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अंक-सन्दर्भ थ्10 फरवरी,2013

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Mar 2, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Mar 2013 16:26:25

अंक–सन्दर्भ थ्10 फरवरी,2013

प्रज्ञा पर गुप्त 'आज्ञा'

आतंकवादी गतिविधियों के आरोपों में जेल में बन्द साध्वी प्रज्ञा सिंह ने मुम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से अपने स्वास्थ्य को लेकर करुण-पुकार की है। साध्वी एवं कुछ अन्य लोगों को सन्देह के आधार पर कई वर्षों से जेल में बन्द रखा जा रहा है। सरकार उन सबके खिलाफ अब तक कोई सबूत नहीं जुटा पाई है, फिर भी उन्हें छोड़ नहीं रही है।

–गणेश कुमार

कंकड़बाग पटना (बिहार)

द आज सम्पूर्ण हिन्दू समाज की दयनीय स्थिति है। देशद्रोही व धर्मद्रोही मीडिया ने बाजारवाद का भोंपू बनकर समाज को स्वार्थी बना दिया है। समाज को नैतिक व चारित्रिक पतन की ओर ले जा रहा है। आज हिन्दू समाज को भ्रष्ट मीडिया के चंगुल से निकालकर कर्तव्य-पथ पर चलाने हेतु बहुत बड़े प्रयास की आवश्यकता है।

–गीतांजलि जैन

मंगलपुरा, झालावाड़-326519 (राज.)

द ऐसा लगता है कि साध्वी प्रज्ञा भारत नहीं, पाकिस्तान की किसी जेल में बन्द हैं। साध्वी प्रकरण से सिद्ध होता है कि संप्रग सरकार झूठे आरोपों के आधार पर हिन्दुओं को बदनाम        करके असली आतंकवादियों को बढ़ावा दे रही है।

–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा

कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)

द हिन्दू आतंकवादी हो ही नहीं सकता, क्योंकि उसे बचपन से ही जीव-जन्तु और पेड़-पौधों की रक्षा का संकल्प दिलाया जाता है। साध्वी प्रज्ञा सिंह या स्वामी असीमानंद जैसे राष्ट्रभक्तों को कायराना तरीके से जेल में बन्द रखकर हिन्दू समाज को आतंकवाद की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।

–उदय कमल मिश्र

गांधी विद्यालय के समीप

सीधी-486661 (म.प्र.)

द सरकार की हिन्दू विरोधी नीतियों से लगता है कि हिन्दू अपने पूर्वजों के विशाल भारत में नहीं, बल्कि किसी मुस्लिम देश में रह रहे हैं। कदम-कदम पर हिन्दुओं को दबाने का प्रयास और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर मुस्लिमों, ईसाइयों का तुष्टीकरण किया जा रहा है। हद तो तब हो जाती है जब यह सरकार पड़ोसी पाकिस्तान की बर्बरता को भी चुपचाप सह लेती है।

–गोकुल चन्द गोयल

85, इन्द्रा नगर, सवाई माधोपुर (राजस्थान)

जिहादी आतंकवाद

क्यों नहीं दिखता?

कमलेश सिंह के आलेख 'कांग्रेसी खेल' में कांग्रेस की कुनीतियों का बड़ा अच्छा विश्लेषण हुआ है। सही कहा गया है कि कांग्रेस अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए लोगों का ध्यान बंटाने में माहिर है। इसी को मद्देनजर रखते हुए वह कभी 'हिन्दू आतंकवाद' का झूठा राग अलापती है, तो कभी 'युवराज का शिगूफा' छोड़ती है।

–हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया

इन्दौर-452001 (म.प्र.)

द भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस कितनी भी नौटंकी कर ले वह अपनी पुरानी साख कभी नहीं लौटा सकती है। यह सरकार अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालने के लिए गृहमंत्री शिंदे के जरिए अनर्गल प्रलाप करती है। इस सरकार को जिहादी आतंकवाद नहीं दिखता है।

–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर

द्वारकापुरम, दिलसुखनगर

हैदराबाद-500060(आं.प्र.)

