगल पांडे, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे विख्यात देशभक्तों को शामिल किया गया है, वहीं बहन सत्यवती, जयकृष्ण प्रभुदास भंसाली, योगेश चंद्र चटर्जी, राधा बाबा, सरदार सेवा सिंह और सोहनलाल पाठक जैसे अनेक ऐसे देशप्रेमियों की गौरव गाथा भी शामिल है, जिनके बारे में लोगों को बहुत कम पता है।
हैदराबाद सत्याग्रह के बलिदानी नन्हू सिंह और पुरुषोत्तम जी ज्ञानी ऐसी ही विभूतियों में सम्मिलित हैं। साथ ही आपातकाल के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाले जयप्रकाश नारायण और प्रभाकर शर्मा जैसे नेताओं को भी पुस्तक में स्थान दिया गया है। इतना ही नहीं, वनवासियों एवं जनजातियों के हितों के लिए संघर्ष करे वाले निर्मल मुंडा, गोभक्त समाजसेवक लाला हरदेव सहाय, तमिल भाषा के राष्ट्रवादी कवि सुब्रह्मण्यम भारती और झंडा गीत के रचनाकार श्यामलाल गुप्ता 'पार्षद' जैसे अलग-अलग तरह से देश-समाज के लिए अपना जीवन गलाने वाले महात्माओं का संक्षिप्त परिचय भी पुस्तक में मौजूद है। इस दृष्टि से यह पुस्तक किशोरों, बच्चों और युवाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
पुस्तक का नाम – और यह जीवन समर्पित
लेखक – विजय कुमार
प्रकाशक – संजीवनी प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
बी-1202 भूतल, शास्त्री नगर, दिल्ली-52
मूल्य – 200 (सामान्य संस्करण) पृष्ठ – 368
दूरभाष – (0) 9810028042
असाधारण व्यक्तित्व की साधारण सी व्याख्या
स्वामी विवेकानन्द ने केवल 39 वर्ष की अल्प लोकलीला में ही जो कुछ किया, वह किसी के लिए असंभव ही है। उनके बारे में अनेक विद्वानों द्वारा सैकड़ों की संख्या में पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, बावजूद इसके यह उनके अद्भुत व्यक्तित्व की विराटता ही है कि जनसामान्य में उन्हें और भी गहनता से जानने की उत्कंठा बनी रहती है। हाल में ही प्रकाशित होकर आई राजीव रंजन द्वारा लिखित पुस्तक 'युगदृष्टा विवेकानंद' को इसी क्रम में एक सार्थक प्रयास माना जा सकता है। इस पुस्तक को कुल 20 अध्यायों में विभाजित किया गया है। पहले अध्याय में उनके जीवन की महत्वपूर्ण तिथियों का ब्यौरा घटनाक्रम के अनुसार दिया गया है। इसके बाद अध्याय 2 से 19 तक उनके जन्म से लेकर महासमाधि तक की यात्रा का कालक्रम के अनुसार विवरण है। अंतिम अध्याय में स्वामी जी के जीवन से जुड़े प्रेरक और अनमोल प्रसंग भी संकलित किए गए है। स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि उनमें अनेक आयाम समाहित थे। वे न केवल एक महान संत थे बल्कि मानवता धर्म के पोषक, ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक और भारत के सच्चे सपूत भी थे। इन सबसे ऊपर थी उनकी विचार-दृष्टि जो न केवल उस दौर में बल्कि आज और आने वाले वर्षों में भी लोगों का मार्गदर्शन करती रहेगी। स्वामी जी के जन्म के बाद से उनकी जीवन यात्रा में कौन-कौन से महत्वपूर्ण मोड़ आए और उनका स्वामी जी के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, इसका कालक्रमानुसार वर्णन बहुत सरल और प्रवाहपूर्ण