नागालैण्ड केबेमिसाल उत्सव-डा.राजेन्द्र सिंह चंदेल
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नागालैण्ड केबेमिसाल उत्सव-डा.राजेन्द्र सिंह चंदेल

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Feb 9, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Feb 2013 17:07:07

विराट प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर नागालैण्ड प्रदेश के पश्चिम और उत्तर में असम, उत्तर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण में मणिपुर है। विभाजन के समय नागालैण्ड असम प्रदेश का ही हिस्सा था, जो नागा हिल्स के नाम से जाना जाता था। 1961 में नागा हिल्स को नागालैण्ड नाम दिया गया। 1 दिसम्बर 1963 को असम से अलग होकर नागालैण्ड भारत का 16वां राज्य बना। नागालैंड में 14 प्रमुख जनजातियां व कई उपजातियां हैं। इनकी पारंपरिक वेशभूषा एवं रहन- सहन की तरह इनके त्योहार भी अलग-अलग हैं, लेकिन ये सभी त्योहार कृषि पर आधारित हैं। नागालैण्ड की 90 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आधारित है। इसलिए लगभग सभी उत्सव अच्छी फसल होने के उद्देश्य से मनाए जाते हैं।

छल-कपट से मतान्तरण के कारण नागालैण्ड आज ईसाई-बहुल राज्य हो चुका है। सेवा की आड़ में इन लोगों को ईसाई तो बना लिया गया लेकिन विदेशी शक्तियां उनको उनकी मूल संस्कृति से नहीं हटा पाईं। नागा मूलत: भगवान शिव के उपासक माने जाते हैं। यहां विभिन्न जनजातियों के त्योहारों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है।

चाकेसांग जनजाति

चाकेसांग जनजाति वर्ष भर में सात प्रमुख उत्सव मनाती है, जिसमें 'सुकरुन्ये' महत्वपूर्ण उत्सव है। यह 6 दिवसीय त्योहार है। उत्सव का पहला दिन 'सेडू' 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन जानवरों की बलि देकर उसके खून को हरेक घर में मुख्य जगहों पर छिड़का जाता है। दूसरा दिन-'सुकरू' पुरुषों के लिए होता है। पुरुष और नए घर को सुकरू के तहत दोषमुक्त किया जाता है। इस दिन पुरुष पक्षियों को पकड़ने जंगल जाते हैं और पकड़े गए पक्षियों को एक लम्बे बांस पर टांग दिया जाता है। यह बांस 'सुकरुन्ये' का प्रतीक माना जाता है। तीसरा दिन 'थुनोनुसो' सिर्फ महिलाओं के लिए होता है। चौथा दिन 'मुथी सेल्हु' धार्मिक रस्मों के बंधन से अलग होने का दिन होता है। पांचवें व छठे दिन भी अनेक कार्यक्रम होते हैं।

'सुखेन्यी' चाकेसांग जनजाति का ही एक प्रमुख उत्सव है। यह छह मई को मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस उत्सव में अनेक धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं।

कूकी जनजाति

मिमकुट उत्सव कूकी जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है। यह त्योहार 17 जनवरी से एक सप्ताह तक चलता है। गांव का तांत्रिक (ओझा) शेम्पू देवता को खुश करने के लिए मुर्गे की बलि देता है। उत्सव के समय नृत्य गीत व दावत भी होती है।

अंगामी जनजाति

अंगामियों का 'सेकेरगी' उत्सव प्रमुख त्योहार है। यह फरवरी माह में मनाया जाता है। यह उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। उत्सव के पहले दिन घर के सभी जवान व बूढ़े पुरुष गांव के कुएं पर स्नान करते हैं। रात्रि में दो जवान कुएं की सफाई करते हैं, यहां से कोई पानी नहीं निकालता है। साथ ही महिलाओं को कुएं का पानी छूने की इजाजत नहीं होती है। दूसरे दिन नए वस्त्र पहनते हैं और कुएं के पानी से अपने को पवित्र करते हैं और फिर मुर्गे की बलि दी जाती है। उत्सव के चौथे दिन से तीन दिन तक रंगारंग कार्यक्रम चलता है।

