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अमरीकी रक्षा अनुसंधान व शोध संस्थान से जुड़े एक समूह ने दावा किया है कि सन् 2015 तक चीन का रक्षा बजट 238.5 बिलियन डालर (लगभग 11 अरब 90 लाख हजार करोड़ रुपए) का होगा, जो अभी (2011-12) में 119.3 बिलियन डालर का है। (इतने बिलियन डालर को रुपयों में बदलने में इतने शून्य लगते हैं कि सर चकरा जाए) वैसे भी चीन का रक्षा बजट प्रतिवर्ष लगभग 25 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। चीन के मुकाबले दक्षिण एशियाई या कहें प्रशांत महासागर क्षेत्र में उसके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भारत का रक्षा बजट कहीं नहीं ठहरता। हमारा पिछला रक्षा बजट (2011-12) 2,38,205 करोड़ रुपए का था। इसमें से 81,453 करोड़ रूपए मूल पूंजी थी, अर्थात इससे तोप, विमान, पनडुब्बी, हैलीकाप्टर, गोला बारुद और अन्य सैन्य उपकरण खरीदे जाने थे। पर इसमें से एक भी रुपया खर्च नहीं हो पाया। इसलिए संकेत मिल रहे हैं कि इस बार के रक्षा बजट में 5 प्रतिशत की कटौती की जाएगी। अर्थात सेना को लगभग 10 हजार करोड़ रुपए कम आबंटित किए जाएंगे। वैसे भी भारत का रक्षा बजट प्रतिवर्ष चीन के 25 प्रतिशत के मुकाबले 8 से 9 प्रतिशत ही बढ़ता है। 2008 से पूर्व तो यह इसे 5 प्रतिशत तक ही बढ़ता था। 2012-13 अपवाद रहा जब रक्षा बजट में एकाएक 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई, उद्देश्य था सेना का अत्याधुनिकीकरण करना, नए विमान और हथियार खरीदना। पर रक्षा सौदों में दलाली का ऐसा घुन लगा है कि पैसा धरा का धरा रह गया और सेना जहां की तहां रह गई, जबकि सीमा पर चुनौती बढ़ती ही जा रही है।
अति विशिष्ट कहे जा रहे लोगों के लिए अति सुरक्षित माने जाने वाले अगस्ता-वेस्टलैंड के 12 हैलीकाप्टर की खरीद में रिश्वत के खुलासे ने एक बार फिर रक्षा सौदों को पटरी से उतार दिया है। 3600 करोड़ रुपए के इस सौदे में मिले 10 प्रतिशत कमीशन में से किसकी जेब में कितने गए, कितने इटली वालों को मिले और भारत में किसको-कितने मिले, पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल त्यागी पर बिना ठोस सबूत के कीचड़ उछालने का षड्यंत्र किसका है, जब सारे सौदों में भूमिका रक्षा मंत्रालय की होती है और उसे इस सौदे में रिश्वतखोरी का पहले से ही आभास था तो जांच क्यों नहीं हुई, अब इटली द्वारा सहयोग न देने के बावजूद सीबीआई के नेतृत्व में जांच दल मिलान से क्या ढूंढ लाएगा। इधर केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अपने स्तर पर जांच कर रहा है, उधर कांग्रेस जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) से जांच कराने की बात कह रही है (2जी मामले में पी.सी. चाको के नेतृत्व वाले जेपीसी का हश्र देखने के बावजूद)। पहली बात, इस प्रकार की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती, 3 दर्जन से अधिक रक्षा सौदों की जांच इसका प्रमाण है। उस पर से अलग-अलग जांच एजेंसी के अलग अलग निष्कर्ष दोषियों के लिए ढाल का काम करते हैं। पर बड़ी बात यह है कि इस दलाली और उसकी जांच के कारण सर्वाधिक प्रभावित हो रही है भारतीय सेना और उसके सैनिकों का मनोबल, साथ ही देश की सुरक्षा पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं।
