हमदर्दी पग-पग पर छलती
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मन से मन की दूरी खलती।। हमदर्दी…।।
इन्दिरामोहन
बार–बारहीदोहरातेहैं
जानबूझकरअपनीगलती
कहींइलाकेसूखाझेले
कहींबाढ़फसलोंकोखलती।
हमदर्दीपग–पगपरछलती।।
यूंतोकमीनहींसाधनकी
दोनोंहाथोंप्रकृतिलुटाती
पर्वत, घाटी, गांव, शहरमें
खुशहालीकीशानबढ़ाती
सस्ताजीवनमहंगीआशा
गर्महवाएंअंधीचलती।हमदर्दी…।।
नए–नएसंदर्भखोजते
ठिठुरनमनकीबढ़तीजाती
चारोंओरशोरकर्जोंका
महंगाईभीआंखदिखाती
सड़कोंपरबसतीदुर्घटना
हमदर्दीपग–परपरछलती।
दो–दोचेहरेलिएआदमी
निपटअकेलापनझेले
खण्डितबिखरेविश्वासोंसे
उन्नतिकानाटकखेले
बाहरआदर्शोंकामेला
भीतरसांठ–गांठहीचलती।हमदर्दी…।।
शहरोंकेहिंसकजंगलमें
समरसताकेपुलटूटेहैं
थर–थरकांपरहीदीवारें
जनताकेधीरजछूटेहैं।
दौड़भागकीसरपटचालें
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