जेलिआंग जनजाति

जेलिआंग जनजाति के दो प्रमुख उत्सव होते हैं 'हेगा' और 'चेगागाही'। हेगा उत्सव 10 से 15 फरवरी तक मनाया जाता है। ईश्वर से समृद्धि, भाग्य और साहस का आशीर्वाद मिले इसी कामना के साथ यह मनाया जाता है। पूरे उत्सव के दौरान कोई भी पुरुष अपनी पत्नी के साथ होता है, तो अशुभ माना जाता है। चेगागाही उत्सव अच्छी फसल व अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है।

चांग जनजाति

चांग जनजाति के लोग मुख्यत: 6 उत्सव मनाते हैं। इनमें से तीन 'जिन्यूलेम', 'कुडैगलेम' और 'पाओगलेम', हाओगैग जाति और 'मुआंग', 'नाक्यू' और 'मोन्यू' लेम उपजाति द्वारा मनाए जाते हैं। कुडैगलेम उत्सव चांग कलैंडर के आठवें माह, अप्रैल में मनाया जाता है। जबकि चांग कलैंडर के अनुसार नाक्यू उत्सव ग्यारहवें माह जुलाई में मनाया जाता है। उत्सव के दौरान सूर्यास्त के समय सभी घर में रहते हैं। घर के आगे पीछे के दरवाजों पर 'बिन्दु लैग' नामक बीज को धान के पुआल के नीचे दबाकर जलाया जाता है। बीज फटकर आवाज करता है। आवाज सुनने के लिए सभी उपस्थित रहते हैं। अगर बीज फटकर घर से बाहर की ओर छिटकता है तो शुभ माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि इसी दौरान 'शांबुली मुधा' नामक देवता सभी घरों में जाते हैं। इस माह में जन्मी बेटियों का नाम मोपू रखा जाता है।

कोन्यक जनजाति

यह जनजाति हर वर्ष अप्रैल के प्रथम सप्ताह में आओ लियांग मोन्यू उत्सव मनाती है। यह खेतों में बुआई होने पर, और पुराना साल खत्म होने व वसंत में फूलों के खिलने की शुरुआत के साथ नववर्ष के स्वागत में मनाया जाता है। छह दिन के इस उत्सव में ईश्वर से अच्छी फसल की प्रार्थना की जाती है। पहला दिन 'होई लाई या निह' आओनियांग मोन्यू की तैयारी का होता है। इस दिन उत्सव की सभी तैयारियां कर ली जाती हैं तथा हर परिवार के मुखिया अपने झूम खेतों पर जाकर मुर्गे की बलि देता है। दूसरे दिन 'पि मोक को निह' को पालतू जानवरों की बलि दी जाती है। तीसरे दिन का नाम 'पिन मोक शेक निह' जिसका अर्थ है जानवरों को मारना। चौथा दिन उत्सव का सबसे अच्छा दिन माना जाता है। इस दिन सभी अच्छे गहने पहनते हैं और सामुदायिक रूप से दावतों का आयोजन होता है। पांचवां दिन 'लिग्हा निह' एक-दूसरे के सम्मान के लिए मनाया जाता है। उत्सव का अंतिम दिन 'लिंगशाह निह' उत्सव के दौरान गंदे हुए घरों और गांव की सफाई करने के रूप में मनाया जाता है।

