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आखिर इटली ने भारत को ठेंगा दिखाते हुए अपने उन दो दोषी नाविकों को भारत की हिरासत में लौटाने से इनकार कर ही दिया जो 15 फरवरी, 2012 को कोल्लम के पास समुद्र में दो भारतीय मछुआरों की जान लेने के कारण जेल में बंद थे। ये रोम की साफ वायदा खिलाफी है, क्योंकि उसने नई दिल्ली से वायदा किया था कि वह उन दोनों को इटली के चुनावों में वोट डलवाने के बाद मुकदमे के लिए वापस भेज देगा। पर उसने उन्हें भेजा नहीं। 11 मार्च की रात को एक चिट्ठी भेजकर इटली ने टो टूक कह दिया कि दोनों नाविकौ- मैसमिलेनो लात्तोर्रे और साल्वेत्रो गिरोन भारत वापस नहीं लौटेंगे।
इटली की अकड़भरी हरकत पर भारत में जबरदस्त आक्रोश उपजना स्वाभाविक ही था। केरल में मारे गए एक मछुआरे जिलेस्टाइन की पत्नी डोरा इतनी खिन्न हुईं कि इटली पर गुस्सा निकालती हुई बोलीं, 'ये बड़े ऊंचे दर्जे की साजिश है और भारत सरकार चिंता करे कि उन दोनों नाविकों की वापसी हो ताकि वे हमारे देश में चल रहे मुकदमे का सामना करें।' भारत की सबसे बड़ी अदालत ने क्रिसमस मनाने के लिए भी उन दोनों को इटली जाने दिया था, तब वे लौट आए थे। इटली के विदेश मंत्री ने तब उन्हें लौटाने की लिखित गारंटी दी थी। लेकिन अभी फरवरी 24-25 को मतदान के बहाने वे दोनों ऐसे इटली बुलाए गए कि फिर लौटाने का नाम ही नहीं। इटली इस बात पर अड़ा है कि वह अपराध अंतरराष्ट्रीय जलराशि में हुआ था, इसलिए उन दोनों नाविकों पर इटली की अदालत में मुकदमा चलाना चाहता है, जगकि भारत का कहना है कि अपराध भारतीय सीमा में हुआ था।
भारत में संसद के दोनों सदनों में शोर मचना ही था, सो मचा। विपक्ष ने इटली के खिलाफ सख्त कूटनीतिक कदम उठाने की मांगी की। नई दिल्ली ने इटली के राजदूत को तलब करके दोनों नाविकों को सौंपे जाने की मांग की। इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने भी कड़ा रुख अपनाते हुए इटली के राजदूत के भारत छोड़ने पर रोक लगा दी है। न्यायालय का यह रुख इतना सख्त है कि केन्द्र सरकार सकते में हैं और इससे भारत-इटली के रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं।
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