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डर रहे हैं लोग क्यों सच बात कहने के लिए
क्या लिया करते इजाजत गुल महकने के लिए?
थी न सच की नांव को दरकार दरिया की कभी
पास में हो गर सनद की धार बहने के लिए।
खौफ छाया इस कदर हर पेड़ हर मुंडेर पर
पूछती सैय्याद से चिड़िया चहकने के लिए?
जुल्म के हर हाथ में हथियार हैं, पर खोखले–
क्यों नहीं तैयार सीने वार सहने के लिए?
बांट दें सबको उजाले या सुलगते ही रहें?
बीड़ियां तो हैं, मशालें भी दहकने के लिए।
हो रहे मदहोश पीकर मुफ्त की मय हुक्मरां
राजसत्ता ही बहुत होती बहकने के लिए
क्यों नहीं आवाज उठती क्यों न आता मीडिया
हो चुका भुगतान क्या चुपचाप रहने के लिए?
जया गोस्वामी
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