कुंभ पर विशेषसंतों की साधना देख नतमस्तक हैं श्रद्धालु-कुम्भ क्षेत्र से हरिमंगल
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कुंभ पर विशेषसंतों की साधना देख नतमस्तक हैं श्रद्धालु-कुम्भ क्षेत्र से हरिमंगल

by
Feb 2, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Feb 2013 15:00:59

संगम की रेती पर बसी धर्म और आस्था की कुम्भ नगरी में आने वाला हर श्रद्धालु यहां की सतरंगी आभा को देखकर अचंभित हो रहा है। धर्माचार्यों के शिविरों से प्रवचन के रूप में निकल रही अमृतवाणी, सुमधुर कंठों से गूंजते भजन-कीर्तन, धर्म से समाज तक के विभिन्न विषयों पर चल रहे मंथन जैसे प्रमुख आकर्षण वाले कार्यक्रमों से अलग इस पावन भूमि पर अनेक संत ऐसे भी हैं जो वर्षों से विभिन्न प्रकार के हठ योग और साधना में लीन हैं। उनकी साधना हमें प्राचीन काल के ऋषियों, मुनियों की कठिन साधना की स्मृति कराती है।

ऊर्द्ध बाहु साधना

पंच दशनाम जूना अखाड़े के महंत अमर भारती पिछले 40 वर्षों से अपनी दाहिनी भुजा ऊपर उठाए हुए हैं। उनके हाथ की नसें सूख गयी हैं, मांस भी सूखकर हड्डियों से चिपक कर रह गया है। अंगूठे भी तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों के बीच जड़ हो गया है। अंगुलियों के नाखून 5-7 इंच के होकर स्वयमेव टूट रहे हैं। महंत अमर भारती सारा कार्य बाएं हाथ से करते हैं लेकिन 80 वर्ष की आयु में भी उनके चेहरे का आभा मंडल चमक रहा है। 'किस कारण से इस प्रकार की साधना कर रहे हैं?' के जवाब में वे कहते हैं, 'यह तो अनादि काल से चली आ रही साधना है- 'ऊर्द्ध बाहु'। प्राचीन काल से हमारी मान्यता है कि ऋषि-मुनि, गुरु, दूधाधारी ऊर्द्ध बाहु तपस्या करें।' जराबगांव, जो कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) में है, से शुरू हुई उनकी ऊर्द्ध बाहु साधना अनवरत जारी है। वे भावुक शब्दों में कहते हैं, 'बच्चा तमाम नासमझ इसे प्रचार का तरीका कहते हैं। भला संत क्यों करेगा अपनी साधना का प्रचार? वह तो सकल विश्व और समाज का कल्याण चाहता है।' बातचीत में महंत जी ने बताया कि इस साधना में चंद लोग ही हैं, जिसमें वे सबसे पुराने हैं।

आवाहन अखाड़े के महंत भोला गिरी (बापू) भी पिछले 37 वर्षों से ऊर्द्ध बाहु साधना में लीन हैं। वे अपने बाएं हाथ को ऊपर उठाए हुए हैं। हाथ की हालत महंत अमर भारती के हाथ की तरह ही है। भोला गिरी ने उर्द्ध बाहु साधना के साथ ही अन्न का त्याग भी कर दिया। 35 वर्षों तक अन्न नहीं ग्रहण किया। इसी बीच स्वास्थ्य बिगड़ा तो चिकित्सकों की सलाह पर पिछले दो वर्षों से एक वक्त आहार ले रहे हैं। 'क्या कोई संकल्प है?' के जवाब में उन्होंने कहा कि संकल्प तो गो माता पर आयी विपत्ति को दूर करने के लिए लिया था। गो-हत्या बंद कराने के लिए दिल्ली तक प्रयास किया, लेकिन सब लोग आश्वासन देने के बाद भूल गये। आज गो-हत्या के साथ बेटियों पर भी अत्याचार बढ़ा है इसलिए जब तक इन पर अत्याचार बंद नहीं होगा, हम अपनी तपस्या करते रहेंगे।' शिव बाड़ी आश्रम, वड़ोदरा (गुजरात) के इस संत ने कहा कि हम अपने दोनों हाथ देने को तैयार हैं, आजीवन इस साधना में लीन रहने को तैयार हैं, बस कोई गो-हत्या और बेटियों पर अत्याचार बंद करा दे।

पांच वर्ष से बैठे नहीं

महंत जी के साधनारत हुए तो उनके प्रिय शिष्य क्यों पीछे रहते? बस कुछ ऐसा ही मन में विचार आया और महंत भोला गिरी का आदेश मिलते ही मिलकपुर, काली खोली धाम, अलवर (राजस्थान) के महंत बाबा काल गिरी (खड़ेश्वरी जी) भी खड़े रहने की साधना में लीन हो गये। महंत जी पिछले 5 वर्षों से इस साधना में हैं। संकल्प के सवाल पर इतना भर कहते हैं, 'गुरु जी का आदेश मिला बस, गो माता की रक्षा हो, कत्लखाने बंद हों, मां-बहनों की लाज बची रहे, विश्व में शांति हो, बस यही।' साधना की कठिनाई के जवाब में कहा कि तरह-तरह से परीक्षा ली गयी लेकिन अपना ध्यान तो सिर्फ साधना में ही लगा है। लोग आते हैं, तमाम तरह की ऊल-जलूल बातें करते हैं, लेकिन अपना तो बस यही कि मांग पूरी हो, साधना पूरी हो। बाबा कालगिरी अंत में कहते हैं कि 'सब भोले बाबा पर छोड़ दिया है, और कोई अब कुछ नहीं कर सकता।'

नन्हीं साध्वी राजेश्वरी भारती कुंभ में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र हैं। लगभग 10 वर्ष की इस साध्वी को जूना अखाड़े और मढ़ियों सहित तमाम विषयों की गहन जानकारी है। राजेश्वरी भारती जिस शिविर में हैं उसके महंत चंदेश्वरानंद भारती, भवनात तलाही, (जूनागढ़, गुजरात) में रहते हैं। महंत जी ने बताया कि लगभग 3 वर्ष की उम्र में इसके मां-बाप ने हमें दिया था। 2010 के हरिद्वार कुंभ में इसका विधिवत संस्कार हुआ। राजेश्वरी भारती बहुत कुशाग्र बुद्धि की हैं, छोटी-सी उम्र में ही तमाम चीजें सीख ली हैं।

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