भाषा में किया गया है। एक सामान्य मनुष्य किस तरह असाधारण उपलब्धियों को प्राप्त कर विश्व को अपने ज्ञान से आलोकित करता है, इस बात को स्वामी विवेकानंद की जीवनी से समझा जा सकता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस से उनका संगमन हो या फिर संपूर्ण देश में भ्रमण करते हुए मानव सेवा को परम धर्म मानने का संदेश हो, सभी घटनाओं में उनके भीतर के दिव्यत्व को सरल ढंग से पुस्तक में व्यक्त किया गया है।
पुस्तक के अंतिम खंड में स्वामी जी की दिव्य दृष्टि का अनुमान लगाया जा सकता है। इसमें उनके जीवन के बहुत छोटे-छोटे ऐसे प्रसंगों को संकलित किया गया है, जो न केवल उनकी दिव्यता की प्रमाणित करते हैं बल्कि उनसे हम अपने जीवन मार्ग को भी प्रशस्त कर सकते हैं। इसी खण्ड में स्वामी जी की अमरवाणी को भी संकलित किया गया है। कर्म, चरित्र, त्याग, ज्ञान, धर्म जैसे कई विषयों की उन्होंने तार्किक और नैतिक रूप से उचित व्याख्या की है, जिसे समझना आज हमारे समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
पुस्तक का नाम – युगदृष्टा विवेकानन्द
लेखक – राजीव रंजन
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन,
4/19, आसफ अली रोड, नई दिल्ली- 02
पृष्ठ – 200 मूल्य – 125 रुपए
दूरभाष – (011)23289555
विभूश्री
गांधी, अफ्रीका और यात्रा संस्मरण
अनेक देशों के यात्रा वृतांत देखे-पढ़े, पर मोहन कुमार सरकार की दक्षिण अफ्रीका यात्रा का वर्णन जैसे वहीं घुमा लाया। हो भी क्यों न, आखिर बहुपठित और बहुप्रशंसित 12 रचनाओं के लेखक मोहन सरकार की भाषा-शैली और विषय की तारतम्यता है ही ऐसी कि मन रम जाए। 'श्वेत श्याम रतनार' में लेखक ने अपनी दक्षिण अफ्रीका यात्रा का इन्द्रधनुषी संस्मरण तो प्रस्तुत किया ही है, गांधी जी और नेल्सन मंडेला का भी स्मरण कर उस देश की ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता को उभारने का भी प्रयास किया है। पूरी यात्रा का रोचक वर्णन करने के पश्चात मुम्बई हवाई पर, 'इमिग्रेशन क्लियरेंस के काउन्टरों के 'क्यू', सभी जलेबी से,' लिखकर उन्होंने जहां लचर व्यवस्था पर चोट की वहीं यह भी लिखा- 'आखिर यहां की नागरिक सुविधाएं कब सुधरेंगी, जहां तीन रुपए की चाय तीस रुपए में (हवाई अड्डे पर) बेचने की इजाजत है, वहां क्या नागरिक सुविधाएं जो प्राथमिक मानवाधिकार के अन्तर्गत आती हैं, नहीं सुधारी जा सकतीं?' यह पंक्तियां उस दर्द को प्रकट करती हैं जो विदेश की यात्रा से लौटने वाले हर भारतीय के मन में उठता है, अपने देश की अराजक व्यवस्था को देखकर। पर इस अध्याय का शीर्षक 'सारे जहां से अच्छा' देकर लेखक ने वह भाव भी व्यक्त कर दिया जो इस मिट्टी को छूकर उभरता है। कुछ अच्छे चित्रों से सुसज्जित यह यात्रा वृत्तांत घुमक्कड़ प्रवृत्ति के लोगों को रुचिकर लगेगा। समीक्षक
पुस्तक का नाम – श्वेत श्याम रतनार
लेखक – मोहन कुमार सरकार
प्राप्ति स्थान – 202, सोनफी मुनेश्वरी
अपार्टमेंट्स, आशियाना रोड,
पटना- 14
पृष्ठ – 185 मूल्य – 158 रुपए
दूरभाष – (0) 9835467637
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