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दिल्ली । या कहिए, पत्थर का पत्थर सा संवेदनशून्य शहर। वैसे, इसके नामकरण से जुड़ी एक तोमर वंशीय मान्यता यह है कि प्रसिद्ध 'लौह स्तंभ' की नींव ठीक से भरी नहीं गई, कील ढीली रह गई। सो, प्राकृत का 'ढिल्ली' बाद में दिल्ली हो गया। संभवत: दोनों ही बातों में कुछ सच है। इसलिए संवेदनशून्य दिल्ली कभी बेचैनी से कुनमुनाने लगती है। मथुरा से यमुना रक्षक दल ने दिल्ली की घेराबंदी शुरू की तो ऐसा ही कुछ हुआ। यमुना में ज्यादा पानी छोड़ने की मांग लिए, आस्था की हिलोर के साथ जन ज्वार उमड़ पड़ा। फिर दिखी सरकारी घबराहट। हौले–हौले ही सही, हलचल होने लगी। आंदोलनकारी अड़े–बढ़े तो सड़ती–मरती यमुना में ओखला बैराज से अचानक पानी छोड़ा जाने लगा। यमुना ठीक रहे इसके लिए 'ठीक बहे' यह तय करना जरूरी है। वजीराबाद बैराज के बाद यमुना का बहाव कम से कम दस क्यूबिक मीटर प्रति सैकंड होना चाहिए जबकि रह जाता है सिर्फ 2-3 क्यूबिक मीटर प्रति सैकंड।
…सरकार, ये पानी तो आपको छोड़ना ही होगा। यह भी बताना होगा कि इस नदी में जहर घोलने और सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये पीने वालों को अब तक क्यों खुला छोड़ा गया?
राजधानी होने की वजह से लोग यमुना का हिसाब दिल्ली से मांग रहे हों ऐसा नहीं है। यह जवाबदेही इसलिए भी बनती है क्योंकि क्षेत्र के हिसाब से देश का सबसे बड़ा शहर यमुना की जान लेने में भी सबसे आगे है। राजधानी की 70 प्रतिशत प्यास यमुना बुझाती है। बदले में यमुना को इसके कुल प्रदूषण का 70 प्रतिशत जहर दिल्ली से मिलता है। यह है पढ़े–लिखे लोगों और चौतरफा विकास का दम भरने वाले नीति–निर्माताओं का अपनी इकलौती नदी से व्यवहार। शहरी समाज तो आस्था की इस अविरल धारा से कटा ही, कंपनी जगत को रियायतें लुटाने वाली व्यवस्था ने यमुना के गुनहगारों की तरफ से आंखें पहले मूंद लीं। निश्चित स्तर से तेरह गुना ज्यादा औद्योगिक कचरा और रासायनिक जहर आज इस नदी में गिरता है। पानी साफ करने के संयंत्र जरूरत के हिसाब से लगे ही नहीं। जो लगे भी हैं उनका हाल यह कि क्षमता का आधा इस्तेमाल भी हो नहीं पाता। शहर की अस्सी प्रतिशत गंदगी से अटे बड़े–बड़े बजबजाते नाले सीधे यमुना में जा गिरते हैं।
हालांकि, कंकरीट और कारखानों पर टिके विकास की दौड़ में सदियों की सीख हमने खुद ही बिसरा दी। पानी को सहेजने-संभालने, आचमन करने की परंपरा से दूर होते गए। मगर याद रहे, यमुना कोई मरियल-पतली धार नहीं है। सूर्य की पुत्री, यम की इस बहन की बांह मरोड़ना, राह रोकना और इसके आंगन तक चढ़ आना, इस सबका परिणाम सोचा है? यमुना के अपराधी सीधे यम से टकराने चले हैं! इसके कोप से बचना है तो सरकार और समाज दोनों को अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी करनी होगी। वैसे, यमुना को कालिया नाग के विष से मुक्त कराने का पाठ तो खुद कान्हा ने पढ़ाया था…शायद हम यह भी भूल गए।
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