रक्षा सौदों में दलाली के कारण हथियारों की आपूर्तिकर्त्ता 6 कंपनियों को पहले ही काली सूची (प्रतिबंधित कंपनी व समूह) में डाल दिया गया है। अब अगस्ता-वेस्टलैंड और फिनमैकेनिका पर प्रतिबंध की तलवार लटक गयी है। यदि वीवीआईपी हैलीकाप्टर करार रद्द हुआ तो बाकी बचे 9 हैलीकाप्टर भी नहीं मंगाए जाएंगे और भुगतान किए गए 1200 करोड़ रुपए भी वसूलने की प्रक्रिया शुरू होगी। दरअसल रक्षा खरीद प्रक्रिया के तहत 300 करोड़ रुपए के ऊपर के सौदों में दलाली पूरी तरह प्रतिबंधित है और आपूर्तिकर्त्ता समूह को रक्षा खरीद परिषद के इस करार पर हस्ताक्षर करने होते हैं- 'किसी भी विक्रेता फर्म ने यदि सौदे को प्रभावित करने के लिए किसी व्यक्ति या फर्म को शामिल किया तो सरकार न केवल सौदा रद्द कर देगी बल्कि पूरी रकम वापस लेने के लिए स्वतंत्र होगी।' पर अब तक किसी से रकम वापस तो नहीं मिली, हां-सौदे जरूर रद्द हो गए। परिणाम यह हुआ कि बोफर्स के बाद से थलसेना को कोई अच्छी तोप नहीं मिली तो वायुसेना को मिराज- 2000 के बाद कोई अच्छा युद्धक विमान नहीं मिला। नौसेना भी पानी के भीतर मार करने वाली तारपीडो के लिए बस गोते ही लगा रही है।
अब देश के रक्षा मंत्री कह रहे हैं कि बहुत सावधानी बरतने के बाद भी ऐसा हो रहा है तो विदेशी कंपनियों पर से निर्भरता घटाकर स्वदेशी पर बल देंगे। पर भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भी धन की कमी की वजह से अनेक महत्वपूर्ण प्रकल्पों का परीक्षण टाल रहा है। और तो और, जो चीन भारत के लिए हमेशा से खतरा बना हुआ है, अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जताता है, उस अरुणाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में ही सैन्य और बुनियादी सुविधाओं का भीषण अभाव बना हुआ है। पूर्वोत्तर क्षेत्र की 7 हवाईपट्टियों (परिघाट, मेचुका, वेलांग, टूटिंग, जीरो, एलांग और विजय नगर) को वायुसेना का युद्धक विमान उतरने लायक बनाने की 1750 करोड़ रुपए की परियोजना 5 वर्ष बाद भी 30 प्रतिशत तक ही पूरी हो पायी है। वायुसेना अध्यक्ष एन.ए.के.ब्राउन भी इस कछुआ चाल से विचलित हैं। पर सरकार कह रही है कि उसने रक्षा खरीद प्रक्रिया को पारदर्शी और बिचौलियों से मुक्त रखने के लिए कठोर नियम बना दिए हैं। बोफर्स के बाद सरकार फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही है। पर पूरी तरह से रुकी सेना के अत्याधुनिकीकरण की प्रक्रिया देखकर स्पष्ट समझा जा सकता है कि सरकार सिर्फ फूंक रही है, एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा रही है, इसीलिए सेना के कदम भी ठिठके हैं और वह उस ताकत से दूर है जो देश की सुरक्षा के लिए उसे चाहिए।
0 फ्रांस के युद्धक विमान राफेल का सौदा लंबित। 126 राफेल खरीदे जाने हैं।
0 तोपखाना भी मजबूत होना है, पर बोफर्स के 22 साल बाद तक कोई नई तोप नहीं
0 युद्धपोतों पर बराक मिसाइलों की कमी
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