ज्योतिष विद्या से रोगों का निदान
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ज्योतिष विद्या से रोगों का निदान
अंजनी कुमार झा
ज्योतिषाचार्य और लेखक एस.एम. श्रीवास्तव ने जन्म कुण्डली के भावों में व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करते हुए विभिन्न रोगों का 'चिकित्सा ज्योतिष के व्यावहारिक अनुभव' पुस्तक में सिलसिलेवार वर्णन किया है। उनके अनुसार -व्यक्तित्व, भविष्यवाणी, अतीत के अतिरिक्त, रोग व उनका निदान भी ज्योतिष विद्या से जुड़ा है। पुस्तक में ग्रह और राशि के माध्यम से विभिन्न रोगों के कारण और समाधान की व्याख्या की गई है। चार खण्डों में विभाजित इस पुस्तक में कुण्डली, नवग्रह, राशि की सामान्य जानकारी के साथ प्रमुख रोगों के ग्रह योग की सारगर्भित चर्चा की गई है, कुछ उपाय भी बताये गए हैं।
किस राशि के व्यक्ति को कौन-सा रोग हो सकता है, इसकी चर्चा करते हुए लेखक ने ग्रहों के अनुसार विभिन्न रोग का भी सिलसिलेवार वर्णन है। हृदय रोग के संबंध में बताया गया है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में जितने अधिक योग होंगे उतना ही ज्यादा हृदय रोग की आशंका बनी रहेगी। इसी कारण हर विद्या के विशेषज्ञ, लोकप्रियता, धन-ऐश्वर्य के शिखर को स्पर्श करने वाले हृदय रोगी पाए जाते हैं। इसे सिद्ध करने के लिए जन्म कुण्डली और नवांश को दर्शाया गया है। रक्तचाप के लिए चन्द्र, मंगल और शनि ग्रह को अधिक उत्तरदायी माना गया है। शनि ग्रह और साढ़े साती से व्याप्त भय तथा विनाश की चर्चा अक्सर की जाती है, हजारों उपाय भी किये जाए हैं। लेखक ने भी ऐसी ग्रह दशा से पीड़ित लोगों को रक्तचाप से ग्रसित होना बताया है। रक्तचाप की भांति मुधमेह भी आम रोग हो गया है। मानसिक तनाव और अनियमित खान-पान को इसका कारण बताया गया है। पुस्तक में इसके सात ज्योतिषीय कारण गिनाये गए हैं। एक जातक, जो 1998 से इससे पीड़ित है, का जन्मांग और नवांश भी समझने – समझाने के लिए दिया गया है। जानलेवा रोग कैंसर को असाध्य बताया जाता है। लेखक के अनुसार ज्योतिषीय गणना और ग्रहों के द्वारा इसका पूर्वानुमान लगाकर जीवन रक्षा की जा सकती है। इसके भी सात ज्योतिषीय करण बताये गए हैं। यथा, शनि-मंगल का लग्न कुण्डली, नवांश कुण्डली में आपसी सम्बंध इस रोग को पैदा करता है। कुछ जन्म कुण्डलियों का उल्लेख कर बताये गए ज्योतिषीय योग को सिद्ध किया गया है। लेखक के अनुसार जीवन की रेखाओं को सही समय पर चिन्हित कर लिया जाए तो भीषण व्याधि को दूर रखा जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताया गया है कि सूर्य-चन्द्र द्वादश भाव में स्थित हों, राहु और सूर्य सप्तम स्थान में हों, शनि और मंगल के साथ चन्द्रमा छठे, आठवें और बारहवें स्थान में स्थित हों तो व्यक्ति नेत्रहीन होगा। लेखक ने फलित ज्योतिष पर भरोसा नहीं किया, इसलिए यह भी जोड़ दिया कि एक ही सिद्धांत हर परिस्थिति में लागू नहीं होगा। उसी प्रकार श्वेत कुष्ठ के भी 14 कारण गिनाये गए हैं। अनेक कुण्डलियों का विश्लेषण कर लेखक ने यह निष्कर्ष निकाला कि त्वचा से सम्बंध रखने वाला बुध और सजातीय तत्वों से जुड़ा गुरु पाप ग्रहों के प्रभाव में है। साथ ही कुछ कुण्डलियों में अलग-अलग शहरों के जातर्कों के नामों का भी उल्लेख है। हालांकि कुछ टोने-टोटके का उल्लेख पाठकों को अखर सकता है।
इस सबके आधार पर जन्म कुण्डली बनाने के लिए 27 कारकों पर ध्यान रखने पर बल दिया गया है, ताकि फलित करना सुगम हो। नौ ग्रह एवं उनके रत्न, उपरत्नों की भी चर्चा है। सभी ग्रहों एवं उनके मंत्र जपने से सुख-समृद्धि की बात कही गई है। सरल भाषा में लिखी इस पुस्तक में अभिव्यंजना न होने के कारण यह उपयोगी और संग्रहणीय है। हां, प्रूफ की अनेक गलतियां बहुत खटकती हैं।
अंजनी कुमार झा
पुस्तक का नाम – चिकित्सा ज्योतिष
के व्यवहारिक अनुभव
लेखक – एम.एस. श्रीवास्तव
प्रकाशक – श्रद्धा ऑफ्सेट प्रिंटर्स
104, अंसल प्रधान एन्क्लेव,
दाना-पानी रेस्टोरेंट के पास
ई-8, अरेरा कालोनी, भोपाल
462039 (म.प्र.)
