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विजय कुमार
किसी भी लेखक के लिए उसकी पुस्तक का छपना ऐसा ही है, जैसे घर में बेटे का जन्म। जो लेखक किसी भी कारण से प्रसिद्ध हो जाते हैं, उनकी बात तो जाने दें, पर बाकी के बारे में यह शत-प्रतिशत सच है। विश्वास न हो, तो किसी भी लेखक से पूछ लें।
मेरी भी ऐसी कई पुस्तकों की पांडुलिपियां वर्षों से धूल खा रही थीं। एक भले आदमी के माध्यम से मेरा एक प्रकाशक महोदय से सम्पर्क हो गया और वे मेरी कुछ पुस्तकें छापने को तैयार हो गये।
अब मैं तेजी से इसमें लग गया। पुस्तकों को प्रकाशक को भेजने के बाद उनका 'प्रूफ' पढ़ना और मुखपृष्ठ की सज्जा भी महत्वपूर्ण काम था। मैंने एक महीने तक घर में ही रहकर यह करने का निश्चय किया। इसलिए मैंने अपने सब मित्रों को बता दिया कि मैं महाकुंभ में एक महीने के कल्पवास हेतु प्रयाग जा रहा हूं। वहां के धार्मिक तथा आध्यात्मिक वातावरण में मैं अपना मोबाइल भी बंद रखूंगा।
लेकिन वहां हुई दुर्घटना से शर्मा जी की चिन्ता बढ़ गयी और वे मेरी कुशलमंगल जानने के लिए घर पर ही आ धमके।
अब मैं आपको क्या बताऊं? जब वे आये, तो मैं कागजों में उलझा हुआ था। मेरे हाथ में पुस्तक के मुखपृष्ठ के नमूने भी थे। मैं नहीं चाहता था कि प्रकाशन से पहले कोई उन्हें देखे। इसलिए मैंने उन्हें दरी के नीचे छिपा दिया। यह देखते ही वे भड़क गये।
– वर्मा, महाकुंभ के नाम पर झूठ बोलकर तुम यहां घुसे हो…?
– शर्मा जी, पहले आप मेरी पूरी बात सुन लें…।
– मुझे कुछ नहीं सुनना। तुम तो यह बताओ कि तुम्हारे पास आखिर ऐसी क्या चीज है, जो तुम सबसे छिपाना चाहते हो ?
– शर्मा जी, आप विश्वास करें। मेरे पास छिपाने जैसी कोई चीज नहीं है। मैं मनमोहन सिंह, एंटनी या उस विशिष्ट 'परिवार' की तरह नहीं हूं, जो हर दिन कुछ न छिपाने की दुहाई दे रहे हैं।
– वर्मा, लगता है तुम्हारा शक से कोई पूर्व जन्म का नाता है। इसलिए तुम हर किसी पर शक करने लगते हो। वे बेचारे…।
– शर्मा जी, आप भले ही उन्हें बेचारा कहें, पर इस समय पूरा देश उन पर शक कर रहा है। फिर बात जब रक्षा सौदे और इटली की हो, तो शक होना ही है। आपको बोफर्स कांड याद है क्या?
– कुछ-कुछ याद तो आ रहा है।
– वहां भी इटली, क्वात्रोकी और राजीव गांधी का त्रिकोण था। राजीव गांधी पहले कहते थे कि मैंने दलाली नहीं ली। फिर बोले कि मेरे परिवार में से किसी ने नहीं ली, पर इससे आगे की बात बोलने से पहले ही वे दिवंगत हो गये।
– तो बोफर्स और हेलिकॉप्टर सौदे में क्या कुछ समानता है ?
– बहुत समानता है। दोनों में रिश्वत दी गयी, यह तो पक्का है, पर भारत में वह किसने ली, यह साफ नहीं हुआ।
– लेकिन सी.बी.आई. ने इसकी जांच तो की थी ?
– शर्मा जी, भारत में जितने भी बड़े घोटाले हुए हैं, किसी की जांच अपनी पूर्णता तक नहीं पहुंची। हां, कुछ लाख या कुछ करोड़ वाले मामलों में लोग जेल जरूर गये हैं।
– सुना है हेलिकॉप्टर खरीद के इस मामले में 320 करोड़ रु0 की रिश्वत दी गयी है। ये राशि तो बहुत अधिक है वर्मा ?
– शर्मा जी, बोफर्स तोपों के लिए 65 करोड़ रु0 की रिश्वत ली गयी थी। तब से महंगाई दस गुना बढ़ गयी है। ऐसे में बिचौलियों का 320 करोड़ रु0 का हक तो बनता ही है। फिर जहां पौने दो लाख करोड़ रु0 के घोटाले हुए हों, वहां यह पैसा तो चिल्लर जैसा है।
मेरा काम अटक रहा था, इसलिए मैंने शर्मा जी को प्रस्थान करने का संकेत दिया। मेरी बात समझकर वे उठ खड़े हुए।
– लेकिन वर्मा, कल्पवास के नाम पर झूठ बोलकर, इस तरह घर में छिपे रहना ठीक नहीं है। तुम्हें निश्चित रूप से पाप लगेगा।
– शर्मा जी, मेरी छोड़िये, पर हमारे उन महान नेताओं का क्या होगा, जिनके पापों के कारण हर नागरिक की आंखें शर्म से झुक रही हैं। जो लोग विदेशों मे काम-धंधा कर रहे हैं, वे सिर उठाकर नहीं चल पा रहे हैं। यदि इन नेताओं में कुछ शर्म बाकी है, तो छिपने-छिपाने का यह गंदा खेल छोड़कर वे हमारी नजरों से दूर हो जाएं। अन्यथा जनता अपने वोट से उन्हें स्थायी कल्पवास में भेज देगी।
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