द कांग्रेस अपनी फितरत बदल नहीं सकती है। उसे मालूम है कि समाज को बांटने में ही उसकी भलाई है। इसलिए कभी वह आतंकवाद, तो कभी मजहबी आरक्षण के नाम पर समाज में जहर घोल रही है। कांग्रेस अपनी परम्परा को पूरी ईमानदारी से निभा रही है।

–राममोहन चंद्रवंशी

अभिलाषा निवास, विट्ठल नगर, टिमरनी जिला–हरदा (म.प्र.)

द जिन कांग्रेसियों में सीमा पार चल रहे आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त करने की हिम्मत नहीं वही संघ और भाजपा पर झूठे आरोप लगाते हैं। इनके कुकर्मों और बयानों से भारत कितना कमजोर और घायल हो रहा है, इसका अंदाजा इन्हें नहीं है।

–जुगल किशोर उपाध्याय

17/283, फुलट्टी बाजार

आगरा-282003 (उ.प्र.)

द यदि इस सरकार के पास तथाकथित 'भगवा आतंकवाद' के खिलाफ कोई सबूत है तो सामने करे, अन्यथा गलत बयानी कर आतंकवादियों को शह न दे।

–प्रदीप काश

श्रृंगार महल, हरि मन्दिर गली

पटना सिटी-800008 (बिहार)

द संघ के स्वयंसेवक परमार्थ के कार्य कर रहे हैं। संघ पर कोई दोष मढ़ना समाज को भ्रमित करना है।

–रामचन्द्र ठोके

2बी, सड़क सं.- 25, सेक्टर-8 भिलाई जिला–दुर्ग (छत्तीसगढ़)

द जड़-चेतन में एक ही सत्ता की अनुभूति करने वाला हिन्दू अमंगलकारी सोच कैसे रख सकता है? कांग्रेसी संघ की शाखा में आएं और देखें कि वहां क्या-क्या होता है। केवल किसी को बदनाम करने के लिए झूठ बोलना कतई ठीक नहीं है।

–रमेश कुमार मिश्र

ग्रा.-कान्दीपुर, पत्रा.-कटघरमूसा

जिला–अम्बेडकर नगर-224149 (उ.प्र.)

सजग प्रहरी पाञ्चजन्य

पाञ्चजन्य हिन्दू समाज का सजग प्रहरी है। हिन्दू समाज पर होने वाले सरकारी-गैर सरकारी प्रहारों की जानकारी पाञ्चजन्य से ही मिलती है। पिछले दिनों पाञ्चजन्य में 'इस्लामिक बैंक' पर सरकारी पहल का विस्तृत विवरण मिला था। सोनिया-मनमोहन सरकार अपनी नीतियों से इस देश को उसी काल में पहुंचा रही है जब अलगाववादी मांगें जोर पकड़ रही थीं। परिणाम हुआ मजहब के आधार पर भारत बंट गया।

–अजीत शर्मा

मायलाबेरा, गुलाबबाड़ी,

अजमेर-305001 (राज.)

खुद चाहो अपना भला

सब समझते हुए भी अगर हम स्वयं ही अपना भला न चाहे, तो भले की आशा व्यर्थ है। बिजली की कमी है तो बिना आवश्यकता जल रही बिजली बन्द क्यों नहीं करते? उत्तर मिलता है, मैंने नहीं जलाई। 24 घंटे खिड़कियां बन्द और लाइटें जलती रहने में कौन-सी शान है? यही हाल पानी, पेट्रोल इत्यादि का है। जहां पैदल जा सकते हैं, वहां पैदल जाएं। जहां तक साइकिल जा सकती है साइकिल से जाएं। स्वस्थ रहें, सुखी रहें, धन बचाएं।

–शान्ति स्वरूप सूरी

362/1, नेहरू मार्ग,

 झांसी-284001 (उ.प्र.)