लोथा जनजाति

इस जनजाति का प्रमुख उत्सव 'तोखू इमोग' जो एक फसलोत्सव है। फसल हो जाने और कोठरियां अनाज से भर जाने के बाद लोग इसे उत्सव के रूप में मनाते हैं। नौ दिवसीय यह उत्सव नवम्बर के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है। सम्पूर्ण गांव के लोग इस उत्सव में भाग लेते हैं। उत्सव की खास बात है, नृत्य गीत व मौज मस्ती। दोस्तों के बीच पकाए मांस का आदान-प्रदान होता है। उत्सव की घोषणा गांव का पुजारी करता है और दान स्वरूप चावल जमा करता है। एकत्रित चावल में से थोड़े का प्रयोग जानवर खरीदने में किया जाता है। शेष से शराब बनाई जाती है।

संगतम जनजाति

यह जनजाति वर्ष भर में कुल मिलाकर 12 उत्सव मनाती है। एमोगमोग सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है। इसमें कुल देवता और चूल्हा के तीन पत्थरों की पूजा होती है। यह सितम्बर के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है। गांव का पुजारी बेबरू पूजा अर्चनाओं के बाद उत्सव मनाने की घोषणा करता है। यह 6 दिनों तक चलता है।

सूमी जनजाति

सूमी जनजाति मुख्यत: दो उत्सव मनाती है-आहूना व तुलूनी। सूमियों के लिए आहूना फसल के बाद अच्छी फसल होने पर ईश्वर को धन्यवाद देने के साथ नए वर्ष के लिए शुभ का उत्सव है, जो नवम्बर माह में मनाया जाता है। वहीं तुलूनी दावतों का उत्सव है। इस उत्सव की खास बात है चावल की शराब पीना, जो केले के पत्ते से बने दोने में परोसी जाती है। तूलूनी जुलाई माह में मनाई जाती है।

कछारी जनजाति

कछारी जनजाति वर्ष भर में कई उत्सव मनाती है। लेकिन इनके दो उत्सव सबसे प्रमुख हैं-दिमासा कछारियों द्वारा 'बिशु' या 'बिशु जिना' और बोरो कछारियों द्वारा वसंतोत्सव बैसान उत्सव मनाया जाता है।

खियामनियूंगन जनजाति

इस जनजाति के दो महत्वपूर्ण उत्सव हैं। मियु मामा भांजे भांजियों के बीच अच्छे संबंधों का त्योहार है। सोकुम उत्सव अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है। यह उत्सव अच्छी फसल और जानवरों की रक्षा के लिए अपने देवताओं को धन्यवाद देने का है।

रेग्मा जनजाति

खेती की समाप्ति के बाद नवम्बर के अंत में रेग्मा जनजाति नगादा उत्सव मनाती है।आठ दिवसीय इस उत्सव में ईश्वर को धन्यवाद देने, खुशियां व मौज-मस्ती मनाने का सिलसिला चलता है।

पोचूरी जनजाति

पोचूरी जनजाति का प्रमुख उत्सव है येमशे, जिसे वे दो तरीके से बड़ा येमशे व छोटा येमशे मनाते हैं। उत्सव सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्तूबर के प्रथम सप्ताह तक मनाया जाता है। येमशे उत्सव वर्ष भर की कड़ी मेहनत के बाद नई फसल के स्वागत का भी उत्सव है। यह उत्सव खासकर युवाओं व किसानों के लिए खुशियों से भरा होता है।

इमचूंगर जनजाति

यह जनजाति वर्ष भर में दो प्रमुख उत्सव मेतूमन्यू और सूंगकामन्यू मनाती है। बाजरे की फसल के बाद हर वर्ष के अगस्त माह में 4 से 8 तारीख तक मेतूमन्यू उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव मृतात्माओं के लिए प्रार्थना से जुड़ा है। सबसे बुजुर्ग व्यक्ति खिमपुरु की प्रार्थनाओं के बाद पांच दिवसीय शिरो, जिहिवो, जुमरो, खेहरे, सूक और सेरेसूक शुरू होती है।

चूंगर जनजाति के लिए 'सूग कामन्यू' भी महत्वपूर्ण उत्सव है। यह उत्सव प्रत्येक वर्ष की 14 से 16 जनवरी तक मनाया जाता है।

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