बचिए, बदलता मौसम ला रहा है 'स्वाइन फ्लू' डा. हर्ष वर्धन एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
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फ्लू को 2009 एच 1 एन 1 टाइप ए 'इन्फ्लुएन्जा' के नाम से भी जाना जाता है। यह मानवीय रोग है। यह व्यक्तियों द्वारा व्यक्तियों में फैलने वाला रोग है। इस बीमारी का नाम 'स्वाइन फ्लू' इसलिए पड़ा क्योंकि यह बीमारी जीवित सुअरों जिनमें फ्लू के 'वायरस' विद्यमान थे, के माध्यम से मनुष्यों में फैली। ये 'फ्लू वायरस' सूअर, पक्षी एवं मनुष्यों के 'वायरस' से मिश्रित होते हैं। इस 'वायरस' के नाम के संदर्भ में वैज्ञानिकों में अब भी चर्चा जारी है परन्तु अधिकांश लोग इस 'वायरस' को एच1एन1 'स्वाइन फ्लू वायरस' के रूप में जानते हैं। आमतौर पर सूअरों के मध्य फैलने वाला फ्लू, मनुष्य के फ्लू से भिन्न होता है। अधिकांश मामलों में यह पाया गया है कि सूअरों से सीधे फैलने वाले 'स्वाइन फ्लू' ने इससे संक्रमित व्यक्तियों को, कुछ मामलों को छोड़कर, बहुत कम दुष्प्रभावित किया है लेकिन 'स्वाइन फ्लू' का जो प्रकोप कुछ समय पूर्व से प्रारम्भ हुआ है, वह उससे पहले के 'स्वाइन फ्लू' से बिल्कुल भिन्न है तथा इसका व्यक्ति से व्यक्ति में फैलाव उन लोगों में ज्यादा हो रहा है, जिनसे कभी सूअरों से कोई संपर्क नहीं रहा है।
'स्वाइन फ्लू' साधारण फ्लू की तरह ही होता है। इसमें बुखार, खांसी, गले का खराब होना, नाक बहना, शरीर में दर्द, ठंड लगना, थकावट के होने जैसी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। अधिकांश लोगों में दस्त तथा उल्टी की भी शिकायतें हो सकती हैं लेकिन यह दूसरे कारणों से भी हो सकती हैं। बच्चों में स्नायविक लक्षण भी परिलक्षित हो सकते हैं लेकिन ऐसा विरले ही होता है। दौरा अथवा मानसिक स्थिति में परिवर्तन (भ्रम, अचानक संज्ञानात्मक अथवा व्यावहारिक परिवर्तन) परिलक्षित हो सकता है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह बच्चों में परिवर्तन क्यों देखने को मिलता है। इन लक्षणों के होने पर भी 'स्वाइन फ्लू' के होने की सही स्थिति का पता संबंधित जांच कराने के बाद ही चलता है। निम्नलिखित लोगों को 'स्वाइन फ्लू' होने पर भारी खतरा अथवा गंभीर परिणाम होने की संभावना बनी रहती है-सामान्य महिलाओं की तुलना में गर्भवती महिलाओं में छह गुना अधिक खतरा होता है।बच्चे खास तौर पर दो वर्ष से कम उम्र के।अस्थमा से पीड़ित व्यक्तियों को।जो लोग सी.ओ.पी.डी. अथवा फेफड़े से संबंधित चिरकालिक रोग से पीडित हों।जिन्हें हृदय रोग (कार्डियोवेस्क्युलर) हो (उच्च रक्तचाप को छोड़कर)।जिन्हें यकृत (लीवर) से संबंधित बीमारी हो।जिन लोगों को किडनी से संबंधित परेशानी हो।जिन्हें रक्त विकार हों जिसमें 'सिकल सेल डिजीज' भी शामिल है।जिन लोगों को स्नायविक परेशानी हो।'न्यूरो मस्क्युलर' विकार से पीड़ित लोग।'मेटाबौलिक' विकार, जिसमें मधुमेह भी सम्मिलित है, से ग्रसित लोग।वे व्यक्ति जिनकी प्रतिरोधक क्षमता क्षीण है, जिसमें एच.आई.वी. संक्रमण, दवाइयां जिनसे प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होती है-जैसे 'कीमोथेरेपी' तथा प्रत्यारोपण के दौरान 'एंटी-रिजेक्शन' दवाइयां शामिल हैं।'नर्सिंग होम' या 'क्रिटिकल केयर फैसिलिटी' में कार्यरत व्यक्ति।वृद्ध खासकर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के 'स्वाइन फ्लू' के संक्रमण का ज्यादा खतरा रहता है।बच्चों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त चिकित्सा की जरूरत होती है- सांस में तकलीफ अथवा सांस का तेजी से चलने पर।