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आर.एल. फ्रांसिस

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Mar 2, 2013, 12:00 am IST
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आसान नहीं होगी अगले पोप की राह

दिंनाक: 02 Mar 2013 14:22:45

 

रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप बने बेनेडिक्ट सोलहवें ने गत 11 फरवरी को पद त्याग की घोषणा कर दी थी। ईस्वी सन् 1415 के 600 वर्ष बाद त्यागपत्र देने पोप (विस्तृत चर्चा– पाञ्चजन्य, 20 फरवरी, 2013-मंथन) ने गत 27 फरवरी को वेटिकन के सेंट पीटर्स चौक पर अपना अंतिम उपदेश दिया। यह आश्चर्यजनक है कि त्यागपत्र देने के 12 घण्टे के भीतर ही बेनेडिक्ट सोलहवें द्वारा अपने कार्यकाल में की गई टिप्पणियों को पोप की आधिकारिक बेबसाइट से हटा दिया गया। पोप ने कहा– 'मेरे और होने वाले पोप के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।' माना जा रहा है कि घाना के कार्डिनल पीटर टर्कसन कैथोलिक चर्च के अगले पोप होंगे। यदि ऐसा हुआ तो वे रोमन कैथोलिक चर्च के पहले गैर यूरोपीय और पहले अश्वेत पोप होंगे।

 

सच तो यह है कि समस्याओं के परेशान करोड़ों कैथोलिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए वेटिकन के पास कुछ नहीं है।

 

बेनेटिक्ट सोलहवें चर्च इतिहास में 600 वर्ष त्यागपत्र देने वाले पोप

पादिरयों द्वारा यौन उत्पीड़न, चर्च के अनुयायियों में कमी, पादरपियों की घटती संख्या जैसी चुनौतियों का सामना नहीं कर पाए पोप

मार्च में होगा नए पोप का चुना

पहले गैर यूरोपीय, अश्वेत

 पोप के चुने जाने की संभावना

 

 

प बेनेडिक्ट सोहलवें द्वारा पद छोड़ने की घोषणा ऐसे समय की गई है जब कैथोेलिक चर्च अंदरूनी झंझावतों-संकटों के बीच फंसा हुआ है। पिछले साल ही पोप ने चर्च में बढ़ रही शिथिलता, नैतिक क्षरण और अनुशासनहीनता पर चिंता जताई थी। कैथोलिक चर्च के अनुयायियों की लगातार घटती संख्या को देखते हुए वेटिकन ने 2013 को 'विश्वास का साल' घोषित किया था।

चुनौती नहीं झेल पाए

पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने जब आठ साल पहले 19 अप्रैल, 2005 को कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च पद की कमान संभाली थी तो उस समय उनसे काफी उम्मीदें थीं। तब चर्च के सामने सबसे विवादास्पद मामला पादरियों द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़ा था, जिसे लेकर मुकदमें तक हुए और कई देशों में पीड़ितों को चर्च द्वारा भारी मुआवजा भी देना पड़ा। सबसे दु:खद यह है कि पोप के आलोचकों ने उन पर ऐसे मामलों की लीपापोती करने में सहभागी होने के आरोप भी लगाए। लेकिन वे आलोचकों की परवाह किए बिना अपनी विचारधारात्मक पवित्रता के प्रति अपने संकल्प को लेकर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के साथ ही कृत्रिम गर्भधारण का भी विरोध किया। गर्भपात को लेकर भी वेटिकन का कड़ा रुख सामने आया। इंग्लैण्ड के कैथोलिक अखबार 'द यूनिवर्स' के संपादक केविन रैफर्टी ने अपने एक  लेख में लिखा कि उनकी विचारधारा में जीवन के आधुनिक रीति- रिवाजों के लिए कोई जगह नहीं थी और वे किसी भी छूट के लिए तैयार नहीं हुए। इस कारण कई देशों से वेटिकन के सबंध खराब हो गए।

कैथोलिक चर्च में पादरियों द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में कोई साफ रुख न अपनाए जाने से नाराज आयरलैण्ड, स्पेन, और पोलैंड जैसे देशों ने वेटिकन की आलोचना शुरू कर दी। पोप ने आयरलैंड की शिकायतों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, जिसे आयरिश संसद ने देश के अदंरूनी मामलों दखल करार दिया। इससे नाराज होकर वेटिकन ने आयरलैंड से अपना राजदूत वापस बुला लिया। उल्लेखनीय है कि वेटिकन को एक स्वायत्त देश का दर्जा मिला हुआ है। इसी कारण वेटिकन का  भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों में राजदूत होता है। वेटिकन के विरोध के बावजूद स्पेन की सरकार ने गर्भपात और समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी। पादरियों के आजीवन कुंवारे रहने, महिलाओं को पादरी न बनाए जाने जैसे मामलों को लेकर भी कैथोलिक जगत में बहस छिड़ी हुई है।