पृष्ठ – 112 मूल्य -120 रुपए
दूरभाष – (0755)2424554, 09826080754
महान व्यक्तियों के प्रेरक प्रसंग
कोई व्यक्ति केवल जन्म से ही महान नहीं होता, वह महान बनता है अपनी सोच, अपने जीवन दर्शन और अपनी कार्य प्रणाली से। फिर ऐसे महान व्यक्ति ही पूरे समाज के लिए आदरणीय-अनुकरणीय बन जाते हैं। उनके जीवन से जुड़े प्रसंग वर्षों-सदियों तक प्रेरणा देते रहते हैं। ऐसे ही कुछ प्रेरणादायी व्यक्तियों के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों को हाल में प्रकाशित होकर आई पुस्तक 'आदरणीय व्यक्तित्व' में सम्मिलित किया गया है। प्रख्यात बाल साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु और सुपरिचित लेखिका आशा शैली के लेखन-संपादन में प्रकाशित इस पुस्तक में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कुल 26 व्यक्तियों के जीवन-प्रसंगों को शामिल किया गया है।
इस पुस्तक में जिन साहित्यकारों के जीवन प्रसंगों को शामिल किया गया है उनमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन, डा. प्रतीक मिश्र शामिल हैं। 'प्रेमचंद का कथेतर गद्य साहित्य' शीर्षक लेख में सरोजिनी पांडे लिखती हैं कि प्रेमचंद अपने साहित्य के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में योगदान कर रहे थे, क्योंकि राष्ट्रीयता और संस्कृति से हटने में वे साहित्य का अपमान समझते थे। उनका कहना था, 'हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिसमें उच्च चिंतन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का तार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन ही सच्चाइयों का प्रकाश हो। जो हममें गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाए नहीं, क्योंकि अब ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।'
समाज सुधारकों में संपादक-द्वय ने राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, आदि को सम्मिलित किया है। 'स्वामी विवेकानंद' में डा. राष्ट्रबंधु लिखते हैं, 'उनकी भाषा-शैली प्रहारात्मक न होकर तार्किक थी। इसका प्रभाव सुधीजन पर पड़ा और वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने त्याग करना सीखा।' हालांकि पढ़ने पर लगता है कि इस अध्याय को और अधिक विस्तार दिया जा सकता था। 'विद्या के पर्याय ईश्वरचंद्र विद्यासागर' लेख में डा. राष्ट्रबंधु लिखते हैं, 'विद्यासागर ने अपने ज्ञान का उपयोग स्वयं की बजाय जनहित में किया। कन्याओं को उन्होंने बांग्ला, संस्कृत और अंग्रेजी की पढ़ाई करने के अलावा सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिलाया।'
स्वतंत्रता सेनानियों में से चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के जीवन प्रसंग विशेष रूप से पठनीय है। 'मानवता के आशिक : सरदार भगत सिंह', शीर्षक लेख में जगमोहन सिंह लिखते हैं, 'भगत सिंह के मन में केवल एक ही तमन्ना थी कि समाज के सभी वर्गों के लोग सुदृढ़ हों, संम्पन्न हों, शक्तिशाली हों। इंसानियत की कद्र उनके लिए बहुत बड़ी बात थी। वह चाहते थे कि मानवीय मूल्यों की कद्र हो और भाई-चारे को बढ़ावा मिले। बड़ी सराहनीय बात यह है कि भगत सिंह, जो एक क्रांतिकारी के रूप में देश की आजादी के लिए जुझारू ढंग से काम कर रहे थे, के मन से कला, साहित्य और संगीत के लिए भी भरपूर प्रेम था।'
एक पत्नी, मां होते हुए भी कोई स्त्री किस तरह देश-समाज के प्रति अपने दायित्वों को लेकर सजग रह सकती है, इसकी बानगी हम कस्तूरबा गांधी के जीवन में देख सकते हैं। कस्तूरबा गांधी लेख में डा. राष्ट्रबंधु लिखते हैं, बा ने सत्याग्रह करने की इच्छा प्रकट की, ताकि महिलाओं की संख्या भी सत्याग्रह में बढ़े। बा ने कहा- 'यदि मैं जेल जाने के डर से घबराकर माफी मांगने लगूं तो आप मुझसे किसी प्रकार का संबंध रखने से इंकार कर दें। यदि आप तकलीफ सह सकते हैं तो मैं दु:ख क्यों नहीं झेल सकती?' इसी तरह के अनेक प्रसंगों को समेटे यह पुस्तक किशोरों-युवाओं समेत हर वर्ग के पाठकों को प्रेरणा देने वाली है। यह पुस्तक हमें यह भी सीख देती है कि अगर हम अपना लक्ष्य निर्धारित कर लें तो छोटे-से जीवन में बहुत कुछ सार्थक कर सकते हैं।
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