परमवैभवयुक्त भव्य भारत है लक्ष्य
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मंगलौर में रा.स्व.संघ का विभाग महासांघिक
–मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
मंगलौर (कर्नाटक) स्थित केन्जरू मैदान में गत 3 फरवरी को रा.स्व.संघ के तत्वावधान में विभाग महासांघिक सम्पन्न हुआ। हिन्दी पञ्चांग के अनुसार इस दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती थी। कार्यक्रम में मंगलौर विभाग के करीब एक लाख स्वयंसेवकों ने भाग लिया। स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती पर आयोजित विभाग महासांघिक में स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में हिस्सा लिया। यहां स्वयंसेवकों ने विभिन्न प्रकार के शारीरिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। विभाग के 1150 गांवों से स्वयंसेवक महासांघिक में शामिल हुए। महासांघिक की मुख्य बात यह रही कि यहां स्वयंसेवकों के मार्गदर्शन के लिये रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत स्वयं उपस्थित थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुये श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वामी विवेकानंद के लक्ष्य में काफी समानता है। जनता को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, स्वयंसेवक एवं उनके कार्यों को समझने की आवश्यकता है। यह सांघिक 'शक्ति प्रदर्शन' करने के लिये आयोजित नहीं हुआ है, बल्कि स्वयंसेवकों के 'आत्मचिंतन' और 'आत्ममंथन' के लिए हुआ है। सांघिक की परिकल्पना स्वामी विवेकानंद के दिशा-निर्देशों पर आधारित है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था 'व्यक्ति को स्वयं की आवश्यकताओं के बारे में आत्मचिंतन करते हुए यह सोचना चाहिए कि हम आगे कैसे बढ़ सकते हैं'। स्वामी जी के इन्हीं शब्दों और निर्देशों को आत्मसात करते हुए स्वयंसेवकों को कार्य करने की जरूरत है।
श्री भागवत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने नंगे पैर पूरे देश का भ्रमण किया और लोगों की कठिनाइयों को नजदीक से अनुभव किया। उन्होंने विश्व भ्रमण के दौरान अन्य देशों के बारे में समझा और देशों में समानता लाने के लिए भारत किस प्रकार से मददगार हो सकता है, यह महसूस किया। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय होने में 'हीन भावना' नहीं रखनी चाहिए, यही नहीं हमें भारतीय होने के साथ ही हिन्दू कहने में भी गौरव महसूस करना चाहिए। हमें स्वामी जी के विचार, 'उत्तिष्ठ भारत' पर खरा उतरते हुए समग्र भारत को जगाने की आवश्यकता है। शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने ओजपूर्ण भाषण से पाश्चात्य लोगों के मन और मस्तिष्क को मोह लिया था। स्वामी विवेकानंद की इस उपलब्धि से भारतीयों का सिर ऊंचा हो गया था।
सरसंघचालक ने कहा कि हमें देश के प्रत्येक व्यक्ति और वस्तुओं को अपना समझना होगा। यदि हम शक्तिशाली हैं तो हम विश्व का सामना कर सकते हैं। शक्तिहीनता से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। इस सच्चाई को स्वामी विवेकानंद ने भी कई बार कहा। स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसे संगठन की स्थापना का सपना देखा था, जो नि:स्वार्थ एवं सेवा भाव शिक्षण से युवकों को बिना भेदभाव के समाज सेवा के लिए तैयार कर सके। यद्यपि स्वामी विवेकानंद अपने इस सपने को पूरा करने के लिए जीवित नहीं रहे, लेकिन लगता है कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब कोई स्वयंसेवक शाखा में जाता है तो वह मातृभूमि की सेवा के लिए ही जाता है। शाखा में हम सामूहिक रूप से मातृभूमि की सेवा का प्रयास करते हैं।
श्री भागवत ने उपस्थित जनसमूह का आह्वान करते हुए कहा कि हमें अपने कार्यों में सम्पूर्ण समाज सहभागी बनाना है। हमें कठिन परिस्थितियों में घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते रहना है। सम्पूर्ण हिन्दू समाज में एकता कायम रखने के लिए काम करते रहना है। हमें एक ऐसे साधन का निर्णय करना होगा, जिससे हिन्दुओं में एकता हो सके। पिछले 87 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस दिशा में काम कर रहा है। 87 साल पूर्व एक छोटी सी तलैया के रूप में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज एक विशाल नदी का रूप ले चुका है। अब हम सबकी जिम्मेदारी बढ़ गई है, हमें लोगों को साथ लेकर परमवैभव युक्त भव्य भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना है। हमें इसी आशा के साथ आगे बढ़ना है कि हम इस प्रक्रिया में सम्पूर्ण समाज में एकता स्थापित कर सकेंगे। यदि हम अपने इस मकसद में सफल हुए तो अगले 20-25 वर्षों में सम्पूर्ण विश्व में भारत की भव्यता को स्थापित कर सकेंगे। सम्पूर्ण विश्व को दिशा देने वाले 'विश्व गुरु' का दर्जा प्राप्त कर सकेंगे।
महासांघिक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेशराव उपाख्य भैयाजी जोशी, प्रान्त संघचालक श्री वेंकटराम और विभाग संघचालक डा. पी. वामन शेणाय सहित बड़ी संख्या में शहर के गण्यमान्यजन उपस्थित थे। 4 फरवरी को मंगलौर में श्री मोहनराव भागवत ने 'कृति रूप संघ दर्शन' के संशोधित संस्करण का लोकार्पण किया। इस अवसर पर भी श्री भैयाजी जोशी एवं श्री वेंकटराम उपस्थित थे। वेणुगोपालन
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