डकैती-लूटपाट के आरोप में पादरी गिरफ्तार
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झारखण्ड संजय कुमार आजाद
रांची जिले में नक्सलियों की तरह अपराध करने वाले ईसाइयों के एक गिरोह का गत 31 जनवरी को पर्दाफाश हो गया। रांची पुलिस ने नक्सलियों की आड़ में डकैती और लूटपाट में लिप्त एक पादरी को गिरफ्तार किया है। रांची पुलिस को मिली इस कामयाबी से जहां पुलिस का हौसला बढ़ा है वहीं इस क्षेत्र के लोगों को भी बहुत राहत मिली है। ईसाई मतांतरण से त्रस्त झारखंड में ईसाई पादरी किस तरह संगठित गिरोह चला रहे हैं, पादरी की गिरफ्तारी उसका एक उदाहरण भर है। ए.जी.चर्च का पादरी विनय तिग्गा तथा ईसाई गतिविधियों को प्रोत्साहित करने वाली संस्था सिल्ली सरना समिति के कार्यपालक अध्यक्ष चम्पा उरांव की गिरफ्तारी से चर्च और अपराध जगत की मिलीभगत की पोल खुल गई है। रांची के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक साकेत कुमार सिंह ने पत्रकारों को बताया कि दुर्गम इलाकों में सक्रिय यह गिरोह नक्सलियों की तर्ज पर अपराध को अंजाम देता था। गत 14 जनवरी को इस गिरोह ने बुधागेतू और बेति के बीच बन रहे पुल के निर्माण में लगी 'जेसीबी मशीन' को आग के हवाले कर दिया था। कारण, उस काम में लगे ठेकेदार से उन्होंने 20 लाख की रंगदारी मांगी थी, जो उसने नहीं दी।
कशिडीह का पास्टर (पादरी) विनय तिग्गा चूंकि ईसाई प्रचारक है, इसलिए उसका यहां अच्छा प्रभाव था, जिसका उपयोग उसने इस क्षेत्र के युवक और युवतियों को बरगलाने, ईसाई बनाने और हिंसक घटनाओं का अंजाम देने में किया। साकेत कुमार सिंह ने बताया कि अपनी वारदात को नक्सली हमला होने का आभास दिलाने के लिए गिरोह में युवतियों को भी भर्ती किया गया था। पुलिस ने इस गिरोह के पास से बन्दूक, रिवाल्वर और भारी मात्रा में गोला-बारूद्ध बरामद किया है। विनय तिग्गा के साथ ही सोमा उरांव, फूलो कुमारी, चम्पा उरांव, धरमेश उरांव, लखना लोहरा य दिलीप वेदिया को भी पुलिस ने मौके पर ही गिरफ्तार किया। झारखण्ड में ईसाई गतिविधियों और अपराध जगत के सम्बंधों की यदि उच्चस्तरीय जांच हो तो अनेक ईसाई संगठनों और चर्च की पोल खुल सकती है। दिन में चर्च का काम और रात में अपराध को अंजाम देने वाला विनय तिग्गा तो एक छोटा-सा मोहरा भर है।
नागालैण्ड मनोज पाण्डेय
बंदूक के साये में चुनाव की सरगर्मी
व चुनाव आयोग द्वारा संघर्ष विराम पर
आतंकी गुटों ने दिखाई आंख
हथियार लेकर न घूमने की अपील को किया खारिज
नागालैण्ड विधानसभा के 23 फरवरी को होने वाले चुनावों से पूर्व सार्वजनिक रूप से हथियार लेकर घूमने पर पाबंदी लगाए जाने के बाद सरकार व आतंकी गुटों में खींचतान शुरू हो गयी है। इसके कारण चुनाव के दौरान हिंसा होने के संकेत आसार साफ नजर आ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार व चुनाव आयोग ने नागालैण्ड में 23 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों को निष्पक्ष व शांतिपूर्ण सम्पन्न कराने के लिए नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैण्ड के तीनों गुटों, (आई.एम., खाफ्लांग और खोले किताबी) के कैडरों को चुनाव सम्पन्न होने तक हथियार लेकर सार्वजनिक जगहों पर आने पर पाबंदी लगा दी। परिचय पत्र रखने वाले 'कैडर' भी हथियार लेकर नहीं निकल सकते, ऐसा निर्देश दिया। लेकिन तीनों ही धड़ों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और इसे संघर्ष विराम की शर्तों का यह खुला उल्लंघन बताया। संघर्ष विराम प्रक्रिया गुट के प्रवक्ता ने संवाददाताओं को बताया है कि भारत सरकार के साथ हुई संघर्ष विराम संधि की शर्तों का यह उल्लंघन है। इस तरह के एकतरफा निर्णयों से संघर्ष विराम पर असर पड़ सकता है। संघर्ष विराम निगरानी दल की जिम्मेदारी निष्पक्षता के साथ संघर्ष विराम की शर्तों का सभी संबंधित पक्षों द्वारा पालन सुनिश्चित कराना है, लेकिन निगरानी दल के अध्यक्ष मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एन.जार्ज भारत सरकार के पक्षकार की तरह बर्ताव कर रहे हैं, जिससे संघर्ष विराम प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों असम रायफल्स के जवानों ने उखरूल से हेब्रान कैम्प जा रही हथियारों की एक बड़ी खेप को पकड़ा। सूत्रों के अनुसार इन हथियारों का प्रयोग आतंकवादियों द्वारा विधानसभा चुनावों के दौरान किया जाना था।
उड़ीसा पंचानन अग्रवाल
कटक व भुवनेश्वर के साथ उड़ीसा के लगभग सभी जिलों में महिला उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में स्वयं मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने यह स्वीकार किया है। उन्होंने बताया कि सन् 2010 में राज्य में बलात्कार की 1025 घटनाएं हुई थीं जबकि 2011 में यह संख्या बढ़कर 1112 हो गई। 2012 में यह संख्या 20 फीसदी बढ़कर 1300 हो गई। भाजपा ने कहा कि इससे साफ है कि सरकार कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी ठीक से नहीं संभाल पा रही है, जबकि गृह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है, ऐसे में मुख्यमंत्री को तुरन्त त्यागपत्र दे देना चाहिए और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए। भाजपा को दो प्रदेश उपाध्यक्षों-अशोक साहू एवं संचिता महान्ती ने कहा कि देश भर में महिला उत्पीड़न की वारदातों में 9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है जबकि उड़ीसा में यह 20 प्रतिशत है। इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण यह है कि पुलिस का रवैया गैरजिम्मेदारना और अपराधियों के प्रति नरम है। पीपली जैसे सामूहिक बलात्कार कांड में सत्ताधारी दल के बड़े नेताओं की संलिप्तता की पूरी तरह अनदेखी की गई है। हाल ही में बलंगा थाना क्षेत्र में सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या को लेकर पीपली के विधायक ने 7 घण्टे तक पुरी-भुवनेश्वर राजमार्ग जाम कर दिया था। इसके बाद भी प्रशासन की चुप्पी समझ से परे है। पिछले 3 साल में उड़ीसा में बलात्कार की 4100 घटनाएं घटित हुईं, लेकिन एक भी पीड़ित महिला को सहायता नहीं मिली है। महिला उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने जो कुछ भी किया, उसे जनता के सामने लाया जाना चाहिए। भाजपा ने ऐसे मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए 'फास्ट ट्रैक कोर्ट' गठित करने की मांग भी की है।
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