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उत्तर प्रदेश, जिसने देश को 6 प्रधानमंत्री और आचार्य नरेन्द्र देव, डा.राम मनोहर लोहिया, पं. दीन दयाल उपाध्याय जैसी विभूतियां दीं, आज अराजकता की ज्वालामुखी पर खड़ा है। यह सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि दलितों की 'देवी' और समाजवाद के 'मसीहा' होने का दावा करने वाली मायावती और मुलायम सिंह यादव की पार्टियों के असामाजिक और लुटेरे तत्वों को पिछले डेढ़ दशक में भरपूर संरक्षण प्राप्त हो रहा है। देश का कोई भी ऐसा राज्य नहीं होगा जिसमें एक वर्ष के भीतर साम्प्रदायिक संघर्ष की इतनी घटनाएं घटित हुई हों जितनी कि उत्तर प्रदेश में घटीं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा के विधायक सतीश महाना के एक सवाल के जवाब में स्वयं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जानकारी दी है कि मार्च, 2012 से दिसंबर, 2012 तक 27 स्थानों पर ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं। बकौल मुख्यमंत्री इन घटनाओं का कारण है- साम्प्रदायिक असहिष्णुता, यौन शोषण और गोवध। प्रदेश में असामाजिक तत्वों, तस्करों और साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने वालों को खुली छूट मिली है। पुलिस-प्रशासन पंगु होकर रह गया है। इक्का-दुक्का अधिकारी ने साहस दिखाया तो उसे या तो निलंबित कर दिया गया या फिर महत्वहीन पदों पर धकेल दिया गया।
2007 में मायावती को प्रदेश की जनता ने 1991 के बाद इसलिए पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर प्रदान किया था क्योंकि उस समय मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपाइयों का गुण्डाराज कायम हो गया था। फिर मायावती को 2012 में सत्ता से इसलिए बेदखल कर दिया कि 'सुविधा शुल्क' के जरिए सम्पत्ति बटोरने का धंधा उनकी सरकारी नीति बन गई थी, अब अखिलेश के शासन में भी यह धंधा परवान चढ़ रहा है। ऐसे दो अधिकारियों को उन्होंने नोएडा में नियुक्त किया जो प्लाट आवंटन में दोषी पाए गए थे। उन्हें हटवाने के लिए उच्च न्यायालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा था। उत्तर प्रदेश लघु औद्योगिक विकास निगम के एक मुख्य अभियंता, जो अपने कृत्यों के कारण तत्कालीन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को ले डूबे और जेल भेजे गए, उन्हें निलंबित और संबद्ध रखने के बाद अब उन्हें उसी निगम का महाप्रबंधक बना दिया गया है।
स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ निजाम बदला है, गुण्डाराज का दस्तूर बरकरार है। कुंडा कांड को लेकर जिस प्रकार प्रदेश भर में उत्तेजनात्मक जुलूस निकल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि वर्तमान सरकार द्वारा असामाजिक तत्वों को संरक्षण देने की नीति के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश धू-धूकर जलने वाला है। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि राजा भैया का नाम चौथी प्राथमिकी में आया, जो जिया उल हक की पत्नी परवीन आजाद ने बाद में दायर की है। मुख्यमंत्री संभवत: जान-बूझकर इस तथ्य पर चुप हैं कि घटना के समय राजा भैया उनके साथ थे।
खुद को यदुवंशी (यादव) कहने वाले मुख्यमंत्री के राज में गोवंश की तस्करी चरम पर पहुंच गई है। मेरठ में तो ऐसे व्यवसाय से जुड़े लोगों के बीच खूनी संघर्ष तक हो चुका है। इस पशु तस्करी को रोकने का जिस अधिकारी ने साहस दिखाया उसे 'जनहित' में हटा दिया गया। उत्तर प्रदेश में पिछले एक वर्ष के भीतर कई हजार आईएएस, पीसीएस, आईपीएस और पीपीएस अधिकारियों को इधर से उधर किया गया है। मायावती के शासनकाल में एक अधिकारी का किसी एक जिले में कार्यकाल तीन महीने के औसत पर पहुंच गया था, अब वह एक महीने का हो गया है- मुस्लिम और यादव अधिकारियों को छोड़कर।
इसी महीने मुलायम सिंह यादव ने दावा किया है उन्होंने 400 मुस्लिम युवकों को जेल से छुड़ाया है। उनके मुख्यमंत्री पुत्र ने सभी जिलों को निर्देश भेजा है कि जेलों में बंद मुसलमानों पर कायम मुकदमें वापस लिए जाएं, जबकि उनमें से एक तो गोरखपुर न्यायालय परिसर में बम विस्फोट कराने का आरोपी है। इस मुस्लिमपरस्ती और जातीयता तथा कुनबावाद के सहारे राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव तीन बार इसका परिणाम भुगत चुके हैं, फिर भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं। परिणामस्वरूप देश के सबसे बड़े प्रदेश का शासन अराजक, आतंकी, तस्करी और मजहबी ब्लैकमेल करने वालों के लिए खुलेआम खेलने मैदान बन गया है। उत्तर प्रदेश में कब क्या हो जाए, यह अनुमान लगाना भी कठिन है, क्योंकि इस समय पूरे प्रदेश में एक भी जनपद ऐसा नहीं है जहां मुलायम सिंह यादव की छाप वाला समाजवाद पूरे उफान पर न हो। राजनाथ सिंह 'सूर्य'
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