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लक्ष्मी चंचला है। यूपीए राज में तो यह साफ दिखता भी है। किन 'हाथों' से पैसा किन खातों में गया, पता नहीं। इटली की फिनमैकेनिका कंपनी और उसकी हमजोली अगस्ता वेस्टलैंड के शीर्ष अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने भारत में घूस देकर उड़नखटोलों की सौदेबाजी की। घूस देने वालों की गिरफ्तारियां वहां हो चुकी हैं, मगर भारत में रिश्वत किसने खाई, यह सीबीआई जांच के बाद बताएगी। कितने दशकों में? पता नहीं।
यूपीए सरकार अपने अंतिम समय में शर्मनाक दौर से गुजर रही है। दो–दो मिस्टर क्लीन और दामन पर ऐसे–ऐसे दाग।
कान पक गए करोड़ों–अरबों रुपए के घपले–घोटालों की बात सुनते–सुनते। जनता थक चुकी है मगर माल बटोरते दलाल नहीं थके। कोसिए–कराहिए, मगर यह मत कहिए कि सरकार सोती रहती है। जो कारनामा अब खुला है वह सब एक साल से उसे पता है। बस दबाए बैठे हैं। वैसे, टेट्रा ट्रक मामले में घूसखोरी की पेशकश की बात जब जनरल वी.के.सिंह ने खुद जाकर रक्षामंत्री को बताई तब भी सरकार ने कौन सी तेजी दिखाई थी। इस बार भी हेलीकॉप्टर घूसखोरी के बारे में वहां अखबारों में सब छपा, यहां कांग्रेसी नेता के बेटे अभिषेक वर्मा और उसके विदेशी साथी एडमंड्स ऐलन के ठिकानों पर अगस्ता वेस्टलैंड के साथ दलाली के दस्तावेज मिले मगर बात सरकारी जांच एजेंसियों से बाहर जनता के कानों तक नहीं पहुंची। मामले को दबाने–घुमाने की ऐसी कोशिशें! राजकाज के ढंग और नीयत पर सवाल उठना लाजमी है।
सरकार श्वेतपत्र के जबानी जमाखर्च से इस कालिख को धोने की बात कर रही है। मगर इतने भर से भ्रष्टाचार का इलाज होगा? मजबूत लोकपाल से डरे और अपने ही दागी साथियों को सीबीआई की भभकी देकर बांह मरोड़ने के दांव पेच लगाते तिकड़मबाज ईमानदारी से और ईमानदारी के लिए कितना काम करेंगे, कहा नहीं जा सकता। यह भारत की सुरक्षा से जुड़ा कोई रक्षा सौदा नहीं था, सरकार नेताओं के मुफ्त सफर के लिए हवाई कैब खरीद रही थी। फिर सब कुछ इतना गुपचुप और सात पर्दों में क्यों? आप क्यों नहीं एक पारदर्शी व्यवस्था बनाते जहां खरीदी जा रही चीज, उसका काम और चुकाया जा रहा दाम सबके सामने रहे। लोकतंत्र में जनता के पैसे का हिसाब जनता को देने की खुली व्यवस्था बनाने में घबराहट और पेचबाजी नहीं होनी चाहिए।
कार्लो या क्वात्रोकी, नाम कुछ भी हो, महंगाई से मरती-पिसती जनता को क्या फर्क पड़ता है। मगर आम आदमी की नुमाइंदगी का दम भरने वाली इस सरकार से दो मासूम सवाल तो बनते हैं-पहला, दाग जब इटली की तरफ से लगते हैं तो सीबीआई के 'हाथ' ढीले क्यों पड़ जाते हैं? और दूसरा, 362 करोड़ रुपए में कितनी बीपीएल थाली भर सकती हैं?
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