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मुहल्ले वालों ने चौकीदार रखा था, ताकि चोरी न हो। चोर आया, उसे देख चौकीदार चिल्लाया- 'चोर-चोर', अब पुलिस ही चौकीदार को डपट रही है कि बता कहां है चोर, कहां हुई चोरी, कैसा दिखता था चोर, तू कहीं हमें बदनाम करने के लिए ही तो चोर-चोर का झूठा शोर तो नहीं मचा रहा है। कुछ यही हाल है संप्रग सरकार और कैग के बीच। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) का काम ही है सरकारी लेन-देन की जांच करना, उसमें हुई अनियमितता के मामलों को उजागर करना, सरकार को सचेत करना कि जनता के खून-पसीने से उपजे 'कर' (टैक्स) को बर्बाद मत करो, सरकारी सम्पत्ति और सम्पदा को औने-पौने दाम पर मत बेचो। पर सोनिया-मनमोहन की 'घोटाला सरकार' संविधान द्वारा नियुक्त 'चौकीदार' से ही परेशान है, क्योंकि उसकी हर चोरी को वह सामने ला देता है। 2 जी घोटाले और कोयला खदान घोटाले के उजागर होने के बाद से कांग्रेस छोड़िए, संवैधानिक रूप से मंत्री बने लोग भी एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था
पर इस कदर हमलावर हुए हैं कि बस चले तो ध्वस्त कर दें, ताकि सरकार बेधड़क होकर चोरी कर सके, घोटाले कर सके।
पर कैग इन आलोचनाओं और लगातार हमलों की अनदेखी करअपना काम कर रहा है, सरकारी अभिलेखों और साक्ष्यों को खंगालता जा रहा है। इस बार संप्रग सरकार द्वारा सन् 2008 के लोकसभा चुनावों से पूर्व 'गेम चेंजर' बताकर घोषित की गई किसान ऋण माफी योजना में हुई अनियमितता को कैग ने उजागर कर दिया। कैग ने यह रपट दिसम्बर, 2012 में ही सरकार को सौंप दी थी, पर सरकार ने रिजर्व बैंक और नबार्ड को दिशा-निर्देश जारी कर चुप्पी साध ली। 5 मार्च को संसद में जब यह रपट प्रस्तुत की गई तो सरकार ने उसे संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) को भेजने का पुराना ढरर्ा अपनाया और प्रधानमंत्री ने देशवासियों के सामने रटा-रटाया जुमला दोहरा दिया- दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। पर उन्हीं की सरकार के कृषि मंत्री शरद पवार सदन को बता रहे थे 'कैग ने करीब 3.7 करोड़ खातों में से 90,576 को जांच के लिए चुना, यानी कुल 0.25 प्रतिशत खातों का ही 'आडिट' हुआ। इसके आधार पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता।' यानी एक बार फिर 'कैग' की विश्वसनीयता को ही कटघरे में खड़ा करने का प्रयास। जबकि मात्र आधा प्रतिशत खातों की जांच से ही पता चला कि 100 में से 22 मामलों में नियमों को ताक पर रखकर इस योजना में बंटरबांट की गई। इसीलिए 52,500 करोड़ रुपए बंट जाने के बाद भी आंध्र प्रदेश और विदर्भ के किसान न केवल आत्महत्या कर रहे हैं बल्कि किडनी तक बेचकर कर्जा चुका रहे हैं। जबकि किसान ऋण माफी योजना के तहत आंध्र प्रदेश के कर्ज तले दबे किसानों के लिए 11,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए। यह राशि 77 लाख किसानों में बंटी। पर कैग ने पाया कि बड़े किसानों को सीमांत किसान बताकर बैंक अधिकारियों, दलालों और दबंग किसानों ने ही योजना का असली लाभ उठाया। अकेले आंध्र प्रदेश ग्रामीण बैंक ने 17 कर्जदारों की 'कैटेगरी' बदल दी। कैग ने 25 राज्यों के 92 जिलों में 715 बैंक शाखाओं द्वारा इस योजना के अन्तर्गत किए गए कर्ज माफ में गड़बड़ी पायी है।
दरअसल लोकसभा चुनाव नजदीक देख जल्दबाजी में लागू की गई इस योजना में पारदर्शिता और जवाबदेही थी ही नहीं। बैंक अधिकारियों ने इस योजना के अन्तर्गत लाभार्थी किसानों की जो सूची भेजी, उसे ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया। उसका सत्यापन नहीं कराया गया और पैसे आवंटित कर दिए गए। पर इस घोटाले की जानकारी होने के बावजूद इस बजट में वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम ने रक्षा बजट में 10 हजार करोड़ रु. की कटौती कर किसान ऋण माफी योजना में 10,000 करोड़ रु. की बढ़ोत्तरी कर दी। चर्चा है 'राहुल जी' ने उसके लिए आग्रह किया था। आखिर अधिक वोट सैनिकों के नहीं, किसानों के होते हैं, और लोकसभा चुनाव कभी भी हो सकते हैं। इसलिए किसान ऋण माफी योजना और 'सब्सिडी सीधे खाते में' का नया 'गेम चेंजर प्लान' जारी है और उसकी आड़ में कांग्रेसियों का लूट -खसोट अभियान भी जारी है। आप भूलते जाइये पिछले घोटाले, नए का इंतजार कीजिए। प्रतिनिधि
होना क्या था, हुआ यह
0 संप्रग सरकार ने 2008 में घोषित की थी किसान ऋण माफी योजना।
0 शुरुआती 52,500 करोड़ रुपए की इस योजना से 3,012 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचाने का था लक्ष्य।
0 कैग ने उनमें से सिर्फ 90,576 खातों की जांच–पड़ताल की।
0 20,242 खातों में गड़बड़ी पायी गई।
0 यानी 22.34 प्रतिशत मामलों में अनियमितता हुई।
0 जिन किसानों को इस योजना का लाभ मिलना चाहिए था, उन्हें नहीं मिला।
0 जो किसान इस कर्ज माफी योजना के दायरे में नहीं आते थे, उन्हें लाभ दिया गया।
0 इसके लिए ऋण (बैंक लोन) की प्रकृति बदली गयी, निजी ऋण तक को कृषि ऋण बताया गया।
0 बैंक अधिकारियों और दलालों ने मिलकर लूटा 'मुफ्त का माल'।
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