कांग्रेस का डीएनए

कांग्रेस के उपाध्यक्ष पद पर बैठते ही राहुल गांधी ने कांग्रेस की डीएनए जांच करके परिणाम घोषित कर दिया- यह भारतीय डीएनए है। हमारा प्रश्न यह है कि जिस पार्टी के जन्मदाता अंग्रेज रहे हों, उसका डीएनए भारतीय कैसे? ईस्ट इंडिया कम्पनी की प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी, जो बाद में (1870-1879) ब्रिटिश भारत सरकार के एक सचिव भी रहे, कांग्रेस के जनक माने जाते हैं। उनका नाम था- एलेन ऑक्टैवियन ह्यूम। पर हकीकत में उस समय भारत के अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन की सोच ही मूलरूप से कांग्रेस स्थापना के पीछे मौजूद थी। डफरिन ने ह्यूम को निर्देशित किया। इतना ही नहीं, उन्हें कांग्रेस-स्थापना से पहले इंग्लैण्ड भेजकर भारत के अनेक पूर्व अंग्रेज गवर्नर जनरलों से इस विषय पर बात करने को कहा। ह्यूम ने ब्रिटेन जाकर लॉर्ड रिपन, लॉर्ड डलहौजी आदि से वार्ता कर निर्देश तथा समझ प्राप्त की। उसके बाद 28 दिसम्बर 1885 को मुम्बई में कांग्रेस का जन्म हुआ।

जिस व्यक्ति के हाथ 1857 के संग्राम में भारतीय क्रांतिकारियों के खून से रंगे हों, उन्हें अपने संस्थापक रूप में पाने वाली कांग्रेस अपना डीएनए भारतीय कहे, यह आश्चर्य ही नहीं, आपत्ति का विषय है। कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में कई अंग्रेज इसके अध्यक्ष रहे। डेविड यूल (1988), विलियम वैडरबर्न (1889 और 1910), अल्फ्रैउ वैब (1894) और हेनरी कॉटन (1904) ऐसे ही नाम हैं। लगभग 20 साल तक कांग्रेस अधिवेशनों में ब्रिटिश राष्ट्रगान 'गॉड सेव द किंग' गाया जाता था। अधिवेशनों को निर्देशित करने के लिए हर वर्ष अनेक ब्रिटिश सांसद भारत आते थे। चार्ल्स ब्रॉडलो, पैथविक लॉरेंस, डब्ल्यू एस केन आदि दर्जनों नाम हैं। ये लोग कांग्रेस में पारित होने वाले प्रस्तावों की भाषा बनवाते थे। कांग्रेस को ब्रिटिश नियंत्रण में रखने के लिए यह जरूरी समझा गया था। इसी काम के लिए लंदन में एक 'ब्रिटिश कांग्रेस कमेटी' बनायी गयी थी। इस कमेटी का सारा खर्चा कांग्रेस उठाती थी। इसके लिए प्रतिवर्ष 10,000 रुपए से 60,000 रुपए तक भारत से लंदन जाते थे (उन दिनों जब सोना 20 रु. तोला था)।

1905 के बाद लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चन्द्र पाल के कारण कांग्रेस अपनी पूर्व निर्धारित राह से हटने की प्रवृत्ति दिखाने लगी। पर अंग्रेजों ने वैसा होने नहीं दिया। भारत छोड़कर जाने से पहले अंग्रेजों ने अपने संरक्षण में 'अंतिम अंग्रेज' जवाहरलाल नेहरू को सत्ता सौंपी, जो लॉर्ड मैकाले की कल्पना के अनुरूप मात्र रक्त व रंग से भारतीय थे पर 'सोच, रुचि, नैतिकता तथा कर्म' में अंग्रेज। अंग्रेजी डीएनए वाली, अंग्रेजी संस्थापक वाली, अंग्रेजी नाम वाली कांग्रेस सदा अंग्रेजी या पश्चिमी हितों को तरजीह देकर चली है। भारत विभाजन की ब्रिटिश योजना की कांग्रेस कमेटी द्वारा स्वीकृति (15 जून 1947) से लेकर अमरीका से यूरेनियम समझौते और एफडीआई संबंधी निर्णय तक अनेक मिसालें हैं। पश्चिमी दबाव में रहने के कारण ही कांग्रेस की पाकिस्तान नीति घुटनाटेक है।

–अजय मित्तल

97, खंदक, मेरठ (उ.प्र.)

 

चेक किया डीएनए, लेकर दल का खून।

उफ्‌, अचरज, पूरा मिला, अंग्रेजी मजमून।।

अंग्रेजी मजमून, फरक नहीं एक रत्ती।

पूरी आदत वही, विभाजन, चाल, दुलत्ती।।

वह चाहे 'राजगुरु', बस सत्ता–सुख का पैक।

पूरे गुण अंग्रेज के, डीएनए किया चेक।।

–आचार्य शिवप्रसाद सिंह राजभर 'राजगुरु'

आनंद भवन, सिहोरा

जबलपुर-483225 (म.प्र.)

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