त्वचा का रंग नीला अथवा भूरा पड़ने पर।पर्याप्त तरल लेने में असमर्थता।बहुत अधिक अथवा लगातार उल्टी का होने पर।बच्चे में अधिक चिड़चिड़ापन परिलक्षित हो रहा हो तथा एक ही अवस्था में रहने में असमर्थ दिखाई दे रहा हो।बुखार हो तथा अचानक मानसिक अथवा व्यवहार में परिवर्तन दिखाई दे रहा हो।वयस्कों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त चिकित्सा की जरूरत होती है- सांस में तकलीफ अथवा जल्दी-जल्दी सांस का आना।सीने अथवा पेट में दर्द अथवा दबाव।अचानक चक्कर आना।भ्रमबहुत अधिक अथवा लगातार उल्टी का होना।फ्लू की तरह ही संकेत जिसमें सुधार हो रहा हो लेकिन तेज बुखार अथवा खांसी के साथ पुन: शुरू हो गया है।खांसने अथवा छींकने के उपरांत हाथ साबुन से धोयें।
बचाव
l “º´ÉÉ<xÉ फ्लू' से संक्रमित व्यक्ति से कम से कम 6 फीट की दूरी बनाये रखें।
l ½þÉlÉ से मुंह, नाक और आंख को छूने से परहेज करें। यदि ऐसा संभव न हो तो दोनों हाथों को साफ रखें।
l ªÉÊnù 'फ्लू' के लक्षण-बुखार, खांसी, गले में खराबी आदि दिखाई दे रहे हों तो लक्षण प्रारम्भ होने से एक सप्ताह तक विश्राम करें अथवा 24 घंटे तक लक्षण न दिखाई देने तक विश्राम करें।
l “º´ÉÉ<xÉ फ्लू' से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने की अवस्था में फेस मास्क का इस्तेमाल करें।
l “º´ÉÉ<xÉ फ्लू' से संक्रमित अथवा संक्रमण संभावित व्यक्तियों को दूसरे की सुरक्षा हेतु 'फेस मास्क' का इस्तेमाल करना चाहिए।
l nÚùvÉ पिला रहीं मातायें यदि 'स्वाइन फ्लू' से संक्रमित हों तो दूध को निकालकर दूसरे व्यक्ति के माध्यम से बच्चे को पिलायें।
इलाज
ा'स्वाइन फ्लू' का टीका उपलब्ध है। इससे इस बीमारी के संक्रमण से बचाव संभव है। अस्पताल में 'स्वाइन फ्लू' के मरीजों के इलाज के लिए अलग कमरे की व्यवस्था होती है ताकि इससे संक्रमण अन्यत्र न बढ़ सके। 'स्वाइन फ्लू' का इलाज साधारण फ्लू की तरह ही होता है। आवश्यकता पड़ने पर अथवा गंभीर स्थिति उत्पन्न होने पर 'एंटीवायरल' या 'एंटीबायोटिक्स' दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है, जिसका निर्धारण चिकित्सक करते हैं। जिन्हें भी 'स्वाइन फ्लू' के उक्त लक्षण दिखाई दंे तो उन्हें 'पैरासिटामॉल' का प्रयोग बुखार को कम करने के लिए करना चाहिए तथा पर्याप्त आराम करना चाहिए। 16 वर्ष से नीचे के बच्चों को एस्प्रिन अथवा बाजार में उपलब्ध फ्लू की दवाइयां, जिनमें एस्प्रिन का मिश्रण हो, उसे नहीं देना चाहिए। 'एंटीवायरल' दवाइयां ओसेल्टामिविर (टेमीफ्लू) और जनामिविर (रीलैन्जा) कुछ लोगों के 'स्वाइन फ्लू' में प्रयोग की जा सकती है। इसे देने हेतु चिकित्सक को निर्णय करना होता है। 'एंटीबायोटिक्स स्वाइन फ्लू' में तब इस्तेमाल होती हैं, जब 'स्वाइन फ्लू' के कारण शरीर में गंभीर परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं। 'बैक्टिरीयल इंफेक्शन' से इससे बचाव होता है।
'स्वाइन फ्लू' के संकेत अथवा लक्षण दिखाई देने पर लापरवाही अथवा विलंब नहीं करना चाहिए तुरन्त चिकित्सक से संपर्क करें ताकि समय पर जांच और आवश्यक चिकित्सा प्रारम्भ हो सके। ऐसी स्थिति में कोई भी असावधानी तथा स्व-चिकित्सा स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं।
(लेखक से उनकी वेबसाइट www. drharshvardhan.com तथा ईमेल drhrshvardhan@ gmail.com के माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है।)
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