पादरियों की कमी

पश्चिमी देशों में उम्रदारज होते पादरियों की समस्या से निपटने के लिए विवाहित या महिला पादरियों के विकल्प पर विचार करने की मांग जोर-जोर से उठ रही है। चर्च के कई पादरी और बिशप आने वाले संकट से छुटकारा पाने के लिए चर्च के नियमों में ढील दिए जाने की मांग कर रहे हैं। बेल्जियम के प्रसिद्ध विद्वान कोनराड एल्स्ट का यूरोप में चर्च की स्थिति पर कहना है कि 'कोई भी, जो देखने की चिंता करता है, देख सकता है कि ईसाइयत गंभीर पतन की ओर अग्रसर है। विशेषकर यूरोप में ऐसी अवस्था है जहां अनेक देशों के चर्च में उपस्थिति दस या पांच प्रतिशत से भी कम रह गई है। ईसाइयत के अपने अस्तित्व के लिए और भी अधिक अशुभ बात है पौरोहित्य व्यवसाय में कमी। बहुत से गिरजाघर, जो पहले दो-तीन पादरी रखते थे, अब वहां एक भी पादरी नहीं है। यहां तक कि अब रविवासरीय पादरी सेवाएं भी एक आमंत्रित पादरी द्वारा करवाई जाती हैं। पादरियों के द्वारा अवकाश ग्रहण, मृत्यु, पादरी का व्यवसाय छोड़ देने और उसकी आपूर्ति न हो पाने के कारण पादरियों की कमी होती जा रही है। हांलाकि चर्च इस कमी को पूरा करने के लिए भारत जैसे देशों में बहुत सक्रिय है।'

चर्च का साम्राज्य

चर्च के वैभवशाली आवरण से कैथोलिक ईसाई व्यथित हैं। पादरियों की ऐशो-आराम के जीवन को देखकर उन्हें ईशू याद आते हैं। खुद पोप की पोशाक ऐसी भव्य होती है कि कोई राजा भी ऐसी पोशाक की कल्पना नहीं कर सकता। इसी साल इटली की जनता ने चर्च की संपत्ति पर टैक्स लगाने की मांग की है। इटली में 20 फीसदी सम्पत्ति सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से चर्च के नियंत्रण में है, जिस पर चर्च कोई टैक्स नहीं देता है। इटली के प्रमुख विपक्षी दल, वहां की जनता और अखबार चर्च पर टैक्स लगाने की मांग कर रहे हैं, ताकि साधारण जनता पर से टैक्स का बोझ कम किया जा सके।

नए पोप का संकट

ऐसे में जो भी नया पोप चुना जाएगा उसके लिए चुनौतियां कम नहीं होंगी। कैथोलिक ईसाइयों में चर्च के प्रति टूटते विश्वास को बांधे रखना ही एक बड़ी चुनौती है। कई कैथिलक बिशपों और परम्परावादी अनुयायियों के लिए पोप बेनेडिक्ट सोलहवें विश्वास खो चुकी दुनिया में अकेले प्रकाश स्तंभ थे, लेकिन सच तो यह है कि समस्याओं के परेशान करोड़ों कैथोलिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए वेटिकन के पास कुछ नहीं है।

भारत के कैथोलिकों में सत्तर प्रतिशत तक मतांतरित दलित ईसाई हैं, जो चर्च के अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं, लेकिन आज तक किसी भी पोप ने उनकी व्यथा का संज्ञान नहीं लिया। चर्च का एक वर्ग मानता है कि इतिहास, नौकरशाही, परम्परा और रीति-रिवाजों की राख के बोझ तले दबा हुआ चर्च समय से दो सदी पीछे चला गया है। ऐसे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि कोई ऐसा चेहरा इस सर्वोच्च पद पर आएगा जिसके पास विश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति हो, जो कैथोलिक चर्च को बदलने की क्षमता रखता हो। क्योंकि कैथोलिक चर्च को ऊपर से नीचे तक बदलना होगा, इसकी शुरूआत यूरोप में हो चुकी है। पर भारत के कैथोलिक अभी अड़े हुए हैं।

गीता जैसा दूसरा कोई ग्रंथ नहीं

–प्रो. हनीफ खान शास्त्री

कुरुक्षेत्र में पिछले दिनों 'श्री मद्भगवद् गीता की सार्वभौमिक व प्रासंगिकता' विषय पर एक  गोष्ठी का आयोजन किया गया। विद्या भारती सभागार में आयोजित इस गोष्ठी में  वैज्ञानिक प्रोफेसर एसपी तिवारी, भगवद्गीता विषय पर पीएचडी कर चुके प्रोफेसर मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री, प्रो. सुनीता गुप्ता, प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री डॉ. हिम्म्त सिंह सिन्हा, प्रोफेसर महेश शर्मा, पंजाबी अकादमी (हरियाणा) के पूर्व निदेशक सीआर मोद्गिल ने दैनिक जीवन में गीता की उपयोगिता पर विचार प्रस्तुत किए। सार यह निकला कि विश्वभर में गीता का प्रचार-प्रसार हो रहा है। अनेक देशों में इसे जीवन शैली का अंग बनाया है। गीता के माध्यम से ही समाज में फैली कुरीतियों को दूर कर शांति और सद्भावना का वातावरण निर्माण किया जा सकता है। डा. हिम्मत सिंह सिन्हा ने कहा कि संसार में केवल श्रीमद्भगवद् गीता ही ऐसा ग्रंथ है, जिसका लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (दिल्ली) में सहायक व्याख्याता डा. सरिता गुप्ता व डा. महेश शर्मा ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने विश्व के कल्याण के लिए अर्जुन को ज्ञान दिया था। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री ने कहा कि श्रीमद्भगवद् गीता ऐसी संपदा है, जिसकी दुनिया में कोई भी मिसाल नहीं है। इस अवसर पर नेत्रहीन बच्चों, विद्यार्थियों एवं कारागार में बन्द लोगों के लिए बनाई गई गीता की प्रतियों का भी अनावरण किया गया। नेत्रहीन बच्चों व विद्यालयों के लिए ब्रेल लिपि में तैयार की गई इस पुस्तक में  अनेक श्लोंकों को शामिल किया गया है।  b÷É. गणेश दत्त वत्स

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