विवाद टाइम्स
|
विजय कुमार
शर्मा जी खाली बैठे–बैठे अब ऊबने लगे थे। उनकी पत्नी भी चाहती थी कि वे दिन भर बाहर रहें, जिससे वे पड़ोसी महिलाओं के साथ बैठकर बात कर सकें। दो–चार दिन ऐसा न होने पर उनके पेट में दर्द होने लगता था।
इधर सेठ चमचाकर एक नया अखबार निकालना चाहते थे। वे जानते थे कि मीडिया वालों पर कोई आसानी से हाथ नहीं डालता। इसलिए वे अखबार की आड़ में अपने काले धंधों को छिपाना चाहते थे। एक स्थानीय नेता जी के माध्यम से इन दोनों की भेंट हुई और इस जुगलबंदी से 'लॉलीपॉप टाइम्स' नामक अखबार छपने लगा। सेठ जी इसके प्रकाशक बने और शर्मा जी सम्पादक।
सम्पादक बनने से शर्मा जी की व्यस्तता बढ़ गयी। वे सुबह नाश्ता कर निकलते, तो रात को ही लौटते थे। वेतन भी ठीकठाक मिल रहा था। इससे शर्मा जी और उनकी पत्नी के दिन अच्छे बीतने लगे।
कुछ दिन बाद शर्मा जी मिले, तो इस बारे में ही बात होने लगी।
– शर्मा जी, आप 'लॉलीपॉप टाइम्स' के सम्पादक कैसे बन गये ?
– अपनी योग्यता के कारण।
– पर आपने तो 40 साल की सरकारी नौकरी में पूरा समय गपशप, लेनदेन और चायबाजी में ही लगाया है ?
– वर्मा जी ! संवाद के लिए गपशप, लेनदेन और चायबाजी बहुत जरूरी है। संवाद तो मुलायम मिट्टी की तरह है, जिसे कुम्हार अपने कुशल हाथों से मनचाहा रूप दे देता है। ऐसे ही हम भी समाचार में विचार मिलाकर उसे मनचाही दिशा में मोड़ देते हैं।
कुछ दिन बाद मैं शर्मा जी से मिलने 'लॉलीपॉप टाइम्स' के कार्यालय में गया, तो वहां सम्पादक मंडल की बैठक हो रही थी।
शर्मा जी – बहुत दिनों से हमारे अखबार में कोई चटपटी खबर नहीं छपी है। इस उदासी को हमें जल्दी ही तोड़ना होगा।
एक – हां, दिल्ली दुष्कर्म की खबर भी पुरानी हो गयी। उसके धरने और प्रदर्शन पर अब पाठक ध्यान नहीं देते।
दूसरा – सीमा पर भी अब शान्ति है। सेनाध्यक्ष बलिदानी सैनिकों के घर हो आये। इसलिए अब उस खबर में दम नहीं रहा।
तीसरा – अभी एक नयी फिल्म लगी है, उसके एक गाने में कुछ ऐसे शब्द हैं, जिस पर स्टोरी की जा सकती है।
शर्मा जी – ठीक है, तुम इस पर काम करो।
पहला – सर, मुझे भी कुछ काम बताइये।
शर्मा जी – तुमने पिछले दिनों कुछ लोगों के वक्तव्यों को तोड़ मरोड़ कर जो कहानी बनाई थी, उससे सारे देश में हलचल मच गयी। ऐसी ही कोई धांसू चीज फिर खोज कर लाओ।
पहला – जयपुर में कांग्रेस का चिन्तन शिविर हो रहा है, वहां से कुछ चीज निकल सकती हैं।
शर्मा जी – बड़ा कठिन है। क्योंकि गांधी जी के नाम की रोटी खा रहे कांग्रेस के तीनों बंदर कभी प्रेस से बात नहीं करते। वे प्राय: चुप रहते हैं या फिर अपने लेखकों द्वारा लिखे गये वक्तव्यों को पढ़ देते हैं। फिर भी तुम प्रयास करो।
दूसरा – और सर मैं क्या करूं ..?
शर्मा जी – आप कुम्भ में चले जाइये। वहां से कुछ ऐसे चित्र या समाचार भेजें, जिनसे धर्म की हंसी उड़े और माहौल में गरमी आये। ऐसी चीजें लोग बहुत चाव से पढ़ते हैं। इनकी क्रिया और प्रतिक्रिया भी आठ–दस दिन तक चलती रहती है।
बैठक समाप्त होने पर शर्मा जी ने 'अखबार' के बारे में मेरे विचार जानने चाहे। मैंने कहा कि देश और दुनिया में इतने अच्छे काम हो रहे हैं, आप कुछ खबर उनके बारे में भी दिया करें।
इस पर वे हंसे – वर्मा जी, इन चीजों से अखबार नहीं चलते। अब तो लोग हर दिन कुछ चटपटा चाहते हैं। इसलिए हम तो बाल की खाल से ही जूता बनाकर भीड़ में फेंक देते हैं। तिल का ताड़ और बिना फूस के झाड़ बनाना हमारे बायें हाथ का खेल है। यही हमारी नीति है और यही सफलता का रहस्य।
– तो फिर आप अखबार का नाम भी 'विवाद टाइम्स' रख लें, तो अच्छा रहेगा।
शर्मा जी मेरा मुंह देखते रह गये।
टिप